‘हमारे देश की समस्या ये है कि बिना प्रिस्क्रिप्शन के मिल जाती हैं एंटीबायोटिक्स’

दुनिया के कई देशों में एंटीबायोटिक्स को लेकर सख्त नियम हैं। इनके इस्तेमाल के सही तरीकों पर बहुत ज़ोर दिया जाता है पर भारत में इनका खूब इस्तेमाल हो रहा है। जानिए एंटीबायोटिक दवाइयां किस तरह स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही हैं और इसके ऊपायों पर डॉक्टर्स का क्या कहना है?
#Antibiotics

लखनऊ। मुझे फ्लू हुआ तो मैंने डॉक्टर को दिखाया, उसने मुझे एंटीबायोटिक दवाइयां लिख के दीं। कुछ ही दिन बाद मुझे दोबारा से बुखार हुआ, इस बार मैंने डॉक्टर को नहीं दिखाया। खुद से मेडिकल स्टोर जाकर जो दवाइयां पहले डॉक्टर ने लिखी थी वही ले लीं। दो दिन में मैं ठीक तो हो गई लेकिन उसके अगले ही दिन मुझे डायरिया हो गया। अबकी बार जब मैं डॉक्टर के पास गई तो मुझे दवाइयों से ज़्यादा डाँट खानी पड़ी।

“हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या ये है कि आप किसी भी मेडिकल स्टोर पर जाइए और कहिए मुझे ये एंटीबॉयोटिक दे दीजिए वो दे देगा। कोई रोक नहीं है, बिना प्रिस्क्रिप्शन के एंटीबॉयोटिक मिल जाती है,” ये कहना है डॉक्टर सूर्यकान्त त्रिपाठी का। डॉक्टर त्रिपाठी लखनऊ की किंग्स जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में रेस्पिरेटरी मेडिसन विभाग के हैड और प्रोफेसर हैं।

एंटीबायोटिक दवाइयां बैक्टीरियाज़ से होने वाली बीमारियों के इलाज में काम आती हैं लेकिन इनके साइडइफेक्ट्स भी हैं। इन्हें डॉक्टर्स की बिना सलाह के लेना खतरनाक हो सकता है। मुझे यही लगा कि एक बीमारी ठीक कराने के चक्कर में मुझे दूसरी बीमारी हो गई, बताइए कैसी दवाएं हैं ये? लेकिन डॉक्टर से बात करने पर पता चला कि गलती मेरी है। अगर सही डोज़ में, डॉक्टर की सलाह से ली जाएं तो इन दवाइयों के साइडइफेक्ट्स नहीं होते। एंटीबायोटिक्स के बारे में और जानने के लिए गाँव कनेक्शन ने कुछ डॉक्टर्स से बात की।

साभार- medical news today

डॉक्टर्स बताते हैं, एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल करने पर जो बैक्टीरिया हैं वो रसिस्टेंट हो जाते हैं। इसका अर्थ है कि अगर आप गलत तरीकों और अत्याधिक मात्रा (आपके शरीर की ज़रूरत से ज़्यादा) में एंटीबायोटिक्स लेते हैं तो जिन बैक्टीरियाज़ की वजह से आपको बीमारी होती है उन पर ये दवाइयां असर करना बंद कर देती हैं। उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ के संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में माइक्रोबायोलॉजी विभाग की असोसिएट प्रोफेसर ऋचा मिश्रा बताती हैं-

“बहुत बड़े पैमाने पर एंटीबॉयोटिक्स जानवरों में इस्तेमाल होती है। चिकन्स (मुर्गे-मुर्गी) को मोटा करने के लिए, गाय-भैंस ज़्यादा दूध दें इसके लिए, अब जब हम लोग ये चीज़ें खाते हैं तो हमारे शरीर को ज़रूरत नहीं होने पर भी एंटीबॉयोटिक्स हमारे शरीर में जाती हैं। ज़रूरत से ज़्यादा एंटीबॉयोटिक्स लेने के कारण हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।”

