एक क्लास के बाहर गहरे नीले और सफेद यूनिफार्म में बैठी कुछ लड़कियाँ कपड़ा काटने और सिलने में व्यस्त हैं। ये लड़कियाँ अपनी सहेलियों और आस पड़ोस की महिलाओं के साथ सैनिटरी पैड बना रही हैं; पैड बनाना स्कूल में उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा है।
ये है पारिजात एकेडमी, जिसकी दीवार पर लिखा स्लोगन ‘ब्लीड विद डिग्निटी’ आगंतुकों का स्वागत करता है।
“मैं अपना सैनिटरी पैड खुद बनाती हूँ; मैं इन्हें कम से कम दो साल तक इस्तेमाल कर सकती हूँ, इसे दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ” पारिजात एकेडमी में कक्षा 10 की छात्रा माजोनी तुमुंग ने गाँव कनेक्शन को बताया।
पूर्वोत्तर भारत में गुवाहाटी के बाहरी इलाके में पामोही गाँव में स्थित पारिजात एकेडमी, मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाओं को तोड़ रही है और ग्रामीण लड़कियों को मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में शिक्षित कर रही है।
गाँव के मुख्य रूप से कार्बी जनजाति समुदाय के बीच मासिक धर्म अब तक एक वर्जित विषय बना हुआ है और हर साल बड़ी संख्या में लड़कियां युवावस्था में पहुंचने के बाद स्कूल छोड़ देती हैं। एक कारण स्वच्छता सुविधाओं की कमी और दूसरा पीरियड्स से जुड़ा कलंक और शर्म है।
गाँव का या स्कूल पुरुष , महिला या छात्राओं के बीच मासिक धर्म पर खुलकर चर्चा करके इस प्रवृत्ति को कम करने की कोशिश कर रहा है।
साल 2017 से, स्कूल की छात्राएँ अपने लिए सैनिटरी पैड बना रही हैं। वे इसे इन्हें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को उपहार के तौर पर देती भी हैं। अब तक, स्कूल ने लगभग 4,000 महिलाओं को मुफ्त पैड दिया है।
पमोही गाँव से ताल्लुक रखने वाले उत्तम टेरॉन का इस स्कूल के पीछे का दिमाग है, जिसे उन्होंने बीस साल पहले 2003 में स्थापित किया था। कॉटन कॉलेज, गुवाहाटी से विज्ञान स्नातक, वह इस बात से परेशान थे कि क्षेत्र में आदिवासी समुदायों के बीच शिक्षा प्राथमिकता नहीं थी; और इसके बारे में कुछ करने का फैसला किया।
“गाँवों के आदिवासी निवासी अपने बच्चों को शिक्षित करने में सक्षम नहीं थे; अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैंने निजी ट्यूशन दी, और बचाए गए पैसे से, मैंने गौशाला में सिर्फ एक डेस्क और एक बेंच के साथ एक गैर-लाभकारी शिक्षण केंद्र शुरू किया। ” 47 वर्षीय उत्तम टेरॉन ने याद किया।
टेरॉन, जो स्कूल के निदेशक भी हैं, ने कहा, “चार छात्रों के साथ शुरू हुआ शिक्षण केंद्र इस पूर्ण विद्यालय, पारिजात एकेडमी में बदल गया है, जिसमें नर्सरी और कक्षा 10 के बीच लगभग 300 वंचित छात्र पढ़ते हैं।”
स्कूल में मुफ्त पढ़ाई होती है और लोगों की मदद से ये चलता है। इसमें 21 शिक्षक हैं जो ज़्यादातर स्वैच्छिक सेवा करते हैं और जब स्कूल के पास संसाधन होते हैं तब उन्हें भुगतान किया जाता है।
पारिजात अकादमी में पमोही, महगुआपरा, देओसुतल, गारचुक, मैना खोरांग, धालबामा, नौगांव, गारोघुली, गरभंगा, नतुन गरभंगा, उलुबरी, पहमजिला, जालुकपहम, मातंग, नोंगतारे, पिलिंग्कु और उमसेन गाँव से बच्चे आते हैं।
अब स्कूल की एक और शाखा पामोही से लगभग 45 किलोमीटर दूर सुदूर गर्भंगा आरक्षित वन में खुल गई है, जहाँ पर वहाँ के आदिवासी गाँव के बच्चे पढ़ते हैं। यह स्कूल कक्षा 1 से कक्षा 5 तक है।
पारिजात अकादमी की दोनों शाखाओं में दूर-दराज के क्षेत्रों से आने वाले पहली पीढ़ी के शिक्षार्थियों के लिए स्कूल परिसरों के साथ आवासीय सुविधाओं का प्रावधान है। पमोही के छात्रावास में 65 छात्र हैं और गर्भंगा के छात्रावास में 52 छात्र हैं। छात्रावास की सुविधाएं भी मुफ्त हैं।
