महाराष्ट्र में पिछले दिनों कीटनाशक का उपयोग करते समय कई किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। कीटनाशकों के प्रयोग से फसलें विशाक्त तो हो ही रही हैं, साथ में पैदावार भी प्रभावित हो रही है। खेत की उर्वरक क्षमता घट रही है। ऐसे में केंद्र सरकार जैविक खाद को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। और अब उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इसकी ओर कदम बढ़ाया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि प्रदेश के किसानों को बायोपेस्टीसाइड और बीज शोधक रसायन के प्रयोग के लिए सरकार की ओर से 75 फीसदी तक अनुदान दिया जाएगा।
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जमीन की हालत खराब है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले डेढ़ दशक से चल रहे उर्वरता संबंधी अध्ययन के मुताबिक, सहारनपुर से लेकर बलिया तक इण्डो गैंजेटिक बेल्ट में खेतों की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा में भारी गिरावट आई है। यही नहीं पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में पिछले पांच सात सालों में फास्फेट जैसे पोषक तत्व में भी जबर्दस्त कमी देखने को मिली है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की बात करें तो जिंक, कॉपर, आयरन, मैंगनीज आदि भी खेतों से कम होते जा रहे हैं।
तिलहनी फसलों की पट्टी के इटावा, मैनपुरी, एटा, कन्नौज, फरुखाबाद और कानपुर जिलों में गंधक तत्व में भी काफी कमी आई है। पिछले दिनों प्रदेश में खेतों की मिट्टी की उर्वरता परखने के लिए अपनी मिट्टी पहचानों अभियान भी चलाया गया था। ऐसे में बायोपेस्टीसाइड (जैविक कीटनाशक) पर उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला खेती की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
माैजूदा स्थिति को देखते हुए मंगलवार को हुई उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने कीट रोग नियंत्रण योजना को मंजूरी देते हुए कहा कि फसलों की सुरक्षा के लिए सरकार किसानों को अनुदान देगी ताकि किसानों की आय बढ़ सके।
स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने ट्वीट करके बताया “कीड़ों से फसलों को 15 से 25 फीसदी तक नुकसान होता है। सरकार किसानों को कीटनाशकों के प्रयोग से इस नुकसान को कम करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। इसके अंतगर्त बायोपेस्टीसाइड व बीज शोधक रसायन को उपयोग पर खर्च का 75 फीसदी अनुदान सरकार देगी। लघु और सीमांत किसानों को कृषि रक्षा रसायनों, कृषि रक्षा यंत्रों व बखारी पर 50 फीसदी अनुदान मिलेगा। योजना पर पांच वर्ष में 155.90 करोड़ खर्च होंगे।”
गैर जरूरी एंटीबायोटिक की प्रयोग से बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता घटती जा रही है। पूरी दुनिया में अनाज, सब्जियों और फल-फूल की सुरक्षा के नाम पर अरबों रुपए के कीटनाशक और रसायनों का मार्केट खड़ा हो गया है, भारत में भी हरित क्रांति के बाद उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हुआ।
आईसीएआर (केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र, नागपुर) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिवाजी म्हाल्बा पाल्वे गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “कीटों, फफूंद और रोगों के जीवाणुओं की कम से कम पांच फीसदी तादाद ऐसी होती है जो खतरनाक रसायनों के प्रभावों से जूझ कर इनका सामना करने की प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेती है। ऐसे प्रतिरोधी कीट धीरे-धीरे अपनी इसी क्षमता वाली नई पीढ़ी को जन्म देने लगते हैं जिससे उन पर कीटनाशकों का प्रभाव नहीं पड़ता है और फिर इन्हें खत्म करने के लिए ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा जहरीले रसायनों का निर्माण करना पड़ता है।”
उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ट्वीटर पर जानकारी देते हुए कहते हैं “कीट/रोग नियंत्रण योजना से विषरहित खाद्यान्न का उत्पादन व पर्यावरण संरक्षण भी सुनिश्चित होगा। किसानों को 75% अनुदान पर बायोपेस्टिसाइड,बायोएजेंट व बीज शोधक रसायन दिए जाएंगे। लघु व सीमांत किसानों को कृषि रक्षा रसायन, कृषि रक्षा यंत्र व अन्न भंडारण के लिए बखारी पर 50% अनुदान भी मिलेगा।
कीटनाशकों का फसलों व जीवों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इसपर लंबे समय से अध्ययन कर रहे केवीके सीतापुर के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. दया श्रीवास्तव कहते हैं “जब हम दोस्तों को मार देंगे तो सभी हमारे दुश्मन हो जाएंगे। कीटनाशकों का प्रयोग करके भी हमने यही किया। कीटनाशक खेत में उन तत्वों को खत्म कर रहे हैं जो हमारी फसलों के मित्र हैं। ऐसी जाहिर सी बात है कि खेत की उर्वरकता खत्म हो जाएगी। कीटनाशक का प्रयोग किसानों के लिए आखिरी होना चाहिए।”
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कीटनाशकों का उपयोग कितना बढ़ रहा है ये आंकड़ों में देखिए। केयर रेटिंग के अनुसार 1950 में देश में जहां 2000 टन कीटनाशक की खपत थी जो आज बढ़कर 90 हजार टन है। 60 के दशक में जहां देश में 6.4 लाख हेक्टेयर में कीटनाशकों का छिड़काव होता था वहीं अब डेढ़ करोड़ हेक्टेयर में कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है, जिसके कारण भारत के पैदा होने वाले अनाज, फल, सब्जियां और दूसरे कृषि उत्पाद में कीटनाशकों की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई जा रही है।