सिकटौर (गोरखपुर), उत्तर प्रदेश। साफ-सुथरे कमरे में एक कपड़े की डोरी बंधी है। इस पर आपको कपड़े नहीं बल्कि किताबें लटकी नजर आएंगी, जिन्हें कपड़े सुखाने वाली चिमटियों से कसकर टांगा गया है।
वहीं कमरे की दीवारों पर चारों ओर बच्चों के बनाए रंग-बिरंगे चित्र सजे हैं।
यह नजारा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के खोराबार ब्लॉक के सिकटौर प्राइमरी स्कूल की लाइब्रेरी का है। यह पुस्कालय छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय है, जहां अक्सर फर्श पर बिछी दरियों पर किताबों को हाथ में लिए बच्चे बैठे या लेटे नजर आते हैं।
फिलहाल इस कमरे को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि जनवरी 2019 से पहले इसकी हालत कैसी थी। न तो इसके दीवारों पर सफेदी थी और न ही साफ-सफाई। यह कमरा पूरी तरह से जर्जर था। यह श्वेता सिंह ही थीं, जिन्होंने इसे साफ करने और इसे सरकारी प्राथमिक विद्यालय के पहले पुस्तकालय में बदलने का फैसला किया।
श्वेता सिंह की कक्षा तीन को पढ़ाने के लिए 2010 में सिकतौर प्राथमिक विद्यालय में पोस्टिंग हुई थी। 2018 में उन्होंने एक वर्कशॉप में भाग लिया। वहां उन्होंने सामूहिक सहभागिता या समुदाय की मदद से पुस्तक दान में लेकर एक लाइब्रेरी बनाना सीखा था।
श्वेता सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं वहां मेरठ के एक शिक्षक से मिली, जिन्होंने एक लाइब्रेरी बनाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किताबें दान करने की अपील की थी। तब मुझे लगा कि मैं भी ऐसा कर सकती हूं।” उन्होंने किताबें दान देने के लिए फेसबुक पर लिखा और बहुत जल्द ही उनके पास किताबों का ढेर लग गया। अब समस्या उन किताबों को रखने और पढ़ने के लिए एक जगह खोजने की थी।
उन्होंने कहा, “मैंने स्कूल में खाली पड़े कमरे की मरम्मत के लिए गाँव के प्रधान से मुलाकात की। उनके सहयोग से हमने लाइब्रेरी का बुनियादी ढांचा तैयार कर लिया।”
इसके बाद शिक्षिका ने अपने छात्रों से चित्र बनाने के लिए कहा और फिर उन तस्वीरों से कमरे की दीवारों को सजाया गया।
37 साल की शिक्षिका ने हंसते हुए कहा, “उन्हें अपनी बनाई गई तस्वीरों को कमरे में लगा देख काफी अच्छा लगता है। वे दोस्तों को अपने बनाए गए चित्रों को दिखाते रहते हैं।”
जब शिक्षिका गाँव कनेक्शन से बात कर रही थी, उसी दौरान करीने से गुंथे हुए बालों और भूरी व गुलाबी यूनिफार्म पहने अभिशिखा शर्मा अकबर बीरबल की कहानियों के संग्रह से अपनी पसंदीदा किताब उठाने लगती है।
आठ साल की इस छात्रा ने कहा, “मुझे लाइब्रेरी में आना और किताबें पढ़ना बहुत पसंद है। यहां ढेरों कहानियां और तस्वीरें हैं। मैडम हमसे यहां खेल भी करवाती हैं।”
लाइब्रेरी में खेल खिलाती टीचर
श्वेता सिंह लाइब्रेरी में बच्चों के साथ वर्ड गेम खेलती हैं। बच्चे दरी पर एक घेरा बनाते हुए बैठते हैं और फिर अपने हाथ में डाइस लेकर उसे जमीन पर फेंकते हैं। डाइस के हर तरफ वर्णमाला का एक अक्षर बना है। जो भी अक्षर सामने आएगा, बच्चों को उस अक्षर से शुरू होने वाला एक शब्द बोलना होता है।
श्वेता सिंह का मानना है कि जब से लाइब्रेरी की शुरुआत हुई है, तब से बच्चों के पढ़ने की स्किल में खासा सुधार हुआ है। श्वेता सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इन किताबों के रंगीन चित्र और बड़े फॉन्ट बच्चों को अपनी तरफ खींचते हैं. इसकी वजह से वे ज्यादा से ज्यादा किताबों को पढ़ रहे हैं।”
टीचर ने कहा कि बच्चे ध्यान से चीजों को देख रहे हैं और उनसे काफी कुछ सीख रहे हैं. उदाहरण के लिए तीसरी क्लास में पढ़ने वाली सिमरन ने जब हाथी-कछुआ की कहानी पढ़ी, तो उसने न सिर्फ कहानी के मुख्य पात्रों के चित्रों को ध्यान से देखा बल्कि घास, बहते पानी और पेड़ों को भी नोटिस किया।
सिमरन की क्लास में पढ़ने वाले रघुनंदन निषाद ने कहा कि जब वह स्कूल से घर वापस गया तो उसने अपने छोटे भाई को लाइब्रेरी में पढ़ी कहानियाँ सुनाईं थीं।
पुस्तकालय में एक स्टेशनरी बैंक भी है।
टीचर ने समझाते हुए कहा, “जो छात्र कभी-कभी घर से स्टेशनरी लाना भूल जाते हैं या फिर उन्हें खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं, वे इस बैंक से कॉपी, पेंसिल, इरेज़र और कलर ले सकते हैं।”
उन्होंने बताया, “इसके लिए मैंने एक रजिस्टर बनाया हुआ है। जो भी इस बैंक से कुछ भी उधार लेता है, उसका इस रजिस्टर में हम नाम लिख लेते हैं। बाद में वह अपनी सुविधा के अनुसार लिए गए समान को वापस कर देता है।”
श्वेता सिंह ने कहा कि लाइब्रेरी अपने मिशन में कामयाब रही है। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “इसे शुरू करना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था और अब यह सिकतौर प्राइमरी स्कूल में बच्चों की सबसे पसंदीदा जगह बन गई है।”
शिक्षा बजट 2023 में इस तरह के पुस्तकालयों को बढ़ावा देते हुए, ग्रामीण बच्चों में पढ़ने की आदत डालने पर जोर दिया गया है।
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