डॉक्टर आर. के. दीक्षित भी यही बताते हैं, “एंटीबॉयोटिक जो है वो हमारे शरीर में इम्यून सिस्टम (बीमारी से लड़ने की क्षमता) को बढ़ाती है लेकिन क्या है कि जब आप ज़रूरत से ज़्यादा एंटीबॉयोटिक लेते हैं तो आपका इम्यून सिस्टम कमज़ोर होता जाता है क्योंकि बीमारी से लड़ने में सहायता करने वाली दवाइयों पर वो आश्रित हो जाता है। अब जब कभी हमें कोई बीमारी होती है तो हमारा शरीर उससे लड़ने में सक्षम नहीं रहता। इस तरह एक समय के बाद ये दवाइयां हमारे शरीर पर असर करना बंद कर देती हैं।”

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डॉक्टर दीक्षित लखनऊ की किंग्स जॉर्ज्स मेडिकल यूनिवर्सिटी के फार्माकॉलोजी विभाग में प्रोफेसर हैं। वो आगे समझाते हैं-

“अब ऐसा है कि अगर आपके घर में 100 चोर आते हैं और आप 5 को भगा दो तो 95 थोड़े दिन के लिए तो शांत बैठेंगे लेकिन वो बाद में हमला करेंगे ही और वो जानते हैं कि आपने पहली बार उनके साथियों को कैसे भगाया था तो वो उस तरीके के लिए तैयार रहते हैं। ऐसा ही एंटीबॉयोटिक्स के साथ होता है। आप को जैसे ही थोड़ा बेहतर लगता है आप दवा लेना बंद कर देते हैं तो जो बैक्टीरिया आपके शरीर में रह गए हैं वो कुछ दिन तो शांत रहते हैं लेकिन वो फिर से आपको बीमार करते हैं और क्योंकि वो पहले वाली दवा जानते हैं तो वो उन पर असर नहीं करती, इसलिए कहा जाता है कि एंटीबॉयोटिक असर करना बंद कर देती है।”

डॉक्टर दीक्षित बताते हैं कि इसके लिए ऊपाय ये है कि डॉक्टर ने जितने दिन की दवाइयां लिखी हैं वो पूरी लेनी चाहिए, भले ही बीच में आपको लगे कि आप ठीक हो गए हैं।

एंटीबॉयोटिक्स से होने वाले साइडइफेक्ट्स में डायरिया सबसे आम है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की वर्ष 2017 में जारी हुई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ये 7.1 प्रतिशत से 26.6 प्रतिशत बढ़ा है। ये रिपोर्ट भारत सरकार के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, नई दिल्ली के अंतर्गत वर्ष 2015 से 2017 के बीच हुई थी। वेंटिलेटर एसोसिएटेड निमोनिया भी मरीज़ों में आम है। आईसीयू में भर्ती 8 से 20 प्रतिशत मरीज़ों को ये बीमारी होती है। वहीं 27 प्रतिशत ऐसे मरीज़ों को जो मशीन के सहारे पर होते हैं।

साभार- The drink bussiness

हमारे देश में जानकारी का अभाव एंटीबायोटिक्स से होने वाले नुकसान और साइडइफेक्ट्स के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है। डॉक्टर सूर्यकान्त त्रिपाठी कहते हैं, “हमारे यहां सबसे ज़्यादा फ्लू जिसे सर्दी-ज़ुकाम कहते हैं और हर आदमी सोचता है कि फ्लू में भी एंटीबॉयोटिक लेना है जो कि गलत है। फ्लू एक वायरल बीमारी है, इसका एंटीबॉयोटिक से कोई लेना देना नहीं है।”

