पोलियो से ग्रस्त, मगर कभी हिम्मत नहीं हारी- साइकिल से लोगों के घर जाकर उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने वाली एक आशा कार्यकर्ता

आशा कार्यकर्ता अन्नपूर्णा सिंह खुद पोलियो से पीड़ित हैं। लेकिन उनकी यह शारीरिक परेशानी कभी उनके काम के आड़े नहीं आई। कानपुर में अपनी देखरेख में आने वाले सभी बच्चों को समय पर टीका लगाया जाए, इस जिम्मेदारी को वह पूरी शिद्दत के साथ निभाती हैं। वह बच्चों के माता-पिता को पोलियो के टीके के महत्व के बारे में बताती हैं और संस्थागत प्रसव में मदद भी करती हैं।
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कानपुर, उत्तर प्रदेश। अन्नपूर्णा सिंह अपनी रसोई के फर्श पर बैठकर खाना बनाने में व्यस्त हैं। उनके घर की हालत ठीक नहीं है। कमरे समेत बाकी हिस्सों की तरह रसोई भी पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है। दीवारों में दरारें, सफेदी की छिली हुई परतें, सीमेंट से बाहर झांकती ईंटें और पर्दे के बदले अखबारों से ढकी खिड़कियां उनके घर और परिवार की आर्थिक स्थिति को बयां करने के लिए काफी हैं।

उत्तर प्रदेश के कानपुर में आशा कार्यकर्ता अन्नपूर्णा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यह हमारा अपना घर नहीं है। इस घर के लिए हर महीने 4,000 रुपये किराया देना पड़ता है। और कभी-कभी तो हमारे लिए इतना पैसा निकालना भी मुश्किल हो जाता है।” उन्होंने कहा कि समय पर किराया न देने की वजह से उनके परिवार को कई बार घर बदलना पड़ा है। उन्हें इस घर के मालिक से भी लगातार बेदखल किए जाने की धमकी मिलती रही है।

42 साल की अन्नपूर्णा गरीबी और मुश्किलों के बावजूद अपने काम को बड़ी निष्ठा के साथ पूरा करती है। वह खुद एक पैर में पोलियो से पीड़ित है और अच्छे से जानती है कि जिस क्षेत्र में वह काम कर रहीं हैं, वहां बच्चों को समय पर टीका लगाये जाने का कितना महत्व है। एक अग्रिम पंक्ति की स्वास्थ्य कार्यकर्ता के तौर पर अन्नपूर्णा जेपी नगर, मनोहर नगर, कानपुर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से जुड़ी हुई हैं।

वह खुद एक पैर में पोलियो से पीड़ित है और अच्छे से जानती है कि जिस क्षेत्र में वह काम कर रहीं हैं, वहां बच्चों को समय पर टीका लगाये जाने का कितना महत्व है

वह खुद एक पैर में पोलियो से पीड़ित है और अच्छे से जानती है कि जिस क्षेत्र में वह काम कर रहीं हैं, वहां बच्चों को समय पर टीका लगाये जाने का कितना महत्व है

अन्नपूर्णा का दिन सुबह जल्दी शुरू हो जाता है। उनके पति शिशुपाल सिंह सुबह 7 बजे काम के लिए निकलते हैं और रात को 9 बजे लौटते है। इससे पहले उनके लिए खाना बनाना और पैक करना अन्नपूर्णा का रोज का काम है। अपने पति के तुरंत बाद वह भी घर से निकल जाती है और पूरे दिन घूम-घूम कर काम करने के बाद शाम को घर वापस आती है।

उन्होंने अपनी शारीरिक समस्याओं को कभी अपने काम के आड़े नहीं आने दिया है। वह अपने इलाके के हर घर में जाती हैं, माता-पिता को उनके बच्चों के लिए पोलियो के टीके और अन्य टीकाकरण के महत्व के बारे में परामर्श देती हैं। उनका सारा दिन टीकों की जानकारी देने, बच्चों को पोलियो की ड्राप पिलाने और महिलाओं को उनके प्रसव में सहायता करने में व्यस्त रहता है।

