रायबरेली। उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के बछरावां ब्लॉक के दयानंद महाविद्यालय से स्नातक कर रही पायल पटेल (20 वर्ष) को इंटर पास करने पर सरकार से जब लैपटॉप मिलने का पता चला तो वह खुश हुई पर गाँव में बिजली न आने से लैपटॉप न चार्ज कर पाने का उसे दुख भी था।
गाँव में पायल के साथी उसे यह कह के चिढ़ाते कि वह लैपटॉप कैसे चार्ज करेगी? लेकिन पिछले वर्ष अक्टूबर में जब उसे लैपटॉप मिला तब तक उसके घर पर सौर ऊर्जा के बदौलत 24 घंटे बिजली आने लगी थी। अब पायल का लैपटॉप हफ्ते में कभी-कभार आने वाली बिजली का मोहताज नहीं है।
रायबरेली जि़ले से 13 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्वेण्ठा गाँव में वर्ष 2007 में बिजली के खंभे लगे तार बिछे और ट्रांसफॉर्मर भी लगा। पर बिजली सिर्फ तीन-चार घंटे ही आती और वो भी हफ्ते में एक-दो बार। बिजली की किल्लत से परेशान गाँववालों ने सौर ऊर्जा का सहारा लिया।
पायल के नज़दीक खड़े उनके पिता रामभरन पटेल बताते हैं, ”जून 2012 में ग्रामीण बैंक की एक योजना में गाँव के 23 परिवारों ने सोलर पैनल लगवाया था।”
उत्तर प्रदेश में बढ़ते बिजली संकट और गाँवों में बिजली पहुंचाने में सरकारी असमर्थता ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के विकास में बड़ा बाधक बन कर उभरी है। अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग (नेडा) के मुताबिक, प्रदेश में वर्ष 2011 से 2013 तक 10,000 गाँवों में सौर ऊर्जा पहुंच चुकी है। इससे पहले वर्ष 2010-11 में यह आंकड़ा 5,000 था जो अब 15, 000 हो गया है। यानी की प्रदेश के कुल 96 हज़ार गाँवों में से 15,000 गाँव अब सौर ऊर्जा की सुविधा का लुत्फ उठा रहे हैं।
प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रही सौर ऊर्जा की उपलब्धता का कारण बताते हुए उत्तर प्रदेश की नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूपीनेडा) के सचिव सुशील कुमार चौधरी कहते हैं, ”पिछले चार-पांच वर्षों में गाँवों में सौर ऊर्जा का जबरदस्त विकास हुआ है। इसमें ज्यादातर संयंत्रों को सरकार की लोहिया आवास और जनेश्वर मिश्र योजना में लगवाया गया है। अगर तुलना की जाए तो गाँवों में शहरों की तुलना में सौर ऊर्जा का प्रयोग अधिक है।”
प्रदेश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का दायरा बढऩे का कारण सरकारी योजनाओं के आलावा निजी कंपनियों की भागीदारी भी रही है। जहां एक तरफ सूरज से ऊर्जा पैदा करने के लिए प्रदेश सरकार की सोलर पॉवर नीति 2013 के तहत प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सौर संयंत्र लगाए जा रहे हैं। वहीं देश में सौर ऊर्जा वितरण की सबसे बड़ी निजी कंपनी सूकैम प्रदेश सरकार की लोहिया आवास योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 40,000 घरों में सोलर पैनल लगा चुकी है।
”हमने पूर्वी उत्तर प्रदेश में सबसे अच्छा काम किया है। प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक योजना के अंतर्गत ग्रामीण स्तर पर हमें 2 लाख सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की मंज़ूरी दे दी है” प्रणव सचदेव ब्रांड मैनेजर, सुकैम इंडिया ने कहा।
जनपद सीतापुर के डिगिहा गाँव में आधुनिक तरीके से सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा रहा है। गाँव के ज़्यादातर घरों में 600 वॉट का एसी, स्मार्ट सोलर ग्रिड लगा है। यह सोलर पॉवर ग्रिड रिचार्ज करवाने पर चलता है। ग्रामीण इस ग्रिड का प्रयोग आवश्यकता अनुसार रिचार्ज करवाकर करते हैं।
डिगिहा गाँव में सौर ऊर्जा की नई क्रांति लाने वाले इलेक्ट्रिकल इंजीनियर श्याम पात्रा (38 वर्ष) बताते हैं, ”गाँवों में बिजली की कमी से सभी परेशान हैं। ऐसे में अगर कुछ पैसे खर्च कर लोगों को घर पर अपने अनुसार किसी भी समय बिजली मिल रही है तो वो उसके लिए तैयार हैं। हमने आधुनिक तरीके से सीतापुर, उन्नाव व अमेठी के 100 से ज़्यादा परिवारों तक स्मार्ट सोलर ग्रिड की मदद से बिजली पहुंचाई है।”
प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा बढ़ाने के लिए कई निजी कंपनियां निवेश कर रही हैं। इससे उत्तर प्रदेश में कुल सौर ऊर्जा उपयोग में करीब 60 फीसदी हिस्सा ग्रामीण जनसंख्या को हो गया है।