मिडिल क्लास के होने के नाते महसूस कर लेता हूं कि कौन बच्चा पढ़ने वाला है या नहीं और उनमें से वे बच्चे, जो अपनी आर्थिक तंगियों के कारण अपनी पढ़ाई को जारी नहीं रख सकते तो उसके प्रति मेरी खास सहानुभूति रहती है। उसी में से आज एक बच्चे की कहानी है।
जिसका नाम है रमेश चंद्र यादव, आर्थिक तंगियों से जूझ रहे रमेश के परिवार ने फैसला किया कि वे अब रमेश को अपने चाचा के पास मुंबई भेज देंगे ताकि परिवार की कुछ आर्थिक बदहाली दूर कर सके, रमेश के चाचा मुंबई में दही का कारोबार किया करते थे।
रमेश से रहा न गया और वो पहुँच गया मेरे पास और अपनी पूरी कहानी मुझे सुना दी। अपनी इच्छा भी आज खुल कर बता दिया कि वो मिलिट्री ज्वाइन करके देश की सेवा करना चाहता है।
मैंने उसे मशवरा दिया कि तुम्हें पहले एनसीसी ज्वाइन करना चीहिए और अपने इलाके में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाए ताकि कम से कम खुद का खर्च तो निकल जाए। बस यहीं से रमेश ने भाग-दौड़ की प्रैक्टिस शुरू कर दी। एनसीसी का फिजिकल एग्ज़ाम भी क्वालीफाई कर लिया और बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगा।
उस समय मेरे भी बच्चे काफी छोटे थे तो मेरा ज्यादा खर्च नहीं था। तो मैं कभी उसे किताबें दिला देता तो कभी कपड़े। फिर एक दिन व भी आया जब रमेश ने मिलिट्री का एग्ज़ाम क्वालीफाई कर लिया।
आज रमेश आज भारतीय सेना में है। वे अपने गाँव के बच्चों के लिए हर तरह की मदद करने को तैयार रहता है। उसकी खासियत है कि जब भी वो गाँव आता तो मुझसे जरूरी मिलता है।
यह स्टोरी गाँव कनेक्शन के इंटर्न दानिश इकबाल ने लिखी है।
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