ग्रामीण भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 (2021-22) में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के पोषण संकेतकों में मामूली सुधार दिखा है – बच्चों में नाटापन, निर्बलता और कम वजन के मामलों में कमी आई है।
हालांकि, ग्रामीण भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया के मामलों में वृद्धि हुई है। एनीमिया से पीड़ित बच्चे में पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं या हीमोग्लोबिन नहीं होता है। हीमोग्लोबिन एक प्रकार का प्रोटीन है जो लाल रक्त कोशिकाओं को शरीर में अन्य कोशिकाओं तक ऑक्सीजन ले जाने की अनुमति देता है।
ग्रामीण भारत में, 2020-21 में 6 से 59 महीने की उम्र के 68.3 प्रतिशत बच्चे एनीमिक पाए गए हैं। यह पिछले पांच सालों की तुलना में 15 प्रतिशत ज्यादा है। 2015-16 में किए गए NFHS-4 में 59.5 प्रतिशत बच्चे एनीमिक पाए गए थे।
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) विनोद कुमार पॉल और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने भारत के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के NFHS-5 के दूसरे चरण के आंकड़े 24 नवंबर को जारी किए थे।
राज्यवार आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण मध्य प्रदेश में 5 साल से कम उम्र के 72.7 फीसदी बच्चे एनीमिक हैं। इसके बाद राजस्थान (72.4 फीसदी), हरियाणा (71.5 फीसदी), पंजाब (71.1फीसदी) और झारखंड (67.9 फीसदी) का नंबर आता है।
NFHS-5 के पहले चरण के आंकड़ों के अनुसार, 6-59 महीने की उम्र के गुजरात में 81.2 प्रतिशत, जम्मू और कश्मीर में 73.5 प्रतिशत, तेलंगाना में 72.8 प्रतिशत बच्चे एनीमिक हैं।
NFHS-5 के दूसरे चरण के आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में 81.7 प्रतिशत, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव में 76.8 ग्रामीण बच्चे एनीमिक पाए गए।
NFHS-4 में जारी आकंड़ो के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 6 से 59 महीने के बीच के ग्रामीण बच्चों में एनीमिया का प्रतिशत 41.2 था जो NFHS-5 में बढ़कर 66.2 प्रतिशत हो गया है। यह राज्य में 2015-16 और 2020-21 के बीच 5 साल से कम उम्र के ग्रामीण बच्चों में 60 प्रतिशत की वृद्धि है। तमिलनाडु में बच्चों में एनीमिया की दर NFHS-4 में 52.5 प्रतिशत थी जो NFHS-5 में बढ़कर 60.4 प्रतिशत हो गई है।
इसी तरह, ओडिशा में 45.7 प्रतिशत से बढ़कर 65.6 प्रतिशत हो गई है। यह राज्य के ग्रामीण बच्चों में एनीमिया के स्तर में 44 प्रतिशत की वृद्धि है।
पोषण संकेतकों में मामूली सुधार
बाल पोषण संकेतक ग्रामीण भारत में थोड़ा सुधार दिखाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर, नाटापन (उम्र के हिसाब से ऊंचाई) 41.2 प्रतिशत से घटकर 37.3 प्रतिशत, निर्बलता 21.5 प्रतिशत से घटकर 19.5 प्रतिशत और कम वजन 38.3 प्रतिशत से घटकर 33.8 प्रतिशत हो गया है।
दूसरे चरण की रिपोर्ट में, सभी 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बाल पोषण संकेतकों में सुधार दिखाया है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 24 नवंबर को जारी प्रेस बयान में कहा गया है, “… लेकिन यह बदलाव महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि इन संकेतकों में बहुत कम समय में व्यापक बदलाव होने की संभावना नहीं है।”
नाटापन, जिसे उम्र के हिसाब से कम कद के रूप में परिभाषित किया गया है, ज्यादातर राज्यों में ऐसे मामलों में कमी आई है। राजस्थान में नाटापन NFHS -4 में 40.8 फीसदी से घटकर NFHS-5 में 32.6 फीसदी हो गया है। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में नाटापन 48.5 प्रतिशत से घटकर 41.3 प्रतिशत हो गया है।
जन स्वास्थ्य अभियान, मध्य प्रदेश की सदस्य अमूल्य निधि, ने गांव कनेक्शन को बताया, “यह मामूली सुधार, बिल्कुल भी बहुत बड़े सुधार का संकेत नहीं है। अगर हम साफ पानी और स्वच्छ पर्यावरण के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा और आजीविका सुनिश्चित कर रहे हैं तो ही इन सभी संकेतकों में सुधार हो पाएगा”
सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता आगे कहते हैं, “स्वास्थ्य संकेतकों को सभी चीजों को ध्यान में रखकर देखा जाना चाहिए। स्वास्थ्य की परिभाषा का मतलब ही शारीरिक, मानसिक, सामाजिक कल्याण और किसी भी बीमारी की अनुपस्थिति है। हमारे देश के कई हिस्सों में एनीमिया, कुपोषण, गैर संक्रामक रोग, तपेदिक, मलेरिया, डायरिया जैसी बीमारियों के संकेतक अभी भी मौजूद हैं।”
इस बीच, NFHS-5 के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि झारखंड में पांच साल से कम उम्र के 42.3 प्रतिशत ग्रामीण बच्चे अविकसित हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश (41.3 फीसदी), मध्य प्रदेश (37.3 फीसदी), छत्तीसगढ़ ( 35.7 फीसदी), राजस्थान (32.6 फीसदी) का नंबर आता है।
गांव कनेक्शन ने दस राज्यों – उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु पर ध्यान केंद्रित करते हुए NFHS -4 और NFHS -5 सर्वे के अनुसार उनके कुपोषण और एनीमिया संकेतकों का अध्ययन किया है।