खेतों की जान ले रहे कीटनाशक, सुरक्षित हम भी नहीं

कीटनाशक

वैसे तो देश में कई करोड़ मुकदमे अदालतों में लंबित हैं। लेकिन पिछले दिनों मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बहुत रोचक मामले कोर्ट पहुंचे। किसानों ने कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों पर मुकदमा कर दिया है क्योंकि दावों के मुताबिक पेस्टीसाइड्स अब फसलों पर असर नहीं कर रहे। ज्यादा पैदावार के लालच में हम जिन कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, वे हमारे खेत की जान तो ले ही रहे हैं, हम भी उसके दायरे में हैं।

असर न होने की वजह है, रोग फैलाने वाले वायरस और कीटाणु इन दवाओं के आदी हो गए हैं। इसी साल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल में एंटीबायोटिक्स के असर पर एक रिसर्च हुई थी, जिसमें ये सामने आया कि हमारे शरीर पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर 50 फीसदी तक कम हो गया है, क्योंकि हमारा शरीर ऐसी दवाओं का आदी हो गया है। ऐसा ही खेतों की सेहत पर हो रहा है।

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गैर जरूरी एंटीबायोटिक की प्रयोग से बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता घटती जा रही है। पूरी दुनिया में अनाज, सब्जियों और फल-फूल की सुरक्षा के नाम पर अरबों रुपए के कीटनाशक और रसायनों का मार्केट खड़ा हो गया है, भारत में भी हरित क्रांति के बाद उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हुआ।

आईसीएआर (केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र, नागपुर) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिवाजी म्हाल्बा पाल्वे गाँव कनेक्शन से कहते हैं, ” कीटों, फफूंद और रोगों के जीवाणुओं की कम से कम पांच फीसदी तादाद ऐसी होती है जो खतरनाक रसायनों के प्रभावों से जूझ कर इनका सामना करने की प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेती है। ऐसे प्रतिरोधी कीट धीरे-धीरे अपनी इसी क्षमता वाली नई पीढ़ी को जन्म देने लगते हैं जिससे उन पर कीटनाशकों का प्रभाव नहीं पड़ता है और फिर इन्हें खत्म करने के लिए ज्यादा शक्तिशाली, ज्यादा जहरीले रसायनों का निर्माण करना पड़ता है।”

कीट पतंगों के रसायनों के प्रति आदी होने में ही पेस्टीसाइड और केमिकल बनाने वाली कंपनियों का बाजार खड़ा है। लेकिन इस बाजार की बढ़ती भूख, किसानों की समस्या और ज्यादा उत्पादन की मजबूरी खुद किसान और ऐसे अन्न को खाने वालों के लिए खतरनाक साबित हो रही है।

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पिछले दिनों महीने महाराष्ट्र के यवतमाल में फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव करते समय कीटनाशकों के जहरीले प्रभाव की चपेट में आने से 9 किसानों की मौत हो गई थी। राज्यसभा में इस संबंध में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कृषि राज्यमंत्री ने संसद को बताया था कि पिछले तीन सालों में खेत में कीटनाशकों को छिड़काव करते समय 5114 किसानों की मौत हो गई थी।

सोचिए, ऐसे कीटनाशकों का असर जब इंसानों पर हो रहा था खेत का क्या होगा। शून्य लागत से प्राकृतिक खेती का प्रचार-प्रसार करने वाले पद्मश्री सुभाष पालेकर के एक बयान से समझा जा सकता है। लखनऊ में किसानों की एक वर्कशाप में वो कहते हैं, यूरिया और दूसरे कीटनाशकों और रयासनों के चलते खेत में नीचे की मिट्टी सीमेंट जैसी मजबूत हो गई है, इसीलिए जमीन बंजर होती जा रही है, सिंचाई की ज्यादा जरूरत बढ़ गई है।