“यहाँ हॉस्टल की सुविधाएँ बहुत अच्छी हैं; हमें अच्छी शिक्षा मिलती है जो मेरे गाँव गर्भंगा में मिलना असंभव है। ” कक्षा 9 की छात्रा दिगंता टेरॉन ने कहा, जो तीन साल से पमोही छात्रावास में रह रहीं हैं।
जब उत्तम ने गाँव के लोगों और बच्चों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया, तो उन्हें एहसास हुआ कि वे मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में बहुत कम जानते हैं। उन्होंने कहा, “मासिक धर्म के बारे में कोई जागरूकता नहीं थी और उन्हें नहीं पता था कि महीने के उन दिनों में खुद को कैसे साफ और स्वस्थ रखा जाए।”
टेरॉन ने अपनी पत्नी ऐमोनी तुमुंग की मदद से जागरूकता अभियान शुरू किया, लेकिन एक अंतर के साथ। उन्होंने एक पेशेवर कलाकार को एक दीवार पेंटिंग बनाने के लिए नियुक्त किया, जिस पर ‘ब्लीड विद डिग्निटी’ शब्द साहसपूर्वक और प्रमुखता से लिखे गए थे।
टेरॉन ने कहा, “इरादा लड़कियों को सहज महसूस कराना और लड़कों को यह बताना था कि मासिक धर्म एक प्राकृतिक घटना है।”
2017 में, यूएसए स्थित गैर-लाभकारी संस्था, द डे फॉर गर्ल्स ने लड़कियों के लिए सैनिटरी नैपकिन बनाने की प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित करने के लिए तुमुंग और टेरॉन से संपर्क किया। तुमुंग ने गाँव कनेक्शन को बताया, “गाँव की लड़कियों और महिलाओं ने सैनिटरी पैड बनाए और उन्हें आस-पास के गाँवों में वितरित किया।”
पिछले कुछ वर्षों में, तुमुंग बैदेओ (असमिया में बैदेओ का अर्थ मैडम होता है) के मार्गदर्शन में, स्कूल की लड़कियाँ अपने दोबारा इस्तेमाल और धोने योग्य सैनिटरी पैड बना रही हैं, और दूसरों को उपहार भी दे रही हैं।
तुमुंग ने सैनिटरी पैड बनाने की प्रक्रिया का वर्णन किया, जो कपड़े पर आधारित होते हैं और जलन या संक्रमण का कारण नहीं बनते हैं।
“एक लीक-प्रूफ पॉलीयुरेथेन लेमिनेट फैब्रिक अंदर छिपा हुआ है जो इसे पूरी तरह से सुरक्षित, स्वच्छ और लागत प्रभावी बनाता है; हम ये पैड बेचते भी हैं, छोटे पैड की कीमत 80 रुपये और बड़े पैड की कीमत 110 रुपये है। हम थोक ऑर्डर भी लेते हैं। ” तुमुंग ने कहा।
क्योंकि ये सैनिटरी पैड धोने योग्य और दोबारा इस्तेमाल करने लायक है, इसलिए इनकी अच्छी तरह से देखभाल करके और हर बार धोने के बाद इन्हें धूप में सुखाकर इन्हें दो साल तक आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।
मासिक धर्म संबंधी जागरूकता के अलावा, पारिजात एकेडमी बच्चों को, उम्र या लिंग की परवाह किए बिना, गुड टच और बैड टच के बीच अंतर के बारे में शिक्षित करने पर ज़ोर देती है।
टेरॉन ने कहा, “ग्रामीण इलाकों में बहुत से लोग ऐसे विषयों पर खुलकर बात नहीं करते हैं; हालाँकि, हमारे स्कूल में हमने इसके महत्व को समझा है और अपने बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में शिक्षित किया है।”
टेरॉन के लिए, उनका सपना अगले पाँच वर्षों में दूरदराज के गाँवों के कम से कम एक हज़ार से अधिक छात्राओं तक पहुँचना है, जबकि तुमुंग का सपना क्षेत्र की सभी लड़कियों और महिलाओं के लिए टिकाऊ सैनिटरी नैपकिन को किफ़ायती बनाना है।
स्कूल की प्रिंसिपल दीपांजलि भगवती ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यह एक असाधारण स्कूल है और मैं इस जगह से जुड़कर धन्य महसूस करती हूँ; स्कूल हर बच्चे के कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, पाठ्येतर गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है और विज्ञान प्रदर्शनी आयोजित करता है।”