कनफेक्शनरी के बाज़ार में मूंगफलियों की खपत बहुत ज़्यादा होती है लेकिन इसके बावजूद भारत के मूंगफली किसानों को इसका फायदा नहीं होता। वजह है, यहां मूंगफली में उन पोषक तत्वों का न होना जो कंपनियां चाहती हैं लेकिन अब भारत के किसान भी बाज़ार के लिए उपयुक्त मूंगफलियां उगाकर मुनाफा कमा सकेंगे। आइए जानते हैं कैसे…
भारत के कनफेक्शनरी बाज़ार में बड़े स्तर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्ज़ा है। ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों में ऐसी मूंगफली का इस्तेमाल करती हैं जिनमें फैटी एसिड की कुल मात्रा में ओलिक एसिड की मात्रा 80 फीसदी तक होती है लेकिन भारत में पैदा होने वाली मूंगफलियों में ये मात्रा 40 से 45 फीसदी ही होती है, इसलिए ये कंपनियां ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका से मूंगफली का आयात करती हैं। इस समस्या को सुलझाने और भारत के मूंगफली किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए अर्द्ध शुष्क प्रदेशों के लिए अंतराष्ट्रीय फसल शोध संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) ने मूंगफली की ऐसी किस्म विकसित की है जिसमें ओलिक एसिड की मात्रा काफी ज़्यादा होगी।
आईसीआरआईएसटी के वैज्ञानिकों ने स्पेन और वर्जीनिया की तर्ज़ पर भारत की कृषि परिस्थितयों के लिए ओलिक एसिड से भरपूर मूंगफलियों की किस्में इज़ाद की हैं। इन मूंगफलियों की ये ख़ासियत है कि इनमें सामान्य मूंगफलियों के मुकाबले 10 गुना कम ऑक्सीकरण होता है जिससे इनको छिलकों का जीवन 2 से 9 महीने तक बढ़ जाता है। यही नहीं, ये मूंगफलियां ज़्यादा समय तक ताज़ी रहती हैं यानि इनमें सामान्य मूंगफलियों के मुकाबले खटास काफी देर से आती है और इनका स्वाद भी बेहतर होता है।
मूंगफली की प्रजातियों के प्रजनन पर काम करने वाले वैज्ञानिक डॉ. जेनीला, साल 2011 से माँग पर आधारित इस कार्यक्रम पर काम कर रहे थे, उन्होंने बताया, ”6 साल पहले हमें इस नए बाज़ार की बढ़ती माँग के बारे में पता चला और फिर हमने भारतीय किसानों द्वारा उगाई जा रही मूंगफली की देसी प्रजातियों में कुछ बदलाव करके उन्हें अमेरिका की Sunoelic-95R प्रजाति को टक्कर देने के लिए तैयार किया है। फिलहाल भारतीय मूंगफली किसान, सामान्य से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मूंगफली की ऐसी प्रजातियां उगा रहे हैं जो जल्दी विकसित हो जाती हैं और हल्की बारिश से ही फलियां भर जा रही हैं।
हमने भारतीय किसानों द्वारा उगाई जा रही मूंगफली की देसी प्रजातियों में कुछ बदलाव करके उन्हें अमेरिका की Sunoelic-95R प्रजाति को टक्कर देने के लिए तैयार किया है।
डॉ. जेनीला, कृषि वैज्ञानिक
डॉ. जेनीला बताते हैं “फिलहाल जो बहुराष्ट्री कंपनियां मूगफली का इस्तेमाल करके चॉकलेट, आइस्क्रीम या दूसरा नाश्ता बनाती हैं वे एशिया में लगी हुई अपनी इकाइयों के लिए मूंगफली ऑस्ट्रेलिया से मंगाती हैं लेकिन इन मूंगफलियों को मंगाने के लिए अच्छा खासा आयात शुल्क देना पड़ता है इसलिए ये कंपनियां चाहती हैं कि भारत और एशिया के दूसरे देशों में ही उन्हें ऐसी मूंगफली मिल जाए जो उनके मानकों के मुताबिक हो। इसी बाज़ार में भारतीय मूंगफली की पैठ बनाने और किसानों को मुनाफा दिलाने के लिए वैज्ञानिकों ने ओलिक एसिड से भरपूर मूंगफलियों की किस्म खोजी हैं।”