कीटनाशकों का उपयोग कितना बढ़ रहा है ये आंकड़ों में देखिए। केयर रेटिंग के अनुसार 1950 में देश में जहां 2000 टन कीटनाशक की खपत थी जो आज बढ़कर 90 हजार टन है। 60 के दशक में जहां देश में 6.4 लाख हेक्टेयर में कीटनाशकों का छिड़काव होता था वहीं अब डेढ़ करोड़ हेक्टेयर में कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है, जिसके कारण भारत के पैदा होने वाले अनाज, फल, सब्जियां और दूसरे कृषि उत्पाद में कीटनाशकों की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई जा रही है।

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केयर रेटिंग ने इसको लेकर अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भारतीय खाद्य पदार्थो में कीटनाशकों को अववेश 20 प्रतिशत तक है जबकि वैश्विक स्तर पर यह मात्र 2 प्रतिशत तक होता है। भारत में केवल ऐसे 49 प्रतिशत ही खाद्य उत्पाद हैं जिनमें कीटनाशकों का अवशेष नहीं मिलते हैं जबकि वैश्विक स्तर पर 80 प्रतिशत खाद्ध् पदार्थो में कीटनाशकों के अवशेष नहीं है।

महाराष्ट्र नांदड़ के माहुर निवासी कपास किसान फारुख पठान कहते हैं “मैने 5 हेक्टेयर में कपास की खेती की है। पूरी फसल खराब हो गई है। कीट ने पौधों को ही खत्म कर दिया है। मेरे आसपास के कई किसानों की पूरा का पूरा कपास बर्बाद हो रहा है। हमने कीटनाशकों का प्रयोग किया है। लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। जबकि हम ऐसे कीटनाशकों का प्रयोग लंबे समय से करते आए हैं। मेरे साथ कई किसानों ने मिलकर कीटनाशक कंपनियों पर मुकदमा कर दिया है।”

मध्य प्रदेश, बालाघाट के बैहर निवासी किसान भानेश साकुरे कहते हैं “अब फसलों पर कीटनाशकों का असर ही नहीं होता। मेरे साथ कई किसानों ने कुछ कीटनाशक कंपनियों पर मुदकमा किया है।”

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महाराष्ट्र यवतमाल के गांव इंद्रठांण के कपास किसान नेमराज राजुरकर भी यही कहते हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया “मैंने दो एकड़ में कपास की खेती की है। पूरी फसल कीट की चपेट में है। कीटनाशकों के छिड़काव के बाद भी कोई असर नहीं हुआ। हमने स्थानीय संगठनों के साथ मिलकर कीटनाशक कपंनियों पर केस कर दिया है।” उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया “इस साल तो पिछले साल की अपेक्षा आधा उत्पादन भी नहीं होगा। पूरी फसल गुलाबी कीट के चपेट में है। हम विभाग के संपर्क में हैं। वे प्रयास कर रहे हैं। लेकिन आधे से ज्यादा फसल बर्बाद हो चुकी है।”

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिला मड़ियाहु के ग्राम गुतवन के किसान प्रमोद कुमार मिश्रा बताते हैं “मैंने मक्के की फसल पर एंडोसल्फ़ान से मिलते-जुलते कीटनाशक का प्रयोग किया। लेकिन उसका कोई असर ही नहीं हो रहा। इस बारे में जब मैंन जिला कृषि केंद्र में विशेषज्ञों से बात की तो उन्होंने बताया कि लगातार कीटनाशकों का प्रयोग करने से कीटनाशक उसके अनुरूप खुद को ढाल लेते हैं।”

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कीटनाशकों का फसलों व जीवों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इसपर लंबे समय से अध्ययन कर रहे केवीके सीतापुर के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. दया श्रीवास्तव कहते हैं “जब हम दोस्तों को मार देंगे तो सभी हमारे दुश्मन हो जाएंगे। कीटनाशकों का प्रयोग करके भी हमने यही किया। कीटनाशक खेत में उन तत्वों को खत्म कर रहे हैं जो हमारी फसलों के मित्र हैं। ऐसी जाहिर सी बात है कि खेत की उर्वरकता खत्म हो जाएगी। कीटनाशक का प्रयोग किसानों के लिए आखिरी होना चाहिए।”

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