स्कूली बच्चों के अख़बार का असर, गाँव में बंद हुई शराब की दुकान

यूपी के सीतापुर गाँव का एक स्कूल सामाजिक बुराइयों को दूर करने की कोशश में मिसाल कायम कर रहा है। स्कूल के प्रिंसिपल बच्चो को विज्ञान की पढ़ाई के साथ- साथ बुराई के ख़िलाफ आवाज़ उठाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यहाँ के बच्चे एक पाक्षिक अख़बार भी निकालते हैं, जिसमें लिखी बातों का गाँव में अब बड़ा असर होता हैं।
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सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। सीतापुर के एक गाँव में सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल योगेंद्र कुमार पांडे के लिए ‘बालमित्र’ किसी तमगा से कम नहीं है। जब भी वे उसे देखते हैं, फूले नहीं समाते हैं। ये वो अख़बार है जो उनके स्कूल के बच्चे हाथों से लिख कर तैयार करते हैं।

लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर खैराबाद ब्लॉक के जमैयतपुर का पूर्व माध्यमिक विद्यालय अब ‘बालमित्र’ से ज़्यादा जाने लगा है। गाँव के लोग इस अख़बार को कितनी गंभीरता से लेते हैं इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बच्चों के बार -बार इसमें लिखने से गाँव के शराब ठेके पर ताला लगाना पड़ गया। अबतक इस अख़बार के 96 अंक निकल चुके हैं, जिसे हमेशा की तरह यहाँ के छात्र छात्राओं ने हाथ से लिख कर तैयार किया।

“ये अख़बार छात्र छात्राओं के अभिव्यक्ति का माध्यम तो है ही, वे दुनिया जहाँ की घटनाओं पर अपने विचार के साथ गाँव के आस पास की ख़बर भी देते हैं। ये उनके सपने और विचारों का आईना भी है।” 51साल के प्रिंसिपल ने गाँव कनेक्शन को बताया।

कक्षा आठ की छात्रा मुस्कान फ़क्र से कहती हैं, “हमने अपने अख़बार में गाँव में चल रहे शराब के ठेके पर लिखा,उसके बाद वो बंद हो गया।”

जिज्ञासा और चरित्र निर्माण पर ज़ोर

स्कूल के प्रिंसिपल योगेंद्र कुमार पांडे बताते हैं, ” 2011 में मेरी यहाँ पोस्टिंग हुई और उस समय इस विद्यालय के परिसर से लेकर बच्चों के पढ़ने तक के लिए जो उपकरणों की ज़रूरत थी वो ना के बराबर थी। फिर हमने और हमारे अध्यापक, अध्यापिकाओं ने खुद इस समस्याँ को दूर करने का फैसला किया। इस प्रयास से स्कूल तो सुँदर बना ही, साथ ही बच्चों को सिखाने के लिए जिन सामानों की ज़रूरत थी उसका भी इंतज़ाम हो गया।”

वे कहते हैं “उस समय कुल 225 छात्रों का यहाँ दाखिला था, आज 525 छात्र -छात्राएँ हैं।” कक्षा पहली से आठवीं तक के इस स्कूल में कुल 10 टीचर हैं। साथ ही दो शिक्षा मित्र और दो अनुदेशक (इंस्ट्रक्टर्स) भी हैं।

“आज हमारे पास स्मार्ट लाइब्रेरी है, जहाँ न सिर्फ़ ज्ञान बढाने वाली किताबें हैं बल्कि छात्रों का मनोरँजन भी करती है। बच्चे यहाँ से किताबें पढ़ने के लिए घर भी ले जा सकते हैं।” योगेंद्र पांडे गर्व से इसे बताते हैं।

स्कूल में बच्चों को किताबी ज्ञान से ज़्यादा प्रयोग पर बल दिया जाता है। “बच्चों में विज्ञान को समझने की जिज्ञासा और दिलचस्पी बनी रहे इसके लिए ज़रूरी है वो ख़ुद उससे जुड़ें। प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोप की मदद से जब वो सूक्ष्म जीवों को देखते हैं तो उनके लिए समझना आसान हो जाता है।” स्कूल के प्रिंसिपल ने गाँव कनेक्शन को बताया।

“हमें यहाँ संगीत की क्लास में ढोलक, मँजीरा और हारमोनियम बजाना भी सिखाया जाता है।” कक्षा सात की छात्रा जूली ने बताया।

बेटियों को मजबूत बनाने की कोशिश

“मीना मंच हमारे स्कूल में काफी सक्रिय है।” योगेंद्र पांडे कहते हैं। प्रदेश सरकार की पहल से साल 2002 में मीना मंच बनाया गया था। यही वजह है कि यहाँ पढ़ने वालों में 90 फ़ीसदी लड़कियाँ हैं।

मीना मंच स्कूलों में लड़कियों के लिए एक ऐसा मंच है जो उन्हें अपनी बात को खुलकर कहने का मौका देता है। ये लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने, नियमित स्कूल आने और लिंग आधारित भेदभाव के प्रति सजग रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। इससे उनमें आत्मविश्वास तो बढ़ता ही है, समस्याओं का समाधान ढूंढने का कौशल और नेतृत्व क्षमता भी विकसित होती है।

” मीना मंच के सदस्य गाँव के बाहर जाते हैं और दूसरी लड़कियों से उनके अधिकारों,स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर बात के अलावा जागरूक भी करते हैं। ” आठवीं क्लास में पढ़ने वाली सुनीता ने गाँव कनेक्शन को बताया। वे कहती हैं अब दूसरे गाँवों के छात्र प्राइवेट स्कूल छोड़ कर इस स्कूल में पढ़ना चाहते हैं।  

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