चोरी करने की आदत कहीं बीमारी तो नहीं, जानिए लक्षण

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लखनऊ। वैसे तो कई बीमारियां होती हैं जिनके अलग-अलग लक्षण होते हैं लेकिन कुछ बीमारियां भी बड़ी अजीबोगरीब होती हैं। जैसे चोरी करने की बीमारी। जी हां सुनने में भले अटपटा लग रहा हो लेकिन ये सही है, इस बीमारी को क्लेप्टोमेनिया कहते हैं।

क्या है क्लेप्टोमेनिया

इस बीमारी में व्यक्ति को बार-बार चोरी करने की आदत हो जाती है, वो किसी भी चीज़ को चोरी कर सकते हैं जैसे दुकान से सामान, लोगों का सामान, ऑफिस का सामान और दोस्तों आदि का सामान चुरा लेते हैं। अधिकतर केस में उस सामान की कोई कीमत नही होती है और न ही उसका खास उपयोग ही होता है। औरतों में पुरुषों की अपेक्षा ये आदत अधिक होती है। क़ानूनी कार्रवाई और शर्मिंदगी के डर से लोग इसका इलाज़ कराने से कतराते हैं।

लक्षण

  • कोई भी समान चुराना भले उसकी जरूरत न हो।
  • चुराने के पहले तनाव।
  • सामान चुराने के बाद खुशी का अहसास और संतुष्टि होना।
  • सामान चुराने के बाद उदास महसूस करना और लीगल कार्यवाही का डर लगना।
  • चोरी करने का बार-बार मन करना

कारण

  • इसका सही कारण अभी तक ज्ञात नही हो सका है मगर इसका ये कारण हो सकता है-
  • परिवार में अगर किसी को क्लेप्टोमानिया है तो इसका खतरा बढ़ जाता है
  • लिंग: अधिकतर इसका शिकार औरतें होती हैं
  • दिमाग में कैमिकल का बदलाव: जिसमें सेरोटिन का स्तर दिमाग में बदलता है और कम होता है जिस कारण भी ये हो सकता है।
  • अवस्था– अगर शुरुआती समय में किसी को चोरी के लिए सज़ा नही मिलती है तो उसको इस तरह की चोरी की आदत हो जाती है।
  • अन्य मानसिक अवस्था– जिस व्यक्ति को ये समस्या होती है उनको अन्य मानसिक समस्याएं जैसे व्याग्रता, बाइपोलर डिसऑर्डर और अन्य मानसिक समस्याएं हो सकती है।

केलेप्टोमानिया का इलाज

इसका इलाज व्यवहारिकता और दवा के साथ होता है। कानूनी कार्रवाई के डर, शर्म और झेप के डर की वजह से व्यक्ति इलाज के लिए नहीं जाता है। वैसे तो इसमें साइकोथैरपी और दवा की मदद ली जाती है। अधिकतर केस में इसका इलाज स्वंय करना असंभव है। इसके लिए थैरपी में एक एक करके या ग्रुप में काउंसलिंग होती है।

कॉगनिटिव बिहेविरियल थैरपी से मिल सकती है मदद

कॉगनिटिव बिहेविरियल थैरपी में व्यक्ति के नकारात्मक व्यवहार को बदलने के लिए उनके सकारात्मक व्यवहार को बढ़ाने की कोशिश की जाती है। थैरपी में कलेप्टोमानिया से बाहर आने में मदद मिलती है। इस बीमारी को ठीक करने में दवाओं से ज़्यादा मदद नहीं मिलती है।

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