अन्नपूर्णा ने कहा, “जब मैं छोटे बच्चों की किलकारियों को सुनती हूं और उनके माता-पिता के खुश चेहरों को देखती हूं तो सारी थकान दूर हो जाती है।” वह आगे कहती हैं, “ऐसे कई दिन होते हैं, जब मुझे खाना खाने का समय भी नहीं मिल पाता है। कभी किसी महिला की डिलीवरी करानी होती है, तो कभी किसी का पोलियो का टीका लगना बाकी होता है, या फिर कभी किसी मरीज के घर तक कुछ दवाएं पहुंचानी पड़ती हैं।”

अन्नपूर्णा और उनके 48 वर्षीय पति शिशुपाल अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बेहतर तरीके से निभाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका एक 20 साल का बेटा है, जिसका नाम यथार्थ है। उसने अभी-अभी इंटर की परीक्षा पास की है। उनकी 17 साल की बेटी योग्यता एक सरकारी स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा है। उन्होंने कहा, ” हमें तो गरीबी, अभाव और मुश्किलों में जीवन जीने की आदत हो चुकी है। लेकिन अगर हमारे बच्चे पढ़-लिख जाते हैं और अच्छी नौकरियां पा लेते हैं, तो मेरे लिए इससे बढ़कर खुशी की बात क्या होगी।”

अन्नपूर्णा के मुताबिक, एक आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करने पर उन्हें हर महीने 2,000 रुपये मिलते हैं। उनके पति कानपुर में एक प्लास्टिक कारखाने में काम करते हैं। वह 8 से 10 हजार रुपये महीने कमा लेते हैं। इतने पैसों से बमुश्किल ही परिवार का गुजारा चल पाता है।

शिशुपाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने अपनी बहनों की शादी कराने के लिए गाँव में जो भी थोड़ी बहुत जमीन थी, उसे बेच दिया। अपने बच्चों को पढ़ाना, उनकी जरूरतों को पूरा करना, घर का किराया देना और रोज के लिए खाना जुटाना एक संघर्ष है।”

लेकिन उन्हें अन्नपूर्णा पर गर्व है। वह कहते हैं, ” वह पोलियो से ग्रस्त होने के बावजूद, घर चलाने के लिए मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है।”

सहायक नर्स और मिडवाइफ (एएनएम) पल्लवी पांडे भी अन्नपूर्णा की तारीफ करती हैं।

सहायक नर्स और मिडवाइफ (एएनएम) पल्लवी पांडे भी अन्नपूर्णा की तारीफ करती हैं।

2018 में एक अखबार के विज्ञापन को देखकर अन्नपूर्णा ने आशा कार्यकर्ता बनने के लिए आवेदन किया था। दो साल बाद जब 2020 की शुरुआत में कोविड महामारी के चलते देश में लॉकडाउन लग गया तो इन फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं का काम काफी बढ़ गया था।

वह याद करते हुए बताती हैं, “रातों-रात हमारी ज़िम्मेदारियां बढ़ गईं। मुझे अपने पोलियो ग्रस्त पैर के साथ लोगों के घरों में दवाइयां पहुंचाने के लिए कई चक्कर लगाने पड़ते थे, कभी-कभी तीन या चार सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थीं। तब खुद की देखभाल करने और खुद को वायरस से बचाने का मानसिक दबाव भी था। ” यह शारीरिक और भावनात्मक रूप से थका देने वाला काम था।

सहायक नर्स और मिडवाइफ (एएनएम) पल्लवी पांडे ने भी अन्नपूर्णा की तारीफ की। पांडे ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने साथ में काम किया है। मैंने उन्हें कभी किसी काम के लिए मना करते नहीं देखा। जब भी मैं उसे फोन करती हूं, वह अपनी साइकिल पर होती है। बिना किसी शिकायत के हमेशा मदद के लिए तैयार।”

अन्नपूर्णा, पल्लवी पांडे के साथ टीकाकरण शिविर आयोजित करती हैं, जहां वे बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाती हैं या उन्हें अन्य जरूरी टीके लगाती हैं।

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