किताब से ज़्यादा आसान है बच्चों के लिए अपनी ‘अंतरिक्ष देवी’ से विज्ञान को समझना

रिटायर होने के बाद भी शिक्षिका चित्रा सिंह कम लागत वाले मॉडल के जरिए छात्रों को विज्ञान के बारे में जागरूक कर रही हैं।
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हरियाणा के हिसार में विज्ञान से जुड़े हर सवालों का जवाब अब बच्चे किताबों में नहीं, अपनी अंतरिक्ष देवी से पूछ लेते हैं; उनके लिए ये अंतरिक्ष देवी किसी जादुई चिराग से कम नहीं है।

ये अंतरिक्ष देवी कोई और नहीं उनकी पसंदीदा मैम चित्रा सिंह हैं।

रिटायरमेंट के बाद जहाँ हर कोई आराम की ज़िंदगी चाहता है; वहीं ऐसे भी कुछ लोग हैं जो रिटायर तो हो जाते हैं, लेकिन अपना काम नहीं छोड़ते हैं। ऐसी ही शिक्षिका हैं चित्रा सिंह, जो बच्चों को विज्ञान के प्रति जागरूक कर रही हैं।

हरियाणा के हिसार जिले के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय चिकनवास में विज्ञान शिक्षिका रहीं चित्रा सिंह दो साल पहले रिटायर हुईं हैं, फिर भी बच्चों को पाना ज्ञान बाँटना बंद नहीं किया है। अब वे मॉडल के जरिए बच्चों को विज्ञान से जोड़ रहीं हैं।

तभी हर कोई उन्हें तारा देवी या अंतरिक्ष देवी के नाम से बुलाता है।

चित्रा सिंह गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “दो साल पहले राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय चिकनवास से रिटायरमेंट के बाद विज्ञान की मुफ्त शिक्षा के सफर की शुरुआत हुई; टीएलएम प्रोजेक्ट के माध्यम से विभिन्न मॉडल बनाकर बच्चों को सरल तरीके से विज्ञान की गतिविधियों और उनके पीछे छिपे तथ्यों के बारे में बताती हूँ।”

चित्रा सिंह छाते और ग्लोब जैसे सामान से मॉडल बनाकर बच्चों को समझाती हैं कि आसमान में दिखने वाला ध्रुव तारा कैसे अपनी जगह पर बना रहता है। इसी तरह ध्वनि कैसे पैदा होती है, पंप कैसे काम करता है, सप्तऋषि कैसे चक्कर लगाते हैं, इन सभी विषयों को कम लागत वाले मॉडल के माध्यम से उन्होंने विद्यार्थियों को विज्ञान के बारे में बताया। वह प्लास्टिक बोतल, टूथब्रश और अन्य चीजों का इस्तेमाल करके मॉडल तैयार करती हैं।

सिमरन की तो वो पसंदीदा टीचर हैं, चित्रा सिंह की पूर्व छात्रा सिमरन बताती हैं, “मैडम हमें आठवीं कक्षा में पढ़ाती थीं और वो किताबी ज्ञान से ज़्यादा प्रैक्टिकल लर्निंग में विश्वास रखती है; उनकी ही वजह मैंने ग्यारवीं कक्षा में विज्ञान लिया और अब एस्ट्रोनॉट बनना चाहती हूँ।”

एससीईआरटी गुड़गांव को अगस्त्य इंटरनेशनल फाउंडेशन ने करीब 10 बस दी है, जिनमें विभिन्न तरह के वर्किंग मॉडल हैं। ये बच्चों को 6वीं से 12वीं तक के जो कॉन्सेप्ट्स हैं उनको समझाने में मदद करते हैं।

यह हर जिलों में जाती हैं और वहाँ पर यह लगभग एक महीना रहती हैं। इस दौरान यहाँ इस बस पर एक रिसोर्स पर्सन की ड्यूटी लगाई जाती है जो विभिन्न मॉडल के कॉन्सेप्ट्स को समझाते हैं। इसमें बतौर रिसोर्स पर्सन लगभग हर बार चित्रा सिंह की ड्यूटी लगाई जाती है और रिटायर होने के बाद भी उन्हें इस बस के साथ ड्यूटी दी गई और जिसे उन्होंने ने शिद्दत से निभाया भी।

चित्रा गाँव कनेक्शन से आगे बताती हैं, “मेरी बचपन से ही विज्ञान के प्रति रुचि थी, मैंने एक बार अपने पिता से सवाल किया था कि हमें तारे कब दिखते हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि ध्रुव तारा या पोल स्टार सुबह चार बजे दिखाई देता है और यही बात मैंने अपने बेटे को भी बताई थी लेकिन बेटे ने बताया कि पोल स्टार रात को करीब 8:00 बजे के आसपास दिखता है।”

बस इस जवाब से उनके दिमाग में इसके पीछे के कारणों को जानने की जिज्ञासा पैदा हो गई।

“तब से मैंने विज्ञान विषय को अपना पसंदीदा विषय बना लिया और विज्ञान विषय की शिक्षिका बनने का जज़्बा पैदा हो गया। ” चित्रा ने आगे कहा।

आज वे शिक्षा जगत में विज्ञान से जुड़ी कोई भी प्रतियोगिता हो उसमें वे बढ़चढ़ कर भाग लेती हैं। चित्रा ने विज्ञान विषय पर आधारित जिज्ञासा प्रतियोगिता में कुल आठ अवॉर्ड जीते हैं, जिनमें एक राष्ट्रीय, एक उत्तर-पूर्वी, पाँच जिले स्तर पर व एक स्टार अवॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं। विद्यार्थियों को विज्ञान विषय में विशेष रूप से पारंगत कर रही हैं।

विभिन्न स्कूलों में पहुँच खुद के तैयार किए कम लागत वाले मॉडल के जरिए विज्ञान की मुफ़्त शिक्षा प्रदान कर रही हैं। अभी तक वो करीब 50 स्कूलों में पहुँच अपने बनाए मॉडल के माध्यम से विद्यार्थियों को विज्ञान से जुड़ी निःशुल्क शिक्षा दे चुकी हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में चित्रा सिंह के पढ़ाने के रोचक तरीके को देखते हुए उन्हें इंटरनेशनल फाउंडेशन ने टीएलएम टीचर लर्निंग मटेरियल से बनाए मॉडल के लिए राष्ट्रीय विजेता से सम्मानित किया है।  

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