इस बाग का आम बिकता है 120 रुपए किलो, पकाने के लिए होता है जापानी तकनीक का प्रयोग

आम से ज्यदा मुनाफा कमाने के लिए आम बागवान जापानी बैगिंग तकनीक का सहारा ले रहे हैं। पका आम बिल्कुल पीला और चमकीला होता है, जो देखते ही बनता है। आम में किसी प्रकार का कोई दाग धब्बा नहीं होता है।
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लखनऊ। मौसम की मार और कीटनाशकों के प्रभाव से आम को बचाने के लिए बागवान जापानी बैगिंग तकनीक का सहारा ले रहे हैं। पेड़ पर सीधे पैक होने से आम के खराब और उसमें दाग लगने की संभावना न बराबर हो जाती है। बागवान इन आमों को ताइवान, हॉगकांग और चीन भेज रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

भारतीय आम का स्वाद विदेशियों को खूब भा रहा है। आम से ज्यदा मुनाफा कमाने के लिए आम बागवान जापानी बैगिंग तकनीक का सहारा ले रहे हैं। इस तकनीक से माध्यम से आम को एक मेडिकेटेड लिफाफे में पैक कर दिया जाता है। आम धीरे-धीरे इसी लिफाफे में बड़ा होता है और पकता है। इस मेडिकेटेड लिफाफे में पका आम बिल्कुल पीला और चमकीला होता है, जो देखते ही बनता है। आम में किसी प्रकार का कोई दाग धब्बा नहीं होता है। इस आम के दाम भी ज्यादा मिलते हैं।

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बेहतर स्वादिष्ट और देखने में होता से खूबसूरत

आम बागवान अभिमन्यु त्यागी (35वर्ष) का कहना है, ” जापानी बैगिंग तकनीक का प्रयोग कर हम लोग होने वाले घाटे को काफी हद तक कम कर लेते हैं। बैगिंग विधि से आम पकाने पर उसका रंग और स्वाद और बेहतर हो जाता है। बैग के अंदर होने के कारण आम पर किसी प्रकार का दाग-धब्बा नहीं आ पाता है। पकने के बाद आम देखने में बेहद खूबसूरत नजर आता है। मेडिकेटेड लिफाफे में आम पकाने की विधि मेरठ के किठौर, शाहजहांपुर, फतेहपुर, माछरा, जडोदा, सरधना में किया जा रहा है। बुलंदशहर के कुछ गाँवों के बागवान भी इस विधि का प्रयोग कर मुनाफा कमा रहे हैं। इसके साथ ही गुजरात के कुछ जिलों में भी बैगिंग विधि से आम को पकाने का काम किया जा रहा है।

मेरठ के उद्यान अधिकारी रामवीर सिंह ने बताया, ” किठौर क्षेत्र के कुछ किसान इस तकनीकि का प्रयोग आम पकाने में कर रहे हैं। इस तरह से पकाया हुआ आम स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। और भी लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे उन्हें लाभ मिल सके।”

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50 रुपए आता है खर्च

बागवान अयाज खान ने बताया,” हमारे बाग के आग को लोग काफी पसंद करते हैं। मैंने अपने 50 बीघे के बाग में इस तकनीक का प्रयोग करता हूं।इस तरफ से आम को पकाने में खर्च ज्यादा आता है। एक लिफाफे की कीमत आठ से दस रुपए होती है। इसके साथ ही आजकल मजदूर मिलने मुश्किल हो गए हैं। एक-एक आम को लिफाफे में पैक करना बड़ा मुश्किल काम होता है। ऐसे में मजदूर एक आम की पैकिंग के लिए बीस से तीस रुपए लेते हैं। आम को लिफाफे में पैक करने के लिए हम लोग 16,18 और बिस फिट ऊंची लोहे की सीढ़ियों की मदद लेते हैं।

40 दिन लिफाफे में बंद रहे हैं आम

देर में पकने वाले आम जैसे चौसा, लंगड़ा और खजरी को ही इस विधि से पकाया जाता है। जुलाई के पहले सप्ताह में आमों को लिफाफे में पैक करने का काम शुरू रहता है। करीब चालिस दिनों के बाद अगस्त के दूसरे सप्ताह में इन आमों को लिफाफे से बाहर निकाला जाता है। इस दौरान लिफाफे की देखरेख की करते हैं। पेड़ से आम को तोड़ने के बाद लिफाफे को सुरक्षित रख लिया जाता है। जो अगले साल काम आता है। एक लिफाफा तीन सीजन तक काम आता है। लिफाफे को कोरिया, ताइवान और चाइना से मंगाया जाता है।

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120 रुपए किलो बिकता है आम

अयाज ने बताया, ” आम तौर पर साधारण आम 30-40 रुपए प्रति किलो बिकते हैं, लेकिन हमारे बाग का आम 100 से 120 रुपए प्रति किलो बिक जाता है। जो लोग एक बार हमारे आम को देख लेते हैं वो इसे खरीदने से नहीं रोक पाते हैं, क्योंकि यह देखने में काफी चमकीला और खूबसूरत होता है। इसके साथी पंश्चिम बंगाल, मुंबई, चेन्नई से व्यापारी आते हैं आम खरीद कर ले जाते हैं। यहां से आम ले जाने के बाद बड़े व्यापारी विदेशों में इसकी सप्लाई करते हैं।  

इस विधि को अपनाने से आम के पुराने पेड़ों से भी होगा आम का अधिक उत्पादन  

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