वाराणसी के डीजल रेल इंजन कारखाने में डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक में बदलकर विश्व में इतिहास रच दिया है। डब्ल्यूएजीसी-3 श्रेणी के इस इंजन को इलेक्ट्रिक में बदला गया है। ये एकमात्र पहला ऐसा इंजन है जो कि 5000 अश्वशक्ति का है। ये काम दो महीने की अवधि में पूरा किया गया है। रेलवे के एक अधिकारी के मुताबिक इस कार्य को 22 दिसंबर 2017 को शुरू किया गया और 28 फरवरी 2018 को इस कार्य में सफलता मिल गई।
डीएसएल के महाप्रबंधक रश्मी गोयल के नेतृत्व में काम कर रहे अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन, चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, डीजल लोकोमोटिव वर्क्स (डीएलडब्ल्यू) और भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स के विशेषज्ञों और इंजीनियरों की एक टीम ने इस उपलब्धि को हासिल किया। ऐसे दो इंजनों को जोड़कर रेल सेवा के उपयोग में लाया जाएगा जिसकी क्षमता 10000 अश्वशक्ति होगी।
इसे ट्रायल के लिए आरडीएसओ (डीरेका अनुसंधान अभिकल्प तथा मानक संगठन) को भेजा जा रहा है। कुछ दिन पहले 2600 अश्वशक्ति क्षमता के दो पुराने डीजल रेल इंजन डीरेका लाए गए थे जिनमें से एक के पावर बदलने का काम पूरा हो गया है।
इस नए रेल इंजन की खास बात यह है कि यह एक साहसिक अवधारणा पर आधारित है जिसमें डब्ल्यूडीजी3, श्रेणी के दो डीजल इंजनों को एक स्थायी रूप से जोड़कर 12-एक्सल, 10000 अश्व शक्ति के विद्युत रेल इंजन में परिवर्तित किया गया है। रेल मंत्री पीयुष गोयल के मुताबिक भारतीय रेल अगले 5 सालों में डीजल इंजन को पूरी तरह से बाहर कर देगी और इलेक्ट्रिक इंजनों को ही जगह दी जाएगी।
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