गाँव कनेक्शन की टीम ने उत्तर प्रदेश के दर्जन भर जिलों के ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक विद्यालयों का जायजा लिया, जिसमें कोई भी स्कूल ऐसा नहीं मिला जहां पर छात्रों की संख्या और कक्षाओं के आधार पर शिक्षकों की मौजूदगी हो। कुछ स्कूल ऐसे भी मिले जहां पर एक अध्यापक के सहारे पूरा स्कूल चल रहा है। जबकि शहरी क्षेत्रों के स्कूलों में अध्यापकों की संख्या, ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों से अधिक मिली।
रिपोर्टिंग सहयोग/इनपुट- ललितपुर से अरविंद सिंह परमार, बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह, शाहजहांपुर से रामजी मिश्रा, सोनभद्र से भीम और सीतापुर से मोहित शुक्ला
‘क्या करें सर, किसी तरह मैनेज हो रहा है।’, इतना कहकर प्राथमिक विद्यालय चमरौली, उन्नाव के प्रधानाध्यापक मोहम्मद मुस्तकीम एक बड़ा सा रजिस्टर पलटने लगते हैं।
मुस्तकीम अगस्त माह की उपस्थिति का रिकॉर्ड, स्कूल में हुए खर्च का पूरा लेखा-जोखा बनाने के साथ-साथ मतदाता सूची के नवीनीकरण का काम कर रहे हैं। उनके डेस्क पर कई बड़े रजिस्टर पड़े हैं जबकि उनके आस-पास चौथी और पांचवी कक्षा के छात्र अपनी कॉपी लेकर चेक कराने के लिए खड़े हैं।
मुस्तकीम बताते हैं, “महीना खत्म हो गया है तो सभी फाइलों के रिकॉर्ड को मेंटेन कर जिला मुख्यालय भेजना है। स्कूल में शिक्षक कम हैं तो क्लास लेने के साथ-साथ किसी तरह यह सब भी मैनेज कर रहा हूं।” मुस्तकीम के स्कूल में पांच कक्षाओं और 130 छात्रों पर सिर्फ तीन अध्यापक और चार कमरे हैं। इसलिए उन्हें एक साथ कई चीजें करनी पड़ती हैं।
चमरौली (उन्नाव) से लगभग 150 किलोमीटर दूर सीतापुर के प्राथमिक विद्यालय कनैला के प्रधानाध्यापक सुशील कुमार मौर्य की भी समस्या यही है।
स्वास्थ्य विभाग के रजिस्टर में बच्चों को आयरन की गोलियां बांटने का ब्योरा भरते हुए सुशील कहते हैं, “देखिए अपने विभाग के काम क्या कम हैं, जो दूसरे विभागों का काम भी हमें करना पड़ता है।” सुशील के स्कूल में 138 विद्यार्थियों पर केवल एक अध्यापक और तीन शिक्षामित्र हैं। कमरे भी सिर्फ तीन ही हैं। इसलिए कुछ कक्षाएं एक साथ कम्बाइंड चलती हैं।
कम शिक्षक, कम्बाइंड क्लासेज और शिक्षकों पर बढ़ता क्लर्कियल कागजी काम, यह उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा की तस्वीर है। बेसिक शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में एक लाख 43 हजार 926 शिक्षकों की कमी है।
जहां एक ओर प्रदेश प्राथमिक शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है, वहीं शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में विद्यार्थी और अध्यापकों के अनुपात में अंतर होना समस्या को और जटिल बना देता है।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों की उपस्थिति का अंतर जानने के लिए जब गाँव कनेक्शन टीम ने शहरी स्कूलों की स्थिति परखी तो पता चला कि शहरी क्षेत्रों के प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक थी।
लखनऊ के चिनहट में हाइवे के किनारे स्थित प्राथमिक विद्यालय, उत्तरधौना में चार अध्यापक और एक शिक्षामित्र हैं। इस विद्यालय में आस-पास के बीएड-डीएलएड कोर्स करने वाले अभ्यर्थी भी ट्रेनिंग के रूप में पढ़ाने आते हैं।
विद्यालय की प्रधानाचार्या मंजू श्रीवास्तव ने बताया, “स्कूल में दो और शिक्षकों की नियुक्ति होने वाली है, इसलिए उनके वहां शिक्षकों की कमी कभी महसूस नहीं हुई।” कुछ ऐसा ही शामली के नगरीय क्षेत्र में स्थित प्राथमिक विद्यालय की शिक्षक सुहासिनी ने भी बताया। सुहासिनी के विद्यालय में पांच कक्षाओं पर आठ शिक्षक हैं।
संतकबीरनगर के एक शिक्षक ने नाम ना छापने की शर्त बताया, “यह एक ट्रेंड सा है। जहां नगरीय क्षेत्र के विद्यालयों में पर्याप्त मात्रा में शिक्षक मिलते हैं। वहीं जैसे-जैसे हम शहर से दूर गाँवों की ओर बढ़ने लगते हैं शिक्षकों की संख्या घटती जाती है। मेरे खुद के विद्यालय में सिर्फ दो शिक्षक और दो शिक्षामित्र हैं, जबकि एक अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय होने के नाते इस विद्यालय में कम से कम पांच शिक्षक तैनात होने चाहिए।”
प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के संबंध में बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेंद्र विक्रम बहादुर कहते हैं, “प्रदेश में शिक्षकों की कमी से अधिक समस्या उनके असमान वितरण से है। कई जिलों और शहरी क्षेत्रों के विद्यालयों में आवश्यकता से अधिक शिक्षकों की तैनाती हो गई है। शिक्षक शहर और शहर के आस-पास के क्षेत्रों में ही अपनी तैनाती चाहते हैं।”
सर्वेंद्र विक्रम बहादुर आगे कहते हैं, “पिछले कुछ समय से विभाग ने इसके खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। विभाग लगातार समायोजन और स्थानान्तरण की नीति अपना रहा है ताकि शिक्षकों के असमान वितरण को संतुलित किया जा सके।”
निदेशक ने प्रदेश में एक लाख से अधिक शिक्षकों की कमी मानते हुए कहा, “वर्तमान में प्रदेश में 69,000 प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया चल रही है, जो जल्द से जल्द पूरी हो जाएगी।”
कई विद्यालयों में सिर्फ एक शिक्षक
“एक ही टीचर हैं। वही सभी कक्षाओं को एक साथ पढ़ाते हैं। इसलिए कभी भी हमारा कोर्स पूरा नहीं हो पाता। कई विषय तो एकदम छूट जाते हैं। अगर एक से अधिक टीचर होते तो हमें अलग-अलग विषयों को अलग-अलग टीचर से पढ़ने का मौका मिलता।” उत्तर प्रदेश के ललितपुर की कुम्हेढ़ी गांव की रहने वाली राधिका सिंह (9 वर्ष) बताती हैं।
राधिका कुम्हेढ़ी गाँव के ही अंग्रेजी माध्यम प्राथमिक विद्यालय में कक्षा चार की छात्रा है। उसके स्कूल में लगभग 100 छात्रों पर मात्र एक अध्यापक और एक शिक्षामित्र हैं। ऐसे में सभी कक्षाएं एक साथ चलती हैं। इस वजह से छात्र-छात्राओं को पढ़ाई में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कक्षा में राधिका के बगल में बैठी पांचवीं कक्षा की प्रेमलता और वैशाली भी यही बात दोहराती हैं।
दिसंबर, 2016 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया था कि देश के एक लाख से अधिक प्राथमिक स्कूलों में सिर्फ एक अध्यापक मौजूद हैं। इस सूची में उत्तर प्रदेश 17 हजार से अधिक विद्यालयों के साथ मध्य प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर था।
कुम्हेढ़ी प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक और स्कूल के एकमात्र शिक्षक डीएल यादव कहते हैं, “ईमानदारी से कहूं तो यह एक कामचलाऊ व्यवस्था है। कक्षा पांच के जो छात्र तेज हैं, उन्हें कक्षा एक और दो में भेज देता हूं। कक्षा तीन को शिक्षामित्र पढ़ाते हैं जबकि चार और पांच को मैं खुद पढ़ाता हूं। किसी तरह से 100 बच्चों को एक साथ मैनेज करना पड़ता है।”
डीएल यादव ने बताया कि उन्होंने शिक्षकों की कमी के बारे में अधिकारियों को कई बार सूचना दी, लेकिन अभी तक किसी भी शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई। जबकि डीएल यादव के विद्यालय को अंग्रेजी माध्यम विद्यालय घोषित किया गया है जिसमें कम से कम पांच शिक्षकों की नियुक्ति अनिवार्य है।
शिक्षकों की कमी के बारे में पूछने पर ललितपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी मनोज कुमार वर्मा गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति के लिए एक विभागीय परीक्षा हुई थी, उसके बाद अध्यापकों की नियुक्तियां हुईं। लेकिन कुछ अध्यापकों ने अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में नियुक्ति लेने से इनकार कर दिया। इसलिए ऐसी दिक्कतें आ रही हैं। विभागीय स्तर पर यह मामला संज्ञान में है। हम जल्द ही वहां पर शिक्षकों की नियुक्ति कराएंगे।”
कुम्हेढ़ी गाँव में रहने वाले दिनेश बिदुआ (48 वर्ष) कहते हैं, “जब हमारे गाँव में इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलने की बात हुई तो हम लोग बहुत खुश हुए थे। उम्मीद थी कि हमारे बच्चे अब इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़कर होशियार बनेंगे, उन्हें योग्य अध्यापक पढ़ाएंगे। लेकिन योग्य अध्यापक के नाम पर स्कूल में सिर्फ एक ही अध्यापक आया। इसलिए स्कूल में धीरे-धीरे नामांकन का स्तर गिर रहा है। पहले यहां दो सौ से ऊपर बच्चे पढ़ते थे लेकिन अब संख्या सौ तक ही सिमट गई है।”
दो या तीन कमरों में चलती हैं पांच कक्षाएं
गाँव कनेक्शन ने प्रदेश के दर्जन भर विद्यालयों का जायजा लिया, जहां पर शिक्षकों के साथ-साथ कमरों की कमी भी साफ दिखी। अधिकतर विद्यालयों में एक साथ दो-दो कक्षाएं एक साथ चलती मिलीं।
सीतापुर जिले के पिसावां ब्लॉक में पड़ने वाले महमदापुरा प्राथमिक विद्यालय द्वितीय में सिर्फ एक कमरा है, इसमें 133 बच्चे एक साथ पढ़ते हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यपक सुधांशु मिश्रा ने बताया, “कई बार विभाग को इसकी जानकारी दी। विभाग की तरफ से विद्यालय के लिए एक नया भवन भी बनवाया गया था लेकिन भवन हैंडओवर होने से पहले ही जर्जर हो गया, उसका प्लास्टर गिरने लगा।”
महमदापुरा प्राथमिक विद्यालय में कक्षा चार में पढ़ने वाला छात्र सुभाष कहता है, “एक साथ सभी क्लास चलने से कई बार बैठने और बैग रखने की भी जगह नहीं मिलती। गर्मी भी बहुत लगती है।”
सीतापुर जिले में ही प्राथमिक विद्यालय कनैला में कक्षा एक और दो की क्लास एक साथ, जबकि कक्षा चार और पांच की क्लास एक साथ चलती मिलीं। इसी तरह प्राथमिक विद्यालय, राउतपार संतकबीर नगर, प्राथमिक विद्यालय पाली, उन्नाव, प्राथमिक विद्यालय अखईपुर, बाराबंकी और प्राथमिक विद्यालय हेमी, लखनऊ में भी एक कमरे में दो या तीन-तीन कक्षाएं एक साथ चलती हुई मिलीं।
शिक्षा की गुणवत्ता पर काम करने वाली संस्था ‘प्रथम’ की रिपोर्ट ‘असर’, 2018 (Annual Status of Education Report) के अनुसार उत्तर प्रदेश के 63 प्रतिशत से अधिक स्कूल ऐसे हैं जहां पर एक कक्षा के छात्रों को किसी और कक्षा के साथ बिठाकर पढ़ाया जाता है।
प्राथमिक विद्यालय कनैला के प्रधानाचार्य सुशील दो कक्षाओं को एक साथ पढ़ाने के तरीके के बारे में समझाते हैं, “पहले एक कक्षा के पाठ को पढ़ाकर उन्हें कुछ काम दे देते हैं। हर कक्षा का एक अलग मॉनीटर होता है, जो उस कक्षा के छात्रों को संभालता है। इसके बाद दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों को उनका पाठ पढ़ाया जाता है। ‘कम्बाइंड क्लास’ में ब्लैक बोर्ड को भी दो हिस्सों में बांट दिया जाता है।”
कई कक्षाओं के एक साथ पढ़ाने का परिणाम पढ़ाई की गुणवत्ता में भी आता है। ‘असर’, 2018 की रिपोर्ट उत्तर प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था और गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठाती रही है। ‘असर’ 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक कक्षा पांच में पढ़ने वाले प्रदेश के लगभग 50 फीसदी छात्र कक्षा दो के पाठ को पढ़ने में सक्षम नहीं हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार गणित के भाग और घटाने जैसे सवाल हल करने में भी प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों के छात्र काफी पिछड़े हैं।
अध्यापकों की कमी और उनको होने वाली दिक्कतों को लगातार उठाने वाले यूपी प्राथमिक शिक्षक संघ ने शिक्षक दिवस (5 सितंबर, 2019) को ‘शिक्षक सम्मान बचाओ दिवस’ के रूप में मनाया और सरकार से मांग की कि हर प्राथमिक स्कूल में कम से पांच शिक्षक और एक प्रधानाध्यपक की नियुक्ति की जाए।
इसके अलावा शिक्षक संघ हर प्राथमिक विद्यालय में एक क्लर्क और एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रखने की मांग कर रहा है ताकि शिक्षकों के ऊपर कागजी और क्लर्कियल काम का बोझ ना हो और वे सिर्फ और सिर्फ शिक्षण कार्य पर ही ध्यान दें।
इस बारे में प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रांतीय महामंत्री संजय सिंह कहते हैं कि शिक्षा के अधिकार कानून (आरटीई) में 30 छात्रों पर एक शिक्षक की बात कही गई है, जो कि व्यवहारिक नहीं है। वह छात्रों के नहीं कक्षा के अनुपात में शिक्षकों की नियुक्ति की बात करते हैं।
संजय सिंह कहते हैं, “व्यवहारिक यह है कि हर कक्षा पर एक शिक्षक हो, ताकि अलग-अलग कक्षा के अलग-अलग पाठ्यक्रमों को उचित ढंग से पढ़ाया जा सके। इसके अलावा प्राथमिक विद्यालयों के इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे- बिल्डिंग, बेंच, बिजली, ब्लैक बोर्ड, पेयजल आदि चीजों पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है ताकि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलने का लक्ष्य पूरा हो सके।”