देश की राजधानी दिल्ली में एक गांव है सैदुलाजाब। यह छोटा-सा गांव दिल्ली जैसे बड़े शहर में गुमनाम सा नजर आता है। यहां पहुंचना मुश्किल नहीं है, मगर इस गांव की खासियत तक पहुंचने में मशक्कत करनी पड़ती है। इस गांव की खासियत है इसकी चंपा गली।
चांदनी चौक की बल्लीमारान जैसी कई पेचिदा गलियों से गुजरने के बाद सैदुलाजाब की चंपा गली का पता मिलता है। एक बार इस तरफ दाखिल हो जाओ तो स्वागत करती हैं इसकी कुछ और जंतर-मंतर सी गलियां। भीतर दाखिल होते ही अपनी ओर खींचते नजारे। हर तरफ से आती एक खुशनुमां सी महक। कहीं प्रकृति, तो कहीं क्रिएटिविटी। कहीं जगमगाते जुगनुओं का ठेला, कहीं जुगाड़ से बना कॉफी कॉर्नर। कहीं अंग्रेजी गानों की आवाज, तो कहीं गोल्डन एरा की महफिल।
यहां सहर शांत सी तो शाम एक चंचल लड़की सी इधर-उधर कूदती-फांदती नजर आती है। दिल्ली के इस गांव की इस अजब सी गली में आकर एक नई सी दुनिया का पता मिलता है। ऐसा पता, जिस तक पहुंचना मुश्किल है और पहुंच जाओ तो निकलने के लिए दिल को मनाना और भी मुश्किल।
सालों पहले पाली जाती थी गांव-भैंस
बताते हैं कि सालों पहले यहां लोग गाय-भैंस पाला करते थे। यहां एक तालाब भी था। खेती-किसानी भी होती थी। मगर धीरे-धीरे यहां सिर्फ जमीनें रह गईं। इन जमीनों पर मकान बनाकर उन्हें किराए पर दिया जाने लगा। यहां बहुत से पीजी और हॉस्टलनुमा घर भी हैं। इन्हीं के साथ बनी हैं फूड शॉप्स, बुटीक, फैशन हाउस, रीडिंग रूम्स, ऑर्गेनिक स्टोर, हैंडीक्राफ्ट के सामान की दुकानें और कई तरह के कैफे और बेकरी शॉप्स। बताया जाता है कि जय भगवान ताउ नाम के एक शख्स और उनके दो भाई यहां की अधिकतर जमीन के मालिक हैं।
ऐसी गली नहीं देखी होगी कभी
चंपा गली उन तमाम गलियों से एकदम अलग है, जिनमें हम-आप रहे हैं या जिन गलियों से हम और आप गुजरे हैं। चंपा गली से गुजरते हुए हर कदम ठहकर कुछ नया महसूस करने का मन करता है। यहां बैठने की ऐसी जगहें हैं, जो घंटो बैठे रहने के लिए मजबूर करती हैं।
यहां एक जगमग ठेला है। नीम के पेड़ के नीचे बने इस जगमग ठेले में स्नैक्स, शेक्स और मसाला चाय की ढेरों वैरायटी मिलती हैं। इसी कैफे के साथ एक रीडिंग एरिया भी बनाया गया है। यहां एक जुगाड़ शॉप भी है। हैंडीक्राफ्ट की इस शॉप में हैंडमेड किताबों से लेकर बैग और कपड़ों तक कई हैरान करने वाली चीजें मिलती हैं।
यहां पीपल ट्री नाम का एक डिजाइन स्टूडियो भी है, जहां कपड़ों से लेकर जूलरी और किताबों तक काफी कुछ एक ही छत के नीचे मिल जाता है। आप यहां आकर देखें, तो मेरे ख्याल से ऐसा सुंदर लैंडस्केप आपने शायद ही पहले देखा हो।
स्टार्टअप्स देखने हों, तो जरूर आएं यहां
आजकल स्टार्टअप्स का जमाना है। अच्छी पढ़ाई और नौकरी के बाद भी युवा अपना कुछ करना चाहते हैं। ऐसा कुछ जहां वो अपना हुनर ज्यादा बेहतर तरीके से दिखा सकें। दुनिया भर में कई लोग आजकल स्टार्टअप कर रहे हैं।
आपके मन में भी कभी ना कभी ऐसा ख्याल आता होगा। मगर कैसे करें, कहां से शुरुआत करें, होगा या नहीं होगा, जैसे सवाल आपको रोक देते होंगे। इस गली में इन सवालों का जवाब भी मौजूद है। यहां बने ज्यादातर कैफे, बुक स्टोर, फूड शॉप्स, हैंडीक्राफ्ट शॉप्स, डिजाइऩ स्टूडियो स्टार्टअप ही हैं। यहां आकर आपको ऐसे युवाओं से मिलने का भी मौका मिलेगा, जिनकी कहानी किसी फिल्म से कम नहीं होगी।
आप यहां सिर्फ घूमने और मस्ती करने के इरादे से भी आ सकते हैं। चाहें तो अपना लैपटॉप, किताब और स्केचबुक भी साथ ले आएं। एक शांत दोपहरी से लेकर एक अल्हड़ शाम तक दिन का हर पहर यहां बेहद सुकून भरा है। इस पर भी हैरानी की बात ये होती है कि पूरी दिल्ली देख चुकने का दावा करने वाले लोगों को भी इसके बारे में अक्सर पता नहीं होता है।
खैर यह गांव और इसकी यह गली दिल्ली के साकेत मेट्रो स्टेशन के नजदीक ही स्थित है।