उत्तर भारत के ग्रामीण इलाक़ों के खान-पान में बाजरे का ख़ास महत्व है। इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में बाजरे को लेकर कई लोकगीत प्रचलित हैं। न सिर्फ़ स्वाद में बाजरे से बना खान-पान लाजवाब होता है बल्कि यह पौषक तत्वों के मामले में भी अव्वल है।
“गाँव में बाजरे के आटा से रोटी और पुआ ही बनता है। कई लोग तो बाजरा खाना मजबूरी मानते हैं क्योंकि उन्हें बाजरे के फायदों की जानकारी ही नहीं है। नई पीढ़ी तो बाजरे से और दूर होती जा रही है,,” यूपी के हमीरपुर जिले के कुरारा ब्लॉक के सरसई गाँव की मंजू विश्वकर्मा (42) ने कहा।
यूपी में चल रहे 86 कृषि विज्ञान केंद्रों पर बाजरे से कई तरह के पकवान और व्यंजन बनाना सिखाया जा रहा है ताकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपने खान-पान के प्रति जागरुक होकर पोषण से भरपूर बाजरे का भोजन में ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
मंजू विश्वकर्मा भी उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने हमरीपुर के कृषि विज्ञान केंद्र से बाजरे के तरह-तरह का खाना बनाना सीखा। “कृषि विज्ञान केन्द्र से हमारे गाँव की महिलाओं को ट्रेनिंग मिली तब हमें भी बाजरे के तमाम फायदे पता चले,” मंजू ने बताया।
मंजू बताती हैं, “अब तो हमारे गाँव की आंगनबाड़ी में भी बाजरे से लड्डू, दलिया, खिचड़ी सब बनता है। गर्भवती और धात्री महिलाएं बाजरे से घर में कई तरह के पकवान बनाती हैं। हमें ऐसा बताया गया है कि अगर बाजरे को कुछ देर उबालने के बाद सुखा दें तो बाजरे के आटे की कड़वाहट कम हो जाती है। इससे रोटियां मुलायम बनती हैं और आटा भी ज्यादा दिनों तक खराब नहीं होता है।”
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार देश में 721 कृषि विज्ञान केंद्र हैं, उत्तर प्रदेश में 86 कृषि विज्ञान केंद्र हैं। सभी कृषि वैज्ञानिक केंद्रों पर एक वैज्ञानिक महिलाओं, बच्चों और किशोरियों के सेहत के लिए काम करती हैं। ये ग्रामीण महिलाओं को कम खर्च में स्वस्थ रहने के आसान तरीके बताती हैं।
मंजू विश्वकर्मा ये बताते हुए काफी खुश थीं कि बीते एक डेढ़ साल से उनके गाँव में करीब डेढ़ सौ घरों में बाजरे से बने तमाम तरह के व्यंजनों का उपयोग काफी बढ़ा है।
हमीरपुर के कुरारा ब्लॉक के कृषि विज्ञान केंद्र की गृह वैज्ञानिक डॉ. फूलकुमारी बाजरे के तमाम फायदे बताती हैं। डॉ. फूलकुमारी बताया कि नियमित रुप से बाजरा खाने से भारत की आबादी का अधिकांश भाग कुपोषण से मुक्त हो सकता है। बाजरा कम खर्च में ज्यादा पोषण देने वाला अनाज है जिसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन,ऊर्जा, वसा, खनिज लवण और रेशा पाया जाता है।
बाजरे को केवल सर्दी में ही नहीं बल्कि पूरे साल खाया जा सकता है। यह बच्चों, बर्जुगों, किशोरियों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माओं के अलावा मधुमेह व हृदय रोगियों के लिए भी फ़ायदेमंद अनाज है। हालांकि बाजरे को मोटा आनाज कहा जाता है लेकिन पोषण तत्वों में समृद्ध होने के कारण इस अनाज को न्यूट्रिया मिलेट्स/न्यूट्रिया सीरियल्स कहा जाता है। इसके सेवन से न सिर्फ शरीर में ऊर्जा बनी रहती है बल्कि भरपूर पोषण भी मिलता है।
डॉ. फूलकुमारी बाजरे के उपयोग के बारे में बताती हैं, “अब आंगनबाड़ी केंद्रों पर बाजरे की खिचड़ी, लड्डू बनाकर बच्चों को खिलाए जा रहे हैं। गर्भवती महिलाएं और किशोरियां इसका इस्तेमाल कर रही हैं। जो महिलाएं एनीमिक थीं, जो बच्चे कुपोषित थे उनमें अब काफी सुधार देखने को मिला है।”
डॉ. फूलकुमारी, 645 आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों, 1,058 कृषक महिलाओं, 100 से ज्यादा किशोरियों और 200 से ज्यादा समूह की महिलाओं को बाजरे से कई तरह के पकवान बनाना सिखा चुकी हैं जिसमें ज्यादातर महिलाएं अब इसका उपयोग कर रही हैं। डॉ. फूलकुमारी के अनुसार बाजरे में कैल्शियम, फास्फोरस, जस्ता, मैगनीशियम, पोटेशियम, कैरोटिन, नियासिन, विटामिन बी-6, फोलिक एसिड, लौह तत्व और कई तरह के एंटीआक्सीडेंट्स भरपूर मात्रा में पाए जाे हैं। बाजार में मौजूद कैल्शियम, फास्फोरस हड्डियों के विकास में उपयोगी होता है जो बच्चों में होने वाले आस्टियोमलेशिया और व्यस्कों में आस्टियोपोरोसिस के खतरे को कम करता है। इसमें मौजूद मैगनीशियम, ब्लडप्रेशर, माईग्रेन और अस्थमा को नियंत्रित करता है। बाजरे में लौह तत्व अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो किशोरियों और महिलाओं में बढ़ती हुई कुपोषण की समस्या विशेष कर अनीमिया को दूर करने में सहायक है।
“हमारे क्षेत्र में अब महिलाएं बड़ी संख्या में लोहे की कड़ाही का उपयोग करने लगी हैं। ज्वार-बाजरा, सहजन, तिल, अलसी जैसे तमाम मोटे अनाज का प्रचलन बढ़ रहा है। हम लोग ग्रामीण महिलाओं, किशोरियों और पुरुषों को रेगुलर ट्रेनिंग दे रहे हैं जिससे ये लोग अब मोटे अनाजों की तरफ पुन: वापसी कर रहे हैं,” कृषि विज्ञान केंद्र मनकापुर, गोंडा-2 में तैनात डॉ अर्चना सिंह बताती हैं,
डॉ. फूल कुमारी ने बताया कि बाजरे को आधे मिनट (30 सेकेंड) तक उबलते पानी में डाल कर निकाल लें और सुखाकर पिसवाएं तो इसका आटा लम्बे समय तक कड़वा नहीं होता और रोटी भी मुलायम बनती है। अब ग्रामीण महिलाएं बाजरे से ढोकला, इडली, लड्डू, पुआ, पंजीरी, मठरी, सेव, शक्करपारे, बर्फी, बिस्कुट, केक जैसी तमाम चीजें बना रही हैं। फाइबर से भरपूर होने की वजह से बाजरा पाचन क्रिया को सही रखता है।
कृषि विज्ञान केंद्र दिलीपनगर, कानपुर देहात की होम साइंस की प्रोग्राम असिसटेंट डॉ. निमिषा अवस्थी बताती हैं, “पोषण माह में हमने आईसीआर की तरफ से 100 से ज्यादा ट्रेनिंग दी जिसमें सबको बाजरे के फायदे गिनाए।”