ऐसा क्या है सहजन में जो इसे बनाता है ख़ास

वैसे अफ्रीका और एशियाई देशों में पाए जाने वाले इस पेड़ के तमाम अंगों जैसे फल्लियाँ, फूल, जड़ें और छाल आदि बतौर व्यंजन इस्तेमाल में लायी जाती है, लेकिन सहजन का बेजा उपयोग औषधि की तरह कई देशों में किया जाता है। इसके सभी अंग पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं और इसी वजह से अनेक रोगोपचार में इनका जिक्र आता है।
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सहजन के बारे में जानते हैं आप? पूरे विश्व का औषधि विज्ञान जगत इस वनस्पति पर अपनी पैनी निगाह बनाए रखा है।

अंग्रेजी में ड्रमस्टिक के नाम से प्रचलित इस वनस्पति की फल्लियाँ दक्षिण भारतीय व्यंजनों का एक अहम हिस्सा है। ऐसी मान्यता है कि सब्जियों और दालों में इसकी फल्लियों को मिलाने से इनका स्वाद दोगुना तो हो ही जाता है, साथ ही इसके औषधीय गुणों की वजह से सेहत दुरुस्ती भी हो जाती है।

सहजन को मध्य भारत में मुनगा के नाम से भी जाना जाता है। वैसे अफ्रीका और एशियाई देशों में पाए जाने वाले इस पेड़ के तमाम अंगों जैसे फल्लियाँ, फूल, जड़ें और छाल आदि बतौर व्यंजन इस्तेमाल में लायी जाती है, लेकिन इनका बेजा उपयोग औषधि की तरह कई देशों में किया जाता है।


इसके सभी अंग पोषक तत्त्वों से भरपूर होते हैं और इसी वजह से अनेक रोगोपचार में इनका जिक्र आता है। जो इसे उत्तम बनाता है चलिए सबसे पहले इसकी तुलना कुछ अन्य हेल्दी वनस्पतियों से करते हैं, शायद आप समझ पाएंगे कि आखिर ऐसा क्या है सहजन में जो इसे सबसे उत्तम बनाता है:

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  • सहजन के बीजों से एक खाद्य तेल प्राप्त होता है जिसे बेन ऑइल कहते हैं, जो पोषक गुणों के आधार पर जैतून के तेल के बराबर होता है। इस तेल में भरपूर एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं, लेकिन अन्य तेलों की तुलना में इस तेल की शेल्फ लाइफ यानी ज्यादा समय तक खराब ना होने की दशा बेहतर होती है।
  • पालक की भाजी को लौह तत्वों का खजाना माना जाता रहा है लेकिन सहजन की पत्तियों में पालक की तुलना में 3 गुना ज्यादा लौह तत्व पाए जाते हैं।
  • सुबह-सुबह आप अपने दिन की शुरुआत चाय या कॉफ़ी से करते हैं, जरा एक बार सहजन की पत्तियों की चाय बनाकर पीएं, आप अपने शरीर में ऊर्जा का ग़ज़ब का संचार अनुभव कर पाएंगे। और तो और इस ऊर्जा को आप दिन में काफी लंबे समय तक महसूस भी कर पाएंगे।
  • गाजर को आँखों के लिए ख़ास माना जाता है क्योंकि इनमे विटामिन-ए की बाहुल्यता होती है, लेकिन आप शायद ही जानते होंगे कि एक ग्राम गाजर की तुलना में सहजन में चार गुना ज्यादा विटामिन-ए पाया जाता है। सहजन में भी खूब बीटा-कैरोटीन पाए जाते हैं।
  • क्या आप मल्टीविटामिन कैप्सूल्स लेते हैं? सहजन की पत्तियों, जड़, तने की छाल, फल्लियों को एकत्र करके इन्हें सुखा लें और फिर इसका चूर्ण बना लें, रोज सुबह शाम एक एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ फांकी मार लें, ये चूर्ण किसी भी मल्टीविटामिन कैप्सूल से बेहतर होगा, मैं इस बात को पूरे दावे से कह सकता हूँ।

  • दही के एक ग्राम में पाए जाने वाले प्रोटीन्स की तुलना में सहजन की पत्तियों के एक ग्राम काढ़े में दोगुनी मात्रा में प्रोटीन्स पाए जाते हैं। सहजन की पत्तियों में केले की एक ग्राम मात्रा की तुलना में पोटेशियम की मात्रा तीन गुना होती है।
  • सहजन में संतरे की तुलना में प्रति ग्राम सात गुना ज्यादा विटामिन-सी पाए जाते हैं। सहजन आपकी हड्डियों के लिए भी बहुत ख़ास है। एक ग्राम दूध की तुलना में इसमें चार गुना ज्यादा कैल्शियम पाया जाता है।

