जलवायु शरणार्थी बनने पर क्यों मज़बूर हैं इस गाँव के लोग

भारत में बाढ़, तूफ़ान, सूखा और जल संकट के कारण अपने घरों को छोड़ने के लिए मज़बूर लोगों की संख्या सबसे अधिक है। गर्मी से बढ़ते जल संकट से चित्रकूट के उचचड़ी गाँव के लोग अपना घर छोड़कर शरणार्थी बनने की तैयारी कर रहे हैं।
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चित्रकूट, उत्तर प्रदेश। सुखई और उनकी पत्नी राजमती के लिए जीवन एक बुरा सपना बन गया है, क्योंकि अपना घर छोड़कर बहुत जल्द उन्हें शरणार्थी बनना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले के उचचड़ी गाँव में रहने वाले इस किसान दंपति को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके गाँव में पानी के सभी स्रोत सूख गए हैं।

“यहां के हालात बहुत खराब हैं। हमारे पास अपनी फसलों की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी हुआ करता था,लेकिन अब पानी का स्तर इतना नीचे चला गया है कि हमें अपनी दैनिक ज़रूरतों के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता।”, 30 साल के सुखई ने कहा।

“हमें हर दिन कुएँ से पानी लाने के लिए मीलों चलना पड़ता है और यह एक बहुत बड़ा संघर्ष है, “उन्होंने कहा।

उनकी 24 वर्षीय पत्नी राजमती ने कहा कि स्थिति इतनी ख़राब है कि लोग हफ़्तों तक नहा या अपने कपड़े नहीं धो पाते हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “इससे हमारी सेहत पर भी असर पड़ा है। हम अपने कपड़े ठीक से नहीं धो पाते हैं और साफ पानी की कमी के कारण बीमारियाँ हो जाती हैं।”

बढ़ते सँघर्ष से तंग आकर सुखई और राजमती गाँव छोड़कर एक ऐसे शहर में जाने की योजना बना रहे हैं जहाँ उन्हें निर्माण स्थलों पर छोटे मज़दूरों के रूप में काम मिल सके। वे अकेले नहीं हैं क्योंकि पानी के संकट से परेशान कई गाँव वाले पलायन कर रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन से विस्थापित

आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (आईडीएमसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक भारत में 2020 में नए आंतरिक विस्थापन हुए जिसमें 9 मिलियन (90 लाख) से अधिक लोग जलवायु संबंधी आपदाओं जैसे बाढ़, चक्रवात, और सूखा की वजह से विस्थापित हुए।

एक्शन एड इंटरनेशनल में जलवायु परिवर्तन पर ग्लोबल लीड हरजीत सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “स्थिति बहुत चिंताजनक है, क्योंकि आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों का विस्थापन बढ़ने की आशंका है। हमें जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों को दूर करने और प्रभावित समुदायों का समर्थन करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। ” उन्होंने कहा।

“तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक है फ‍िर भी लोग कई दिनों तक नहाते नहीं, क्योकि पानी दुर्लभ है ” चित्रकूट में विद्या धाम समिति के गैर-लाभकारी संगठन के संयोजक राजा भैया ने गाँव कनेक्शन को बताया।

बढ़ते संघर्ष

उचचड़ी गाँव में सिर्फ एक हैंडपम्प है जो पानी का एक मात्र ज़रिया है और वह भी दुर्लभ होता जा रहा है । महिलाएँ सुबह चार बजे से पानी लेने के लिए अपने बर्तनों के साथ लाइन में लग जाती हैं, कभी- कभी पानी के लिए मार पीट की नौबत आ जाती है।

“यह हिंसा जल संकट के कारण हुई हताशा की अभिव्यक्ति मात्र है।” राजा भैया ने कहा कि सभी के लिए पानी की समान पहुँच सुनिश्चित करने की तुरंत जरुरत है।

भारत सरकार ने पानी की कमी के मुद्दे को हल करने के लिए जल शक्ति अभियान, जल संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय अभियान और प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना सहित कई पहलें शुरू की हैं, जिसका उद्देश्य सिंचाई प्रणालियों की दक्षता में वृद्धि करना है। हालाँकि इन प्रयासों के अभी भी महत्वपूर्ण परिणाम नहीं मिले हैं।

हरजीत सिंह ने कहा, “सरकार की पहल सही दिशा में एक कदम है, लेकिन समस्या के पैमाने को दूर करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।”

हर घर जल

“सरकार ने चित्रकूट में पानी के संकट को दूर करने के लिए चेक डैम के निर्माण और हैंडपंपों की स्थापना सहित कई पहल शुरू की है । हम इस दिशा में काम कर रहे हैं।” उत्तर प्रदेश में जल संसाधन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने कहा। उन्होंने कहा कि हर घर जल (हर घर में पाइप से पानी) जैसी योजनाएँ शुरू की गई हैं और चित्रकूट एक फोकस क्षेत्र है।

हर घर जल डेटा के अनुसार, 18 मई, 2023 तक देश के 61.81 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन प्रदान किया गया है।

उत्तर प्रदेश में 43 प्रतिशत से थोड़ा अधिक ग्रामीण परिवारों के पास नल कनेक्शन हैं। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक चित्रकूट में कवरेज 77.38 प्रतिशत है। जिले में 563 गाँव हैं, जिनमें से 101 गाँवों में 100 प्रतिशत नल के पानी के कनेक्शन हैं, 415 गाँवों में जलापूर्ति कार्य प्रगति पर है; और 47 गांवों में अभी काम शुरू होना बाकी है।

हर घर जल डेटा के अनुसार, 18 मई, 2023 तक देश के 61.81 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को घरेलू नल कनेक्शन प्रदान किया गया है।

हर घर जल डेटा के अनुसार, 18 मई, 2023 तक देश के 61.81 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को घरेलू नल कनेक्शन प्रदान किया गया है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल पर्यावरण तक ही सीमित नहीं है। जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञों का कहना है कि इसके गंभीर सामाजिक और आर्थिक परिणाम भी हैं। चूंकि पानी दुर्लभ है, संसाधनों पर संघर्ष बढ़ने की संभावना है, जिससे सामाजिक अशांति और विस्थापन हो सकता है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “जलवायु परिवर्तन एक धीमी हिंसा है जो हमारे समाज के सबसे कमज़ोर लोगों को प्रभावित कर रही है। इसके प्रभाव को कम करें।”

नारायण ने कहा, “जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए हमें स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करने की जरुरत है कि सबसे कमजोर समुदायों की स्वच्छ पानी, भोजन और आश्रय तक पहुँच हो। “

सुखई और राजमती का भविष्य अनिश्चित है। वे अपने बच्चों के भविष्य और अपने समुदाय के अस्तित्व को लेकर चिंतित हैं। सुखई ने कहा, “हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों का जीवन हमसे बेहतर हो। हम चाहते हैं कि उनके पास पानी और भोजन हो और भविष्य हो।”

सुखई और राजमती की कहानी जलवायु संकट की मानवीय लागत और हाशिए के समुदायों के जीवन पर इसके गहरे प्रभाव की याद दिलाती है। राजमती ने कहा, “हम ज़्यादा कुछ नहीं मांग रहे हैं, बस पीने के लिए और अपनी फसल उगाने के लिए थोड़ा पानी माँग रहे हैं। हम अपना घर नहीं छोड़ना चाहते हैं, लेकिन अगर चीजें नहीं सुधरती हैं तो हमें छोड़ना पड़ सकता है।”

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