वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की जिन गलियों में लकड़ी के खिलौने बनाते हुए सिर्फ पुरूष नजर आते थे, अब उन्हीं गलियों में महिलाएं भी बेजान लकड़ी को नया रुप और उनमें रंग भर रही है। पिछले दो महीनों में ये महिलाएं लकड़ी के लट्टू, गुड़िया, सिंदूर दानी, डिबिया और दूसरे छोटे-मोटे खिलौने बनाना सीख भी गई हैं।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में खोजवा समेत कई इलाके ऐसे हैं जहां बड़े पैमाने पर लकड़ी के खिलौने बनाने का काम होता है। वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित कौशल उन्नयन प्रशिक्षण कार्यक्रम में खोजवा के कश्मीरी गंज की रहने वाली स्थानीय महिलाएं अपने घर का काम निपटाने के बाद लकड़ी के खिलौने बनाने का प्रशिक्षण लेती हैं। काष्ठ शिल्प कारीगर बनने की ट्रेनिंग कर रही महिलाओं को 300 रुपए प्रति दिन भत्ता भी दिया जा रहा है।
कार्यक्रम में प्रशिक्षण ले रहीं अभिलाषा देवी (33 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताती हैं, “ट्रेंनिंग में हम लकड़ी को छिलना, औजारों में धार लगाना, लट्टू बनाना, लकड़ी के खिलौना बनाने के बाद उसे पेंटिंग करना सीखे हैं।”
महिलाओं को हुनरमंद बनाने की इस पहल की तारीफ करते हुए अभिलाषा कहती हैं, “पहले जब घर पर रहते थे तो घर के कामों में ही व्यस्त रह जाते थे। जब इस योजना के बारे में सुने तो प्रशिक्षण के लिए फॉर्म भरें और चयनित हो गए। ट्रेनिंग में काम भी सीख गए हैं। उम्मीद है कि आगे काम मिलेगा ताकि कुछ कमाई हो सकें। इससे अपना परिवार भी संभाल पाएंगे।”
अभिलाषा की मांग है कि सरकार इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समय अवधि को बढ़ाएं, जिससे वह और अधिक प्रकार के खिलौने बनाना सीख सकें।
वाराणसी का कश्मीरी गंज क्षेत्र लकड़ी के खिलौने बनाने का प्रमुख केंद्र है। यहां के रंग-बिरंगे खिलौने पूरे देश में मशहूर है। हालांकि ये काम अभी तक सिर्फ पुरुषों के हाथों में था, महिलाएं पेटिंग और दूसरे थोड़े बहुत काम करती थी लेकिन अब वे कुशल कारीगर बन रही हैं। 200 की संख्या में प्रशिक्षण ले रही महिलाएं अब पुरुषों की तरह खिलौने कारोबार में भी बड़ी भूमिका निभाने की राह पर आगे बढ़ रही हैं।
इन महिलाओं को प्रशिक्षित करने वाले ट्रेनर नरेंद्र सिंह कहते हैं, “लकड़ी के खिलौने बनाने के लिए लकड़ी काटना, छिलना फिर औजार में धार लगाना और पेटिंग करना सिखाया जाता है।”
नरेंद्र सिंह का भी कहना है कि सरकार इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समय अवधि को बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि लकड़ी के खिलौने बनाने के लिए दो महीने का समय कम है। खिलौने बनाने की विभिन्न कला को सीखने में कम से कम 6 महीने का समय लगता है।
नरेंद्र सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “जब कारोबारी खिलौने का ऑर्डर देंगे तो इन महिलाओं को खिलौने तैयार करने का काम दिया जाएगा। पुरूष कारीगरों की तरह इन्हें भी पूरा मेहनताना दिया जाएगा।”
अपने घर का काम निपटाने के बाद बबिता सिंह (35 वर्ष) प्रतिदिन दोपहर 2 बजे प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पहुंच जाती हैं। बबिता बताती हैं, “खिलौने बनाने के बाद फिलहाल पेंटिंग करना सीख रहे हैं। पहले ब्रश पकड़ना नहीं आता था, अब अच्छे से पकड़ने आ गया है। अच्छी तरह से पेटिंग कर लेती हूं। पेटिंग के बाद खिलौना दिखने में आकर्षक हो जाता है।”
आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं
खिलौने में रंग भरने के साथ ही ये महिलाएं मशीन भी चलाना सीख गई हैं। बिजली से चलने वाले मशीनों को वे प्रशिक्षित कारीगरों की तरह चला रही हैं। महिलाओं में सीखने का उत्साह है। वे अलग- अलग तरह के आकर्षक लकड़ी के खिलौने तैयार कर रही हैं।
कश्मीरी गंज की रहने वाली अर्चना देवी (36 वर्ष) इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजना को धन्यवाद करती हैं। अर्चना देवी कहती हैं, “लकड़ी के खिलौने बनाते हुए देखे बहुत थे, लेकिन कभी सीखा नहीं था। अब लट्टू बनाने से लेकर खिलौने की पेंटिंग करना सीख गए हैं।”
लकड़ी की एक डिबिया अपने हाथ में लिए अर्चना देवी ने रोज घर के काम से 4 घंटे निकालकर ये काम सीखा है। वो कहती हैं, “अब इंतजार है ऑर्डर मिलने का, ताकि घर बैठे खिलौना बनाकर कुछ पैसे की कमाई कर सकें।”
लकड़ी खिलौना कारोबार को केंद्र सरकार से मिल रहा सहयोग
प्रधानमंत्री और स्थानीय सांसद नरेंद्र मोदी ने कई बार लकड़ी के खिलौने बनाने के कार्यक्रम को प्रोत्साहित किया है। इसी क्रम में भारत सरकार की तरफ से आयोजित देश में पहली बार वर्चुअल टॉय फेयर 2021 में बनारस के लकड़ी के खिलौने को भी शामिल किया गया। टॉय फेयर 2021 की थीम का लोगो लट्टू रखा गया। लकड़ी का लट्टू बनारस में काफी प्रसिद्ध खिलौना है।
इस मौके पर भारतीय खिलौना कारोबार को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, “भारत में अच्छी गुणवत्ता के खिलौने बने, साथ ही उनमे कुछ एजुकेशनल वैल्यू भी हो। हमारे पास लेबर की लागत कम है, आइडिया ज्यादा हैं, और हमारे खिलौने विश्व में जाकर बड़े पैमाने पर बिकें, इस पर हम काम करेंगे।”
उन्होंने कहा कि हमारी अगली पीढी खिलौनों के महत्व को समझे, खिलौनों के द्वारा व्यक्ति के संपूर्ण विकास के लिये क्या क्या चीजों पर हम गौर कर सकते हैं। हमारे ऐतिहासिक चरित्रों के बारे में खिलौनों के माध्यम से नई पीढी को बता सकते हैं।
भारत में अच्छी गुणवत्ता के खिलौने बने, साथ ही उनमे कुछ एजुकेशनल वैल्यू भी हो।
हमारे पास लेबर की लागत कम है, आइडिया ज्यादा हैं, और हमारे खिलौने विश्व में जाकर बड़े पैमाने पर बिकें। इस पर हम काम करेंगे : @PiyushGoyal
— Piyush Goyal Office (@PiyushGoyalOffc) February 11, 2021
बीते साल 2020 में 30 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में देशी खिलौनों को बनाने और लोगों से प्रयोग करने की अपील की थी। उस दौरान उन्होंने वाराणसी के खिलौना बाजार की समृध्दि पर जोर दिया था।
द इंटरनेशनल मार्केट एनालिसिस रिसर्च ऐंड कंसल्टिंग की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय खिलौना बाजार की 85 फीसदी निर्भरता चीन पर रहती है, वहीं मलेशिया, जर्मनी, हांगकांग व अमेरिका से 15 फीसदी खिलौना भारत में आते हैं। चीन भारत को 1,472 अरब रुपये के खिलौने का निर्यात करता है। भारत सिर्फ 18 से 20 अरब रुपये के खिलौने का निर्यात कर पाता है। पूरे विश्व के खिलौना उद्योग में भारत की सिर्फ 0.5 फीसदी हिस्सेदारी है।
हालांकि केंद्र सरकार द्वारा प्रोत्साहन मिलने के बाद इसमें काफी सुधार होता दिख रहा है। दैनिक जागरण बिजनेस डेस्क के एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे विश्व में खिलौने की मांग प्रतिवर्ष 5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है, जबकि भारत में यह वृद्धि 10 से 15 फीसदी तक है। इसलिए कहा जा रहा है कि भारत में साल 2024 तक खिलौना उद्योग 147-221 अरब रुपये का हो जाएगा।
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