यह शोध कार्यक्रम गुजरात के मू्ंगफली का गढ़ माने जाने वलो गुजरात के जूनागढ़ में आईसीआरआईएसटी, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर), डायरेक्टरेट ऑफ ग्राउन्डनट रिसर्च (डीजीआर जूनागढ़), जूनागढ़ एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (जेएयू), तमिलननाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (टीएयू) और आचार्य एनजी रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (एएनजीआरएयू) तिरुपति संस्थानों के साथ मिलकर चलाया जा रहा है।
2017 में मूंगफली पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर कई जगह ओलिक एसिड वाली 16 प्रजातियों का उनके कृषि प्रदर्शन और बाजार की गुणवत्ता के लिए परीक्षण किया गया है। यह भारत में मूंगफली पर अपनी तरह का पहला और विशेष परीक्षण है। 2016 में देश के कई भागों में किए गए इस परीक्षण में सामने आया था कि मूंगफली के प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में नई प्रजातियों ने सामान्य प्रजातियों के मुकाबले 5 से 84 प्रतिशत तक अधिक उपज दी और इनमें कुल फैटी एसिड का लगभग 80 प्रतिशत ओलिक एसिड पाया गया। हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय खाद्य कंपनी की सहभागिता में हुए एक परीक्षण में ये भी सामने आया कि इन मूंगफलियों में अभी तक कनफेक्शनरी उद्योग में इस्तेमाल होने वाली मूंगफलियों के बराबर ही ओलिक एसिड है और ये भी उतनी ही गुणकारी हैं।
प्रमुख राष्ट्रीय शोध सहयोगियों के साथ किए गए देश व्यापी परीक्षण के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि जल्दी ही आधिकारिक घोषणा करके इस साल से इन प्रमाणित बीजों का उत्पादन शुरू हो जाना चाहिए। डॉ. जेनिला ने कहा कि एक बार इन मूंगफलियों के बाज़ार में आने के बाद दोहरा फायदा होगा। एक तो किसानों को फसल का अच्छा दाम मिलेगा दूसरा इससे जुड़े उद्योगों को भी स्थानीय स्तर पर ही माल उपलब्ध हो जाएगा। भारतीय सरकार के खाद्य और सहभागिता विभाग के नेशनल मिशन ऑफ़ आयलसीड्स एंड आयल पाम (NMOOP) की मदद से इस शोध में इन बीजों को भारत के मूंगफली उत्पादन वाले क्षेत्रों की 48 लाख हेक्टेयर भूमि पर इन्हें उगाया जा सकेगा।
क्या होता है ओलिक एसिड
ओलिक एसिड को ओमेगा – 9 फैटी एसिड के नाम से भी जाना जाता है। ओमेगा – 9 फैटी एसिड असंतृप्त वसा वाले परिवार से होता है और सब्ज़ियों व पशु में पाया जाता है। ये फैटी एसिड कैनोला तेल, सूरजमुखी के तेल, जैतून के तेल, सरसों के तेल, बादाम व मूंगफली के तेल आदि में पाया जाता है।
क्या है फायदा
ओलिक एसिड दिल और दिमाग के साथ ही लगभग पूरे शरीर के लिए फायदेमंद होता है। इसके इस्तेमाल से हृदय रोग और स्ट्रोक का ख़तरा कम हो जाता है क्योंकि ये बैड कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करता है। ये शरीर में ऊर्जा को बढ़ाता है, गुस्से को कम करता है और मूड अच्छा बनाता है, इसके साथ ही अल्ज़ाइमर बीमारी के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है।