कानपुर। बात लगभग 77 साल पुरानी है अंग्रेजी हुकूमत ने कानपुर में होली खेलने पर पाबंदी लगा दी थी क्योंकि उनको यह लगता था कहीं होली के नाम पर स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंक दिया जाए। ऐसे में आजादी के मतवालों ने होली में होली नहीं खेली बल्कि हटिया बाजार में तिरंगा भी फहरा दिया था। बस फिर क्या था यह बात अंग्रेजी हुक्मरानों को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी।
अंग्रेजों ने 40 क्रांतिकारी युवाओं को जेल में बंद कर दिया। बस फिर क्या था कानपुर के लोगों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट होकर जो संघर्ष किया और युवकों को जेल से मुक्त कराया। तब से लेकर आज तक कानपुर में होली के बाद जो होली खेली गई थी उसका रंग आज भी नजर आता है। यह एकलौता ऐसा त्यौहार है जो केवल कानपुर में मनाया जाता है और कानपुर की एक कहावत भी है कि यहां के लोग होली में होली खेले न खेले लेकिन अनुराधा नक्षत्र के दिन होली जरूर खेलते हैं। इसके पीछे एक तर्क है जो आजादी के पहले से चला आ रहा है।
लगभग 88 वर्षीय बिठूर निवासी घनश्याम शर्मा कांपती हुई आवाज में गर्व से बताते हैँ, “जब भारत गुलामी की जंजीरों से आजाद होने के लिए संघर्ष कर रहा था, तब कानपुर में आजादी के दीवाने क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुक्मरानों के मना करने के बावजूद होली के दिन ना केवल जमकर होली खेली, बल्कि हटिया बाज़ार के पार्क में तिरंगा भी लहरा दिया था।”
कांपते हाथों से छड़ी के सहारे खड़े होते हुए घनश्याम आगे बताते हैं, “इस हरकत पर अंग्रजों ने 40 क्रांतिकारी युवाओं को होली के दिन ही गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। इन क्रांतिकारियों को छुड़ाने के लिए कनपुरियों ने जो संघर्ष किया उससे अंग्रेजी हुक्मरानों की नींव हिल गयी थी। जिस दिन उन्हें छोड़ा गया उस दिन और उसी नक्षत्र में आज भी यहां होली खेली जाती है।”
इस होली की अगुवाई कालांतर में सेठ गुलाबचंद किया करते थे और अब उनके बाद वह कमान उनके पुत्र 79 वर्षीय सेठ मूलचंद (मुल्लू बाबू) ने यह बागडोर संभाल रखी है। प्रत्येक वर्ष हटिया बाजार ही मेले की तिथि को घोषित करता है और मेले में शहर के साथ-साथ दूसरे शहर और विदेशी भी शामिल होते हैं। शासन, प्रशासन, व्यापारी और प्रबुद्ध वर्ग के साथ सामाजिक संगठन एवं आम शहरी भी मेले में अपनी भागीदारी निभाते हैं।
आजादी के समय वानर सेना में शामिल स्वतंत्रता सेनानी धर्म कुमार सिंह बताते हैँ, “बरसों से चली आ रही इस परम्परा को हर साल निभाया जाता है। जिसका साथ शासन-प्रशासन भी देते हैँ। गंगा मेला के दिन यहां भीषण होली होती है। अब यह कानपुर की पहचान बन गई है।
1942 में मेले की पड़ी थी नींव
हटिया के स्थानीय निवासी हरिशंकर प्रसाद (58 वर्ष) ने बताया कि हटिया गंगा मेला की नींव साल 1942 में पड़ी थी। जब इस मोहल्ले में होली के दिन हटिया बाजार रज्जन बाबू पार्क में नौजवान क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बगैर पहले तिरंगा फहराया, फिर जमकर होली खेली। इसकी भनक जब अंग्रेजी हुक्मरानों को लग गई। जिसके बाद करीब एक दर्जन से भी ज्यादा अंग्रेज सिपाही घोड़े पर सवार होकर आए। झंडा उतारने लगे जिसको लेकर होली खेल रहें नौजवानों के बीच संघर्ष भी हुआ। अंग्रेज हुक्मरानों ने क्रांतिकारी नौजवान स्व. गुलाब चन्द्र सेठ, बुद्धूलाल मेहरोत्रा, नवीन शर्मा, विश्वनाथ टंडन, हमीद खान, गिरिधर शर्मा सहित करीब पैंतालीस लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।
