डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जिसको लेकर अभी भी जागरूकता का अभाव है और शोधकर्ताओं का दावा है कि अवसाद और चिंता से बचने के लिए ली गई दवा आपकी जिंदगी के लिए घातक है।
शोध के निष्कर्षो के मुताबिक, जो व्यक्ति इस प्रकार की दवाएं नहीं लेते हैं, उनकी तुलना में दवा का सेवन करने वालों में मौत की संभावना 33 प्रतिशत बढ़ सकती है। पत्रिका ‘साइकोथेरेपी एंड साइकोमैटिक्स’ में प्रकाशित शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि दवा सेवन करने वालों में हृदय संबंधी रोगों, जैसे हृदयाघात और पक्षाघात जैसी जानलेवा बीमारी होने की संभावना 14 प्रतिशत बढ़ जाती है।
लंबे समय से डिप्रेशन की मरीज रह चुके प्रियंका पेशे से इंजीनियर हैं। वो बताती हैं, “काम का तनाव और पति से अलग होने के बाद मैं डिप्रेशन में रहने लगी थी जिसके कारण कई दवाएं भी खाती थी। वो दवाएं भले मेरे ठीक होने के लिए थीं लेकिन फिर भी खाने के बाद मैं बड़ा सुस्त महसूस करती थी। धीरे धीरे बिना उन्हें खाए मुझे नींद नहीं आती थी। शरीर में सूजन की दिक्कत भी आने लगी। फिर मैंने योग व कुछ मेंटल थेरेपी लेने शुरू की। उससे मुझे फायदा दिखा।”
भारत ही नहीं, दुनिया भर में फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाजार एंटीडिप्रेसेंट (अवसाद दूर करने वाली दवाएं) का ही है। 1990 के दशक में प्रोजेक के बाजार में आने से ऐसी दवाओं के प्रयोग में भारी वृद्धि हुई है। भारत में अवसाद दूर करने वाली दवाओं की खपत बहुत तेजी से बढ़ रही है। फार्मास्युटिकल मार्केट रिसर्च संगठन एआइओसीडी एडब्लूएसीएस के अनुसार 2001 में जहां इसका बाजार 136 करोड़ रुपए था, वहीं अब 12 फीसदी की वार्षिक वृद्धि की दर से यह 855 करोड़ रुपए का हो गया है।
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लंबे समय तक दवाइयों के इस्तेमाल से हो सकती हैं ये बीमारियां
अगर आप लंबे समय से डिप्रेशन की दवाएं ले रहे हैं तो ये आपके तंत्रिका तंत्र को शिथिल कर देती हैं। इससे ह्दय से जुड़ी कई बीमारियां हो सकती हैं। मस्तिष्क में सेरोटोनिन के प्रभाव से मूड बनता और बिगड़ता है। अवसाद से बचने के लिए सामान्य रूप से ऐसी दवा ली जाती है, जो न्यूरॉन के माध्यम से सेरोटोनिन को अवशोषित कर अवसाद के प्रभाव को रोक देती है। लेकिन लोगों को यह जानकारी नहीं है कि हमारे शरीर के प्रमुख अंग जैसे- हृदय, फेफड़े, गुर्दे और यकृत में सेरोटोनिन खून को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अवसाद से बचने के लिए ली गई दवा इन अंगों द्वारा सरोटोनिन के अवशोषण को रोक देती है, जिस कारण इन अंगों के कार्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इसके परिणाम काफी घातक हो सकते हैं। वैसे तो अवसाद स्वयं में जानलेवा है, जो व्यक्ति इससे ग्रसित रहता है, उसमें आत्महत्या, हृदयाघात और पक्षाघात जैसी घातक बीमारियों की आशंका काफी रहती है।
मनोचिकित्सकों की कमी
भारत में पर्याप्त संख्या में डॉक्टर नहीं हैं. देश में 8,500 मनोचिकित्सकों और 6,750 मनोवैज्ञानिकों की कमी है। इसके अलावा 22,600 सामाजिक कार्यकर्ताओं और 2,100 नर्सों की जरूरत है। सिर्फ विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक ही भारत सर्वाधिक ‘अवसाद ग्रस्त’ देश है।
खानपान पर रखें, खास ध्यान
डिप्रेशन से निपटने में अच्छी डाइट भी काफी मददगार हैः
- पोषण से भरपूर खाना खाएं, जिसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रोटीन और मिनरल भी भरपूर हों, जैसे कि ओट्स, गेहूं आदि अनाज, अंडे, दूध-दही, पनीर, हरी सब्जियां (बीन्स, पालक, मटर, मेथी आदि) और मौसमी फल।
- एंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजें खाएं, जैसे कि ब्रोकली, सीताफल, पालक, अखरोट, किशमिश, शकरकंद, जामुन, ब्लूबेरी, कीवी, संतरा आदि।
- ओमेगा-थ्री को खाने में शामिल करें। इसके लिए फ्लैक्ससीड्स (अलसी के बीज), नट्स, कनोला, सोयाबीन आदि खाएं।
- मसालेदार खाने और जंक फूड से दूर रहें।
योग भगाएगा तनाव
योग के जरिए भी काफी हद इस हालत से निपटा जा सकता है। इसे करने से पहले किसी योग एक्सपर्ट की सलाह लें। सूर्य प्राणायाम और कपालभाति आप कर सकते हैं। मगर ताड़ासन, कटिचक्रासन, उत्तानपादासन, भरकटासन, भुजंगासन, धनुआसन, मंडूकासन जैसे योग किसी योग्य विशेषज्ञ की देखरेख में करें।