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वो आगे बताते हैं, “हमारे देश में एक और चीज़ है कि एंटीबॉयोटिक केवल ऐलोपैथी का डॉक्टर नहीं लिख रहा है। होम्योपैथी वाला भी लिख रहा है, आयुर्वेद वाला भी लिख रहा है, झोला छाप भी लिख रहा है। अपने यहां ये भी रोक नहीं है कि एंटीबॉयोटिक केवल मॉडर्न मेडीसिन प्रेक्टिस करने वाला डॉक्टर लिखे। प्रिस्क्रपशन की भी ज़रूरत नहीं है, आप सीधे मेडिकल स्टोर से खरीद सकते हैं।”

दुनिया के कई देशों में एंटीबायोटिक्स को लेकर सख्त नियम हैं। इनके इस्तेमाल के सही तरीकों पर बहुत ज़ोर दिया जाता है, कई जगह इन्हें कम करने की कवायद शुरू हो चुकी है लेकिन भारत में फिलहाल इनके विनियमन पर किसी तरह के ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

साभार- consume freedom

सरकार और स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल के लिए गाइडलाइन्स जारी करता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट में आंकड़ों के साथ एंटीबायोटिक्स के लिए गाइडलाइन्स भी बताई हैं पर दिक्कत ये है कि ये आम डॉक्टर्स तक पहुंच ही नहीं पातीं। इस बारे में डॉक्टर ऋचा कहती हैं, “हमारे देश में बड़ी संख्या में प्राइवेट डॉक्टर्स हैं। इन तक गाइडलाइन्स सही रूप में पहुंच नहीं पातीं। इनके अलावा अयोग्य डॉक्टर्स की संख्या भी बहुत ज़्यादा है। ये छोटे कस्बों में, गाँवों में होते हैं। जो मेडिकल प्रोफेश्नल्स हैं ही नहीं वो भी गांवों में, जिलों में बैठ कर दवाएं दे रहे हैं। उनकी पहचान ही नहीं हो पाती है तो गाइडलाइन्स पहुंचना तो असंभव है।”

“गाइडलाइन्स ज़ारी होती हैं लेकिन दिक्कत ये है कि उन्हें सब तक पहुंचाया कैसे जाए? हमारे देश में दस लाख ऐलोपैथी के डॉक्टर हैं, 10 लाख आयुष के डॉक्टर्स हैं और इन सबसे ज़्यादा करीब एक करोड़ अपंजीकृत डॉक्टर्स हैं,” – डॉक्टर आर. के. दीक्षित कहते हैं।

“एंटीबॉयोटिक्स से कुछ लोगों को साइडइफेक्ट्स हो सकते हैं। अमॉक्सीफिलिन एक सामान्य एंटीबॉयोटिक है इससे हर चौथे, पांचवे मरीज़ को दस्त होते हैं। ऐसे में मरीज़ को ये नहीं समझना चाहिए कि कोई नई बीमारी हो गई है। उसे तुरन्त डॉक्टर को बताना चाहिए। एंटीबॉयोटिक्स जल्दी असर करती है। एंटीबॉयोटिक का उतना ही उपयोग करें जितनी ज़रूरत हो। साथ ही जैसे डॉक्टर बताए बिल्कुल वैसे ही लेना चाहिए,” – एंटीबायोटिक दवाओं के साइडइफेक्ट्स पर वो कहते हैं।

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एंटीबायोटिक्स का लोगों के स्वास्थ्य पर गलत असर न हो इसके लिए डॉक्टर दीक्षित बताते हैं, “सरकार एक नियम बना दे कि बिना डॉक्टर्स के प्रिस्क्रपशन के दवा नहीं मिलेगी तो आधी समस्या तो ऐसे ही दूर हो जाएगी। गाइडलाइन्स में अपग्रेडेशन होना चाहिए यानी डॉक्टर्स को अद्यतन जानकारी देना। डॉक्टर्स को पूरी जानकारी देना कि कब एंटीबॉयोटिक देना है कब नहीं देना है, किसी बीमारी में कौन सी एंटीबॉयोटिक देना है? सामाजिक जागरूकता होनी चाहिए।”  

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