कैंसर में भी प्रभावी है सहजन

  • तमाम शोध प्रमाणों से भी साबित हो चुका है कि कैंसर जैसी भयावह समस्या पर काबू पाने के लिए सहजन बेहद कारगर है। सहजन में कई तरह के एंटी कैंसर कंपाउंड पाए जाते हैं जैसे कैमफेरोल, रैह्मनेटिन और आइसो क्वेरसेटिन आदि। अब आधुनिक विज्ञान की मदद से शोधकर्ता लोग सहजन के एंटी कैंसर गुणों पर गहनता से शोध कर रहे हैं।


  • अब तक प्राप्त परिणामों पर गौर फरमाया जाए तो जानकारी मिलती है कि सहजन ओवरी, लीवर, लंग और मेलानोमा जैसे घातक कैंसर में कारगर है। इंटरनेट पर इस तरह की शोध रिपोर्ट्स की जानकारी बड़ी आसानी से खंगाली जा सकती है। इस तरह की खोज ये जरूर तय कर लेंगी कि भविष्य में कैंसर जैसे भयावह रोग निवारण में सहजन की ख़ास भूमिका रहेगी।

  • सहजन से जुड़ी कुछ ख़ास जानकारियां

  • सहजन की फल्लियों का इस्तेमाल जल शुद्धिकरण में भी किया जा सकता है। इसमें 9 ख़ास अमीनो एसिड्स के अलावा कुल 27 अलग तरह से विटामिन्स, करीब 46 एंटीऑक्सीडेंट्स और कई अलग-अलग तरह के खनिज लवण भी पाए जाते हैं।
  • मजे की बात ये भी है कि पातालकोट में करेयाम गाँव के गोंड और भारिया आदिवासी पीने के पानी को शुद्ध करने के लिए सहजन या मुनगा (मोरिंगा ओलिफ़ेरा/ ड्रमस्टिक) की फ़ल्लियों को तोड़कर और तुलसी की कुछ पत्तियों को एक पात्र में डाल देते हैं।
  • इस पात्र में एकत्र किया अशुद्ध या मटमैला जल डाल दिया जाता है। कुछ दो से तीन घंटों बाद पात्र की ऊपरी सतह से पानी एकत्र कर साफ़ सूती कपड़े से छानकर किसी अन्य पात्र में डाल दिया जाता है जो कि अब पीने योग्य हो जाता है।

  • पानी में उपस्थित अनेक सूक्ष्म जीवों को मारने की क्षमता

  • आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार सहजन की फ़ल्लियों और तुलसी की पत्तियों में पानी में उपस्थित अनेक सूक्ष्म जीवों को मारने की क्षमता होती है, साथ सहजन की फ़ल्लियों और इसके बीजों का लसलसा पदार्थ पानी में घुलित कणों को अपनी ओर आकर्षित करता है जिससे कुछ समय में पात्र के ऊपरी हिस्से का पानी पेय योग्य हो जाता है।

  • आधुनिक विज्ञान भी सहजन के द्वारा सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोके जाने की पुष्ठि कर चुका है। सन 1995 में एल्सवियर लिमिटेड से प्रकाशित जर्नल ‘वाटर रिसर्च’ के 29वे अंक में प्रकाशित एक शोध पत्र से प्राप्त परिणामों के अनुसार वास्तव में सहजन के बीजों में हल्के अणु भार वाले कुछ प्रोटीन्स होते हैं जिन पर धनात्मक आवेश होता है और ये प्रोटीन्स पानी में उपस्थित ऋणात्मक आवेश वाले कणों, जीवाणुओं और क्ले आदि को अपनी ओर आकर्षित करते हैं जिससे ना सिर्फ़ पानी शुद्ध होता है अपितु इसकी कठोरता भी सामान्य हो जाती है।
  • ये शोध परिणाम आधुनिक विज्ञान में अब प्रकाशित हो रहे हैं, लेकिन इसका आधार और उपयोग सदियों पहले से आदिवासी करते चले आ रहे हैं।

  • सिर से ख़त्म करता है डैंड्रफ

  • इसकी पत्तियों को कुचलकर रस तैयार किया जाए और प्रति दिन नहाने से पहले बालों में लगाया जाए तो सिर से रूसी या डैंड्रफ़ खत्म कर देता है। इस रस का इस्तेमाल कम से कम एक सप्ताह तक करना जरूरी है।
  • सहजन की फल्लियों को उबालकर पल्प तैयार किया जाए और नहाते वक्त इस पल्प को सिर पर शैंपू की तरह इस्तेमाल किया जाए तो यह बाजार में उपलब्ध किसी भी विटामिन-ई युक्त शैंपू से बेहतर साबित होगा। आधुनिक विज्ञान भी सहजन में पाए जाने वाले विटामिन-ई की पैरवी जोर शोर से करता है।

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