गांधी जी और नेहरू जी ने किया था आंदोलन का समर्थन
क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करना अंग्रेजी हुक्मरानों के लिए गले की हड्डी बन गई। गिरफ्तारी के विरोध में कानपुर का पूरा बाजार बंद हो गया। मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता ने जहां अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। वहीं इनके समर्थन में समूचा कानपुर शहर और आसपास के ग्रामीण इलाकों का भी बाज़ार बंद हो गया। इस आंदोलन की आंच दो दिन में ही दिल्ली तक पहुंच गई। जिसके बाद पंडित नेहरू और गांधी जी ने इनके आंदोलन का समर्थन कर दिया।
मजदूर, बच्चे और महिलाएं बैठी धरने पर
मजदूरों ने फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया। ट्रांस्पोटरों ने चक्का जाम कर सड़कों पर ट्रकों को खड़ा कर दिया। सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। हटिया बाजार में मौजूद उस मोहल्ले के सौ से ज्यादा घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया। मोहल्ले की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे उसी पार्क में धरने पर बैठ गए। पूरी शहर की जनता ने अपने चेहरे से रंग नहीं उतारे, यूं ही लोग घूमते रहे। शहर के लोग दिनभर हटिया बाजार में ही इक्कठा हो जाते और पांच बजे के बाद ही लोग अपने घरों में वापस चले जाते।
अनुराधा नक्षत्र के दिन जब नौजवानों को जेल से रिहा किया जा रहा था उस दिन पूरा शहर उन्हें लेने के लिए जेल के बाहर इकठ्ठा हो गया था। जेल से रिहा हुए क्रांतिवीरों के चहरे पर रंग लगे हुए थे। जेल से रिहा होने के बाद जुलुस पूरा शहर घूमते हुए हटिया बाज़ार में आकर खत्म हुआ। उसके बाद क्रांतिवीरों के रिहाई को लेकर यहां जमकर होली खेली गई।1942 में हटिया में बाजार पार्क में क्रांतिकारियों द्वारा झंडा फहराया गया था। उस समय हटिया में बाजार लगता था जिसके मेरे पिताजी ठेकेदार थे। जब होली पर झंडा फहराया गया था तब सब लोग वहां नाच गा रहे थे और रंग खेल रहे थे। तभी वहां से गुजर रहे अंग्रेजी सैनिकों ने रंग को गंदा कहकर लोगों को पकड़ कर जेल भेज दिया। शहर अस्त व्यस्त हो गया। जनता ने आंदोलन शुरू कर दिया। फिर आठ दिन बाद क्रांतिकारियों को छोड़ गया। अनुराधा नक्षत्र के दिन रिहाई हुई थी उस दिन कानपुरवासियों ने होली मनाई थी। वही परंपरा आज भी गंगा मेले के नाम से निर्वहन की जा रही है।
सेठ मूलचंद, गंगा मेला आयोजनकर्ता
गिरफ्तारी के आठवें दिन रिहा हुए क्रांतिकारी
हटिया बाज़ार के रहने वाले उमाशंकर द्विवेदी के मुताबिक कानपुर शहर में मीले बंद, कोई कारोबार नहीं होने से अंग्रेजी हुक्मरान परेशान हो गए। बात सात समंदर पार तक पहुंची, चौथे ही दिन अंग्रेज का एक बड़ा अफसर कानपुर पहुंचा। शहर के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को बात करने के लिए बुलाया। लोगों ने उसे हटिया बाज़ार के पार्क में आकर बात करने को कहा तो उसने मना कर दिया। कहते हैं आखिर कर उस अंग्रेज अफसर को उस पार्क में आना पड़ा, जहां करीब चार घंटे तक बातचीत चली। उसके बाद सभी क्रांतिकारियों को होली के आठवें दिन अनुराधा नक्षत्र के दिन रिहा कर दिया गया।
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