– विवेक गुप्ता
पंजाब पुलिस ने एक बड़ी तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ किया है। उन्होंने भारी मात्रा में धान लदे ट्रक जब्त किए गए हैं। पुलिस ने कुछ ट्रक ड्राइवरों
और खलासियों को भी गिरफ्तार किया है। कृषि कानूनों पर देशव्यापी चर्चा के बीच यह
चौंकाने वाला मामला है।
पटियाला घनौर ब्लॉक के इंस्पेक्टर गुरमीत सिंह ने बताया, “उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा से पंजाब जा रहे कुल 53 ट्रक पकड़े गए हैं।
लखनऊ, बाराबंकी, पटना और अन्य जगहों से आए ये ट्रक
पंजाब-हरियाणा की सीमा से लगे शम्बू क्षेत्र से पंजाब में प्रवेश कर रहे थे। वहीं, सात अन्य ट्रकों को पटियाला के पेहोवा, बलबेरा, चीका, धब्बी गुजरन और
पत्रन से पकड़ा गया। पुलिस ने इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (जालसाज़ी) और 120-बी ( आपराधिक षड्यंत्र)
के तहत एफआईआर दर्ज की है।”
अमृतसर जिला खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी जसजीत सिंह कौर के अनुसार, “जिला किसान संघ ने पिछले तीन दिनों में धान
से लदे 26 ट्रक पकड़े हैं। इसके
बाद स्थानीय प्रशासन ने ट्रकों को ज़ब्त कर लिया। अब मामला मंडी बोर्ड और पुलिस के
हाथ है।”
पंजाब के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के उप निदेशक मुनीश नरूला ने गांव कनेक्शन
को बताया, “राज्य की सीमा
से जुड़े संगरूर और भठिंडा जिलों में भी कुछ ट्रक पकड़े गए हैं। इस मामले में हम
पुलिस की मदद कर रहे हैं। प्राथमिक जाँच में पता चला है कि उत्तर प्रदेश और बिहार
के किसानों से 900 से 1100 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदकर बिचौलिये
और व्यापारी पंजाब में बेचना चाहते थे।”
एसएसपी विक्रमाजीत सिंह दुग्गल
ने बताया, “ऐसा करने का
मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाना था। पंजाब में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) 1,888 रुपये प्रति
क्विंटल है। अगर बाहर का धान चोरी से यहां बिकता है तो यह राज्य के किसानों के लिए
नुकसानदायक होगा।” दरअसल,
भारत
सरकार पंजाब
से भारी मात्रा में धान खरीदती है।
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जितनी कुल उपज उससे 10-15 फीसदी ज्यादा खरीद
इंस्पेक्टर गुरमीत सिंह ने कहा,
“धान
की चोरी और तस्करी का यह पहला मामला नहीं है। हमने पिछले साल भी इस सम्बन्ध में
एफआईआर दर्ज किये थे,लेकिन पहली बार
इतने बड़े तादाद में ट्रक पकड़ना और धान ज़ब्त करना बड़ी सफलता है।”
ढकुण्डा के भारतीय किसान संघ के महासचिव जगमोहन सिंह ने गाँव कनेक्शन से बताया, “तीन-चार सालों से खरीद एजेंसियां राज्य में
पैदा होने वाले कुल धान की तुलना में 10 से 15 फीसदी ज्यादा धान खरीद रही थीं। चूँकि
बिहार और उत्तर प्रदेश में उचित मंडी व्यवस्था नहीं है। बिहार
में 2006 में ही एपीएमसी खत्म हो
चुका है। एमएसपी बिक्री व्यवस्था भी नगण्य है। ऐसे में किसान उन व्यापारियों और
मध्यस्थों या बिचौलियों को धान बेचने को मजबूर हो गए, जो पंजाब जैसे राज्य में फसल बेंचकर लाखों
का मुनाफ कमाते हैं। दूसरी ओर पंजाब में एमएसपी आधारित प्रणाली इतनी मजबूत है
जिसका फायदा किसान उठाते हैं।”
सर्वेः 39 फीसदी किसान
मानते हैं कि खत्म जाएगा एमएसपी
पंजाब में यह कार्रवाई ऐसे समय हुई है जब पूरे देश और खासतौर पर पंजाब और
हरियाणा के किसान तीन
नए कृषि विधेयक को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। आंदोलनकारी किसानों को डर है कि नए
कानून से मंडी बाज़ार या एपीएमसी के साथ-साथ एमएसपी की व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
गाँव कनेक्शन के हालिया रैपिड सर्वे में किसानों के इस डर का पुनर्विश्लेषण किया
गया।
यह सर्वे
16 राज्यों के 53 ज़िलों में किया गया, जिसमें 5,022 किसानों को शामिल किया गया। सर्वे का उद्देश्य यह समझना था
कि क्या तीन नए कृषि कानूनों के प्रति किसानों का डर और संदेह सच है? सर्वे में शामिल 39 फीसदी किसानों ने माना कि नए क़ानून से
एमएसपी खत्म हो जाएगा। वहीं, सर्वे में शामिल
आधे से अधिक किसान (59 फीसदी) चाहते
हैं कि एमएसपी को कानूनन बाध्यकारी मान लिया जाए। सर्वे
में यह भी पता चला कि उत्तर प्रदेश,
बिहार
और उत्तराखंड में बहुत कम अनुपात में यानी 26 फीसदी किसान
एमएसपी दर पर अपनी फसल बेचते हैं।
किसानों पर दोहरी मार, फसल बेंचे कि आंदोलन करें
विडंबना यह है कि धान की कटाई ही बिल विरोधी किसानों का वास्तविक डर बन गया
है। खरीफ़ की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है। किसान इसे जल्द से जल्द बेच कर रबी फसल की
बुवाई की तैयारी में लगना चाह रहे हैं। लेकिन वे तब
तक ऐसा नहीं कर सकते जब तक वे तैयार फसल की बिक्री न कर लें। उनके सामने बकाया
मज़दूरी देने, कर्ज का निपटान
और अगली बुवाई की तैयारी की चुनौती है। ऐसी परिस्थितियां उतर प्रदेश और बिहार के
किसानों को मध्यस्थों और दलालों को फसल एमएसपी से कम पर फसल बेंचने को बाध्य कर
रही हैं। यही वजह है कि इतने बड़े पैमाने पर धान की तस्करी हो रही है। 16 अक्टूबर से अलग-अलग जगहों से पंजाब में
घुसने की पुरज़ोर कोशिश को पंजाब
पुलिस ने नाकाम कर दिया। भारी तादाद में बरामद धान को ज़ब्त कर लिया गया।
व्यापारियों-बिचौलियों, मिल मालिकों का नेटवर्क
इंस्पेक्टर गुरमीत सिंह ने बताया कि ड्राइवर और उनके सहयोगी का पकड़ा जाना
शुरुआती सफलता है। हमें पूरा विश्वास है कि यह एक बड़ा नेटवर्क है और षड्यंत्रकारी
कहीं और बैठा हुआ है। इस बड़ी साज़िश के पीछे पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार के मध्यस्थों, दलालों, व्यापारियों और मिल मालिकों का नेटवर्क है। पुलिस इसकी जांच
कर रही है।
घनौर के क्षेत्रीय बाज़ार समिति के सचिव गुरमीत सिंह के अनुसार पंजाब में
किसानों को भुगतान दलालों के माध्यम से किया जाता है। दलाल आसानी से दूसरे राज्यों
से खरीदे धान को स्थानीय किसानों के धान से मिलाकर सरकार को बेच देते हैं। खाद्य
एवं आपूर्ति विभाग और पंजाब मंडी बोर्ड की निगरानी अधिसूचित क्षेत्रीय बाज़ार समिति
( जहाँ किसानों के फसल की खरीद बिक्री होती है)
कार्यरत है। धान चोरी से सम्बंधित पुलिस को किसी भी प्रकार की जानकारी
देने के लिए प्रतिबद्ध है।
पटियाला के खाद्य एवं आपूर्ति अफसर हरशरण जीत सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पुलिस को मिले ट्रांसपोर्ट के कागज़ात से
ज़िले के दो चावल मिल मालिकों को कारण बताओ नोटिस ज़ारी किया है। अगर इनमें से कोई
संदिग्ध मिला तो मिल का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। मंडी इंस्पेक्टर धान की
बिक्री के समय तैनात रहते हैं। फिर भी पडोसी राज्यों की सीमाओं पर जांच और निगरानी
आवश्यक है ताकि तस्करी को रोका जा सके।”
खरीदी और उपज के आंकडों में अंतर
गाँव कनेक्शन को मिली जानकारी के अनुसार धान के उत्पादन और सरकारी एजेंसियों
द्वारा खरीदे धान के आँकड़े दर्शाते हैं कि पंजाब में खरीदा गया धान वहाँ उगाए गए
धान से अधिक है। भारतीय खाद्य निगम और केंद्र व राज्य सरकार की सरकारी एजेंसियों
के आँकड़ों के अनुसार साल 2019-20 में पंजाब में 163.2 लाख टन धान की खरीद हुई। जबकि राज्य कृषि
विभाग से प्राप्त आँकड़ों से यह पता चलता है कि उसी वर्ष कुल धान उत्पादन 150. 4 लाख टन हुआ।
इसी प्रकार 2018 -19 में सरकार ने 170. 46 लाख टन धान खरीदा तो
दूसरी ओर राज्य में धान का कुल उत्पादन 169.
29 लाख टन था। हाल ही में पंजाब पुलिस ने 11
,080 क्विंटल धान ज़ब्त किया है। यदि यह मान कर चलें कि बिचौलियों द्वारा ज़ब्त धान
को उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों से 1000 रुपये प्रति
क्विंटल ख़रीदा गया और पंजाब में इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर पर 1888 रुपये प्रति क्विंटल बेचा गया तब भी
किसानों और सरकारी राजकोष को लगभग 1 करोड़ का नुकसान
हुआ।
प्रशासन की गंभीरता के कारण जब्ती
चंडीगढ़ के भारतीय खाद्य निगम के उप महाप्रबंधक सुमित बंसल ने गाँव कनेक्शन को
बताया, राज्य खरीद एजेन्सियाँ
धान का प्रमुख हिस्सा अपने पास रखती हैं। अगर वे चाहें तों अनियमितताओं को रोक
सकती है। इसके लिए सरकार के पास पर्याप्त संसाधन हैं। कृषक संगठनों का मानना है कि
इस वर्ष अनियमितताएं ज्यादा पकड़ में आईं,
क्योंकि
प्रशासन ने इसे काफी गंभीरता से लिया। हमारे सदस्यों ने कई स्थानों से बड़ी संख्या
में ट्रकों को पकड़ा और उन्हें तब तक नहीं छोड़ा जब तक पुलिस-प्रशासन ने आपराधिक
मामला दर्ज नहीं किया।
राज्य सरकार के पूर्ण आश्वासन के बावजूद सभी अंतरराज्यीय सीमाओं को बंद नहीं
किया गया। इन घटनाओं से यह साफ़ है कि मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था किसानों के लिए
बिल्कुल हितकर नहीं है। बल्कि यह उन्हें और अधिक वित्तीय संकट की तरफ धकेल रहा है।
अब ज़रूरत है न्यूनतम
समर्थन मूल्य की एक
मजबूत आधारशिला हो
उत्तर प्रदेश और
बिहार से पंजाब
में धान की तस्करी से
यह बात तो बिल्कुल साफ़ हो जाती है
कि किसानों को
उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य
भी नहीं मिल
पाता। चंडीगढ़ के
ग्रामीण और औद्योगिक
विकास अनुसन्धान केंद्र
के अर्थशास्त्र के
प्रोफेसर आर.एस.
घुमन ने गाँव कनेक्शन को बताया
कि नए
कृषि विधेयक के
तहत एम.एस.पी. और
ए.पी. एम.सी. को
अगर निरर्थक मान
लिया गया तो स्थिति बहुत
ही भयावह होने
वाली है। किसानों
की स्थिति बदतर
हो जायेगी क्यूँकि
सारे फ़ायदे व्यापारियों
और कॉर्पोरेट सेक्टर
को होने वाले
हैं।
उनके अनुसार यदि
निजी व्यापारी फसल
खरीदना चाहें तो
उन्हें बाहरी लोगों
पर निर्भर न
होकर राज्य के
अंदर विख्यात बाज़ार
समिति का चयन करना उचित
होगा। दूसरे राज्यों
पर निर्भरता का
मतलब किसानों की
आर्थिक सुरक्षा खतरे
में है।
नए कृषि विधेयक
से किसानों में
एक दहशत सी बन गई
है। दहशत का बनना भी
लाज़मी है क्यूँकि
ए.पी.एम.सी. और
एम.एस.पी. का कमज़ोर
पड़ना या उसके अस्तित्व को ही, नकार देने
का मतलब पंजाब
के किसानों का
शोषण होना तय है, जैसा
उत्तर प्रदेश और
बिहार में हो रहा है।
बी. के. यू.-उग्रहन के
महासचिव सुखदेव कोकरी
ने गाँव कनेक्शन
को बताया कि
हमने ढृढ़ निश्चय
किया है कि अपने राज्य
में नए कृषि क़ानून को
लागू नहीं होने
देंगे। क्यूंकि अगर
ऐसा हुआ तो किसान पूरी
तरह बर्बाद हो
जाएंगे। खासतौर
पर लघु और सीमान्त किसानों पर
इसका ज़्यादा असर
होगा , क्यूँकि इनकी
ज़िंदगी पहले से ही वित्तीय
संकट से घिरी हुई है।
पटियाला के पंजाब
विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र
के प्रोफेसर जसविंदर
सिंह बरार ने कोकरी के
शब्दों का समर्थन
करते हुए कहा कि कृषि
व्यापार में यह जो लहर
आई है , बहुत
ही खतरनाक है।
कम कीमत पर सामान खरीद
कर उसे दूसरे
राज्य में अधिक
मूल्य पर बेचने
से व्यापारियों और
बिचौलियों को फ़ायदा तो
होगा और अगर ऐसा ही
रहा तो आगे भी होता
रहेगा। पर किसानों
का जीवन कष्टकारी
होता जाएगा। इसलिए इन
तीन नए कृषि क़ानून को
लागू नहीं होने
देना चाहिए।
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