बिहार: बाढ़ और कोरोना के बीच STET की फिर से परीक्षा का विरोध कर रहे हैं लगभग ढाई लाख अभ्यर्थी

बिहार बोर्ड द्वारा STET-2019 की परीक्षा फिर से लिए जाने के फैसले को लेकर राज्य में हंगामा शुरू हो गया है। STET-2019 के अभ्यर्थी 9 सितंबर से होने वाली परीक्षा का विरोध कर रहे हैं। अभ्यर्थियों की मांग है कि 28 जनवरी को हुई परीक्षा का रिजल्ट जारी हो और उसी आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए। कोरोना और बाढ़ के बीच में 9 सितंबर से आयोजित होने वाली STET-2019 की परीक्षा अभ्यर्थियों के सामने कई मुश्किलें खड़ी कर रही है।
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– आनंद कुमार

“परीक्षा कराने का कोई तुक ही नहीं बनता है क्योंकि आधा बिहार बाढ़ में डूबा हुआ है। दूसरा बिना सिलेबस के परीक्षा करवाने का फैसला भी समझ नहीं आता है कि सरकार आखिर चाहती क्या है. सितंबर में सरकार जो परीक्षा लेने वाली है, वह पूरी तरह से आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए लिया गया फैसला है। यह चुनावी मुद्दा है। जब सरकार को नौकरी ही देना है तो पहले वाली परीक्षा पर रिजल्ट जारी करके दें,” एसीटीईटी-2019 के अभ्यर्थी गौतम कहते हैं।

बिहार की राजधानी पटना के रहने वाले गौतम एसटीईटी-2019 के उन अभ्यर्थियों में से एक हैं, जो एसटीईटी-2019 परीक्षा का रिजल्ट जारी करने की मांग कर रहे हैं। बिहार राज्य में 9 साल बाद 28 जनवरी 2020 को आयोजित हुई एसटीईटी परीक्षा के रिजल्ट जारी करने को लेकर एसटीईटी अभ्यर्थियों का विरोध तेज होता जा रहा हैं। 21 अगस्त 2020 को बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के कार्यालय के बाहर एसटीईटी- 2019 के अभ्यर्थियों ने हाथों में तिरंगा झंडा लिए विरोध प्रदर्शन किया। विरोध करने वाले अभ्यर्थियों की मांग है कि 28 जनवरी 2020 को आयोजित हुई परीक्षा का रिजल्ट जारी किया जाए, ना कि कोरोना काल में फिर से परीक्षा कराई जाए।

क्या है पूरा मामला?

बिहार में सरकारी स्कूलों में माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों के लिए 37,440 खाली पदों को भरने के लिए बिहार बोर्ड द्वारा 9 साल बाद 28 जनवरी 2020 को परीक्षा अयोजित की गई थी। इस परीक्षा में 2 लाख 47 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए थे। 317 केंद्रों पर ओयोजित हुई इस ऑफलाइन परीक्षा के चार केंद्रों पर धाधंली की खबर आने के बाद इन केंद्रों पर परीक्षा रद्द कर करके 26 फरवरी को पुन:परीक्षा आयोजित की गई थी।

15 मई 2020 को परीक्षा परिणाम आना तय हुआ था, लेकिन बिहार बोर्ड ने एक जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर 16 मई को एसटीईटी-2019 परीक्षा ही रद्द कर दी। अब कोरोना काल में एसटीईटी की पुन:परीक्षा आयोजित करने का निर्णय बिहार बोर्ड द्वारा लिया गया है। 9 से 21 सितंबर तक यह परीक्षा आयोजित होगी। फिर से परीक्षा कराए जाने के फैसले को लेकर एसटीईटी के अभ्यर्थियों ने विरोध प्रदर्शन शुरु कर दिया है। अभ्यर्थियों की मांग है कि 28 जनवरी को हुई परीक्षा का रिजल्ट जारी किया जाए।

नहीं सुन रहे हैं अधिकारी

पटना निवासी और एसटीईटी के अभ्यर्थी गौतम गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं, “सरकार की मंशा नौकरी देने की नहीं लगती हैं। कोई अधिकारी हमारी मांग सुनने के लिए राजी नहीं हैं, ऐसा लगता है कि अधिकारियों की नजर में हम छात्र लोग कोई आंतकवादी हो गए हैं।”

नालांदा के रहने वाले एसटीईटी अभ्यर्थी अजय गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं, “जिस बेलोट्रोन नामक संस्था को परीक्षा कराने की जिम्मेदारी दी गई है, उस संस्था पर परीक्षा में धांधली करने का आरोप है। ऐसे में बिहार बोर्ड द्वारा इस एजेंसी से परीक्षा करवाने का फैसला सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करता है।” अजय आगे बताते है कि हम अभ्यर्थी जब भी अधिकारियों से इस संबंध में मिलने की कोशिश करते है तो हमें मिलने भी नहीं दिया जाता है।

कोरोना महामारी और बाढ़: दोनों से जूझ रहा बिहार

मौजूदा दौर में बिहार में बाढ़ और कोरोना महामारी की स्थिति गंभीर बनी हुई है। बिहार में कोरोना महामारी की रफ्तार जारी है। कोरोना के मामलों को रोकने के लिए बिहार सरकार को कुल 6 बार लॉकडाउन की घोषणा करनी पड़ी। अभी भी बिहार लॉकडाउन में है।

कोरोना महामारी की भयावहता ऐसे समझे कि बिहार में 102 दिन में कोरोना मरीजों की संख्या 10,000 तक पहुंचती है, लेकिन पिछले 52 दिन में देखे तो अकेले 1.10 लाख कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ गई है। औसतन बिहार में प्रतिदिन 2100 कोरोना मरीज सामने आ रहे हैं। ऐसे में कोरोना काल में परीक्षा कराना जोखिम से भरा कदम है।

आपको बता दें कि 28 जनवरी 2020 को आयोजित हुई परीक्षा में लगभग में 2लाख 47 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए थे। कोरोना काल में 9 सितंबर से होने वाली एसटीईटी परीक्षा में अभ्यर्थियों के ज्ञान की परीक्षा तो होगी ही, साथ ही उनके इम्युनिटी सिस्टम की भी परीक्षा होगी। 2लाख 47 हजार अभ्यर्थियों को परीक्षा देने के लिए खुद की जान दांव पर रखनी पड़ेगी।

रिपोर्ट लिखे जाने तक बिहार राज्य में 16 जिले के 83 लाख लोग प्रभावित है. बाढ़ के कारण सड़कें कट चुकी हैं, तटबंध टूट चुके हैं। गांव-मोहल्ले में पानी बढ़ जाने के कारण लोग छत पर शरण लेने के लिए मजबूर हैं। बाढ़ से प्रभावित लोगों की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो गई है। बागमती, बूढ़ी गंडक, कमला नदी आदि के किनारे बसे लोगों की जिंदगी दोहरी आपदा से गुजर रही है।

बाढ़ के कारण कोरोना महामारी के अलावा दूसरे संक्रामक रोग भी फैलने का भी डर है। बाढ़ प्रभावित लोगों की जिंदगी कोरोना महामारी के दौरान और भी ज्यादा प्रभावित हो गई है। कोरोना महामारी के कारण अभ्यर्थी भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, ऐसे स्थिति में उनके लिए परीक्षा देंना भी कई चुनौतियों से भरा पड़ा है।

दरभंगा में बागमती नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर बढ़ जाने के कारण नदी के किनारे बसे लोगों की जिंदगी इन दिनों प्रभावित है। दरभंगा निवासी गणेश इन दिनों बाढ़ से पीड़ित है, उन्हें भी टीईटी की परीक्षा देनी है। वह कहते हैं, “दरभंगा जिले का 9 प्रखंड बाढ़ से डूबा हुआ है। लोग बाढ़ से मर रहे हैं। वैसे तो मैं 9 सितंबर से शुरू होनी वाली परीक्षा का विरोध करता हूं, फिर भी सोचिए कि मुझ जैसा अभ्यर्थी 9 सितंबर से शुरु होने वाली परीक्षा कैसे देने जा पाएगा?”

गणेश आगे बताते हैं, “बिहार बोर्ड कहती है कि पेपर लीक हो गया है तो पेपर लीक कौन किया है? कोई अंदर का आदमी ही लीक किया होगा? उसके खिलाफ सीबीआई जांच करिए, ताकि पता चले कि कौन शिक्षा माफिया है। नीतीश कुमार की सरकार ने स्टूडेंट्स को बरगला दिया है। आज पढ़े लिखे अभ्यर्थी की उम्र खत्म हो जा रही है, वह पकौड़ा बेचने को मजबूर है।”

बेगूसराय निवासी सोनू भी इन दिनों बिहार में आई बाढ़ से प्रभावित है। उनके लिए परीक्षा दे पाना बहुत मुश्किल है। सोनू कहते हैं कि 9 सितंबर से होने वाली परीक्षा में वह बाढ़ के कारण सम्मलित नहीं हो पाएंगे। सोनू का भी कहना है कि 28 तारीख की जो परीक्षा हुई थी, उसका रिजल्ट बिहार बोर्ड जारी करें.

गोपