पराली से कैसे पाएं आर्थिक लाभ, सीखा रही यह संस्था

कौशल ग्राम संस्था के मुताबिक किसान पराली का ना सिर्फ बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं बल्कि उससे आर्थिक लाभ भी कमा सकते हैं। उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के निसुरखा गांव में आयोजित एक प्रशिक्षण शिविर में किसानों को पराली के बेहतर प्रबंधन की जानकारी दी गई।
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लखनऊ। हर साल अक्टूबर आते ही राजधानी दिल्ली सहित पूरा उत्तर भारत स्मॉग और प्रदूषण से घिर जाता है। किसानों द्वारा पराली जाने को इस प्रदूषण का प्रमुख कारण माना जाता है। आईआईटी दिल्ली के कुछ पूर्व छात्रों द्वारा संचालित ‘कौशल ग्राम’ संस्था ने इसका एक वैकल्पिक उपाय ढूंढ़ा है।

कौशल ग्राम संस्था के मुताबिक किसान पराली का ना सिर्फ बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं बल्कि उससे आर्थिक लाभ भी कमा सकते हैं। उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के निसुरखा गांव में आयोजित एक प्रशिक्षण शिविर में किसानों को पराली के बेहतर प्रबंधन की जानकारी दी गई। इसके अलावा इस शिविर में किसानों को प्राकृतिक कृषि, ऊर्जा के वैकल्पिक प्रयोग, ग्रामीण पर्यटन, सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं और छोटे तकनिकी कृषि यंत्रो जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर जानकारी के साथ प्रशिक्षण भी दिया गया।

शिविर में पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के 67 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। कौशल ग्राम के संस्थापक और प्रमुख प्रशिक्षक पवन शर्मा गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “पराली को बेचा भी जा सकता है और साथ ही साथ इसको कम्पोस्ट बनाकर इसका प्रयोग खेती में भी किया जा सकता है। आप जिसको व्यर्थ का कूड़ा-कचरा समझते हैं, वह आपके लिए आय का एक स्त्रोत हो सकता है।”

“पराली को पैकेजिंग में भी प्रयोग किया जा सकता है। आजकल कंपनियां स्ट्रॉ बनाने के लिए पराली का उपयोग करती हैं। तो हम किसानों का सम्पर्क ऐसी कंपनियों से करवाते हैं जो उनसे पराली खरीद सकें। इसके अलावा पराली का उपयोग खेतों के मल्चिंग में भी होता है।” पवन शर्मा ने बताया।

किसानों को प्रशिक्षण देते पवन शर्मा और सहयोगी

किसानों को प्रशिक्षण देते पवन शर्मा और सहयोगी

पराली प्रबंधन के अलावा ‘कौशल ग्राम’ संस्थान ने किसानों को ऊर्जा के वैकल्पिक प्रयोग, ग्रामीण पर्यटन और तमाम तरह के छोटे-बड़े मैकेनिकल टूल्स बनाने की ट्रेनिंग दी। किसान भाई अपने घर पर कम लागत में पोर्टेबल गोबर गैस स्वयं बनवा सकते हैं। इसके साथ ही ग्रामीण पर्यटन भी किसानों के लिय आय का दूसरा स्रोत हो सकता है।

पवन कहते हैं कि अक्सर किसानों की यह शिकायत रहती है कि खेती के अलावा उनके पास आय का कोई दूसरा स्त्रोत उपलब्ध नहीं रहता है। इसलिए यह आज की जरुरत है कि हम किसानों को आय के वैकल्पिक स्त्रोत उपलब्ध कराएं।

शिविर में मुख्य शिक्षक रहे संजीव कुमार जी ने किसानों को प्राकृतिक कृषि के गुर सिखाने के साथ-साथ छोटे कृषि तकनीक यंत्रो से भी अवगत कराया। दो दिन तक चले इस शिविर में पहले दिन किसानों को क्लास रूम ट्रेनिंग दी गई, वहीं दूसरे दिन उनको कृषि भूमि पर ऑन फील्ड ट्रेनिंग के लिए ले जाया गया।

पवन शर्मा बताते हैं कि पिछले दो दशक में तीन लाख से भी अधिक किसान कृषि में घाटा होने के कारण आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा चुके हैं। कौशल ग्राम का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक कृषि, कम लागत वाली तकनीक और आय के वैकल्पिक स्रोत से प्रशिक्षण उपलब्ध कराना है। इससे खेती में आने वाली लागत भी घटेगी और आय के अन्य स्रोत भी खुलेंगे। यह ट्रेनिंग किसानों के लिए निःशुल्क रखी गई थी।

अलग-अलग राज्यों से आए किसान

अलग-अलग राज्यों से आए किसान

मैकेनिकल इंजीनियरिंग से इंजीनियरिंग किए आगरा के पवन शर्मा बचपन से ही अपने पापा से किसानों को खेती के दौरान होने वाली समस्याओं के बारे में सुनते थे। उनके पापा भी एक किसान थे लेकिन खेती में काफी मेहनत के बाद भी मुनाफा नहीं मिलने पर उन्होंने खेती करना छोड़ दिया और नौकरी करने लगे।

पापा से किसानी के क़िस्से सुनकर बड़े हुए पवन हमेशा से ही खेती-किसानी की दुनिया में वापस जाना चाहते थे। जब उन्होंने नॉदर्न इंडिया इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली तो उन्होंने अपने इंजिनियरिंग कौशल का इस्तेमाल कृषि के क्षेत्र में करना शुरु किया।

उनके इस मुहिम में उनका साथ आयुष ने दिया, जो कि आईआईटी दिल्ली से सिविल इंजीनियर हैं। जयपुर के रहने वाले आयुष राजस्थान में बारिश की कमी से किसानों को होने वाली समस्याओं को लेकर परेशान रहते थे। आयुष और पवन के विचार एक ही जैसे थे इसलिए दोनों ने इस बारे में सोचना शुरू कर दिया कि खेती के स्थायी तरीकों से किस तरह किसानों का मुनाफा बढ़ाया जा सकता है।

अक्टूबर, 2015 में दोनों दोस्तों ने मिलकर किसानों की मदद के लिए प्रोजेक्ट मॉडल तैयार किया और इसे ‘कौशल ग्राम’ नाम दिया। अब प्रोजेक्ट कौशल ग्राम में किसानों को कृषि की नई तकनीकें सिखाई जा रही हैं। इसके अलावा स्वयं सहायता समूहों के जरिए किसानों को खेती के व्यावसायिक मॉडल, आर्थिक सुधार की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। 

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