मुद्रा योजना: छोटे व्यापारियों को आसानी से लोन देने वाली इस योजना की जमीनी हकीकत क्या है?

Daya Sagar | Feb 04, 2020, 11:07 IST
इस रिपोर्ट में ग्राउंड रिपोर्टिंग कर यह जानने की कोशिश की गई है कि क्या मुद्रा योजना के तहत छोटे व्यवसायियों के लिए लोन लेना उतना आसान है, जितना सरकार प्रचार करती है और जितना आसान इसे वेबसाइट पर बताया जाता है?
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बिहार के छपरा के कटहरी बाग में फूलों की एक छोटी सी दुकान चलाने वाले धनंजय कुमार (38 वर्ष) को अपना कारोबार बढ़ाने के लिए कुछ पैसों की जरूरत थी। केंद्र सरकार की 'मुद्रा योजना' के तहत उन्होंने एक नजदीकी बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया, लेकिन उन्हें लोन नहीं मिला। धनंजय कुमार सहित दर्जनभर फूल कारोबारियों की लोन की अर्जी को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि वे 'फूल वालों' को लोन नहीं दे सकते, क्योंकि यह कच्चा व्यापार है।

छपरा से लगभग 500 किलोमीटर दूर लखनऊ के रूदानखेड़ा गांव की रहने वाली किरण गुप्ता (34 वर्ष) ने भी अपना कारोबार बढ़ाने के लिए लोन लेने की कोशिश की थी लेकिन बैंक वालों ने ब्याज का भय दिखाकर लोन देने से इनकार कर दिया। किरण अपने पति के साथ घर पर ही मिठाई के डिब्बे बनाने का एक छोटा सा व्यवसाय करती हैं।

वहीं बाराबंकी के बेलहर गांव के सतेंद्र मौर्या (42 वर्ष) को अपनी मोबाइल और रिचार्ज की दुकान को बड़ा करने के लिए लगभग एक लाख रुपए की आवश्यकता थी, लेकिन बैंक ने मुद्रा योजना के तहत उन्हें सिर्फ 50 हजार रुपए का लोन दिया। सतेंद्र कहते हैं कि बैंक ने इसके लिए उनसे कोई वाजिब कारण नहीं बताया। उन्हें बस यह कहा गया कि उनकी योजना में इतना दम नहीं है कि 50 हजार से अधिक का लोन दिया जा सके।

8 अप्रैल, 2015 को मोदी सरकार ने मुद्रा योजना (Micro Units Development and Refinance Agency- Mudra) की शुरूआत की थी। कहा गया था कि इससे छोटे और मझोले स्तर का व्यवसाय और रोजगार करने वाले कारोबारियों को नया कारोबार शुरू करने या पुराने कारोबार को बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्हें बिना गारंटी और बिना किसी खास कागजी अड़चनों के सब्सिडी युक्त और कम ब्याज पर आसान कर्ज मिल सकेगा।

हालांकि जमीन पर जाने पर पता चलता है कि इस योजना के तहत छोटे व्यवसायियों के लिए लोन लेना उतना आसान नहीं है, जितना सरकार प्रचार करती है और जितना आसान इसे योजना की वेबसाइट पर बताया जाता है।

वास्तविक जरूरतमंद लोगों को जानकारी और जागरुकता के अभाव में इस योजना से वंचित किया जाता है। कुछ को ब्याज और लोन का भय दिखाया जाता है, वहीं कुछ की कार्ययोजना (प्रोजेक्ट) और व्यवसाय को कमजोर बताकर लोन देने से इनकार किया जाता है।

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सतेंद्र मौर्या को दुकान का कारोबार बढ़ाने के लिए एक लाख रुपये की जरुरत थी लेकिन उन्हें सिर्फ 50 हजार रुपये लोन के रुप में मिला

इस योजना का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "गरीबों की सबसे बड़ी पूंजी उनका ईमान है और इस ईमान के साथ पूंजी का मेल छोटे उद्यमियों की सफलता की कुंजी होगी।"

31 जनवरी को बजट सत्र की शुरुआत से पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण में भी इसे सरकार की उपलब्धियों में गिनाया। उन्होंने कहा, "2018-19 वित्तीय सत्र के दौरान इस योजना का लाभ 5 करोड़ 54 लाख से अधिक लोगों को मिला, जिसके तहत 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक का ऋण दिया गया।"

सरकार का दावा है कि इस योजना से रेहड़ी वालों, टंकी वालों, जूस, पकौड़ा और पान की दुकान करने वाले छोटे दुकानदारों को फायदा मिल रहा है, जो पूंजी के अभाव में अपना व्यवसाय नहीं बढ़ा पाते हैं।

मुद्रा योजना की वेबसाइट के अनुसार लोन लेने की यह प्रक्रिया 7 से 10 दिन में पूरी हो जानी चाहिए। वहीं बड़े लोन के लिए यह अवधि अधिकतम एक महीने तक हो सकती है। लेकिन रिपोर्टिंग के दौरान हमें कई लोग ऐसे मिले, जिनका अनुभव लोन देने के दौरान अच्छा नहीं रहा।

लखनऊ जिले के माल बाजार के रहने वाले हनुमान (48 वर्ष) बाजार में ही ऑटोमोबाइल सर्विसिंग की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने जून, 2019 में इस योजना के तहत लोन लेने के लिए अप्लाई किया था लेकिन लोन मिलते-मिलते दिसंबर, 2019 हो गया। हनुमान के साथ ही उनके एक और साथी संजय ने भी मुद्रा योजना के तहत लोन के लिए अप्लाई किया था। उन्हें अभी चार दिन पहले ही पता चला है कि उनके लोन को मंजूरी मिल गई है। जबकि एक दूसरे साथी अभिनंदन की अर्जी को अस्वीकार कर दिया गया।

हनुमान बताते हैं, "इस दौरान उनका 50 हजार से अधिक रुपया और बहुत सारा समय खर्च हुआ, इसके वजह से उनकी दुकानदारी भी प्रभावित हुई। ब्लॉक से लेकर जिले तक दौड़ना पड़ा, कई बार फॉर्म भरना और उसे वेरिफाई कराना पड़ा, तब जाकर यह लोन मिला।" वह कहते हैं कि अगर उन्हें पता रहता कि इस दौरान इतना दौड़ना-भागना पड़ेगा और 50 हजार से अधिक रुपए खर्च हो जाएंगे, तो कभी भी लोन के लिए अप्लाई नहीं करते।

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मुद्रा लोन लेने की भागम-दौड़ का अनुभव हनुमान के लिए अच्छा नहीं रहा

रिपोर्टिंग के दौरान हमें कुछ ऐसे लोग भी मिले जिन्हें बहुत आसानी से और निर्धारित समय में यह लोन मिल गया। ऐसे लोग वे थे जो बैंक के आस-पास रहते हैं या जिनका क्षेत्र में प्रभावी पहचान है।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर के पिसावां में रस्क (कुरकुरा) की फैक्ट्री लगाने वाले एक युवक ने नाम ना बताने की शर्त पर बताया कि उन्हें बहुत आसानी से एक महीने के भीतर ही एक लाख का लोन मुद्रा योजना के तहत मिल गया। उन्होंने यह भी बताया कि ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि उनके भाई एक स्थानीय पत्रकार हैं और बैंक के लोगों से उनकी अच्छी जान पहचान है।

वहीं बाराबंकी के मोबाइल व्यापारी सतेंद्र ने एक लाख रुपए के लोन के लिए अप्लाई किया था, लेकिन उन्हें सिर्फ 50 हजार का लोन मिला। इससे पहले सतेंद्र ने मुद्रा योजना के ही तहत 25 हजार रुपए का लोन लिया था और वह इस लोन को बिना डिफॉल्टर हुए सही समय पर भर भी चुके हैं। सतेंद्र को दुःख है कि अच्छे रिकॉर्ड के बावजूद उनकी लोन की अर्जी को बैंक ने खारिज कर दिया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि मुद्रा योजना सतेंद्र जैसे छोटे व्यापारियों और व्यवसायियों के लिए ही है।

वर्ष 2018 में एक आरटीआई के जवाब में सूक्ष्म एवं लघु उद्योग मंत्रालय ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि मुद्रा योजना के तहत 90% से अधिक लोन 50 हजार रुपए या उससे कम के हैं। वहीं 5 लाख से अधिक के लोन का लाभ सिर्फ 1.45% लोगों को ही मिला था।

एक सरकारी बैंक में बैंक मैनेजर ने नाम ना छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया, "जैसी जिनकी जरूरत होती है, वैसा लोन बैंक देता है। इस योजना के तहत अधिकतर मंझले और छोटे व्यवसायी आते हैं, जिनकी जरूरत ही 50 हजार तक होती है। यही वजह है कि 50 हजार तक के लोन बांटे गए हैं।"

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मिठाई के डिब्बे बनाने वाली किरण गुप्ता को बैंक वालों ने कर्ज और ब्याज का भय दिखाकर लोन देने से इनकार कर दिया।

वहीं एक अन्य बैंक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया, "सरकार कितने भी सुलभ और आसान नियम बना ले, लेकिन बैंक तब तक लोन जारी नहीं करता जब तक वे निश्चिंत ना हो जाए कि उन्हें लोन की रकम वापस मिल पाएगी। इसके लिए लोन लेने वाले का रिकॉर्ड, जमीन-जायदाद, व्यवसाय की स्थिति सबकी जांच की जाती है।"

वह आगे कहते हैं, "अधिकतर बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है और बैंकों पर इन बढ़ते हुए एनपीए का दबाव है। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), मुद्रा, प्रधानमंत्री स्वरोजगार (पीएमईजीपी) जैसी सरकारी योजनाएं एनपीए को और बढ़ा रही है। सरकार लोन दिलवाती है और फिर कुछ लोन को माफ भी कर दिया जाता है। लेकिन इस सबका दबाव बैंकों पर पड़ता है, जिस पर कोई ध्यान नहीं देता।"

रिपोर्टिंग के दौरान हमें दर्जनों गांव और सैकड़ों लोग ऐसे मिले जिन्हें इस योजना के बारे में पता ही नहीं था। मुद्रा योजना के तहत यह प्रावधान किया गया है कि बैंक गांवों में कैंप और 'लोन मेला' लगाकर इस योजना के बारे में लोगों को जागरूक करेंगे, इसके लिए बैंक में फील्ड अधिकारियों की भी नियुक्ति की जाएगी। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि उनके वहां कभी ऐसा कैंप और मेला नहीं लगा।

(रिपोर्टिंग सहयोग- बिहार से अंकित कुमार मिश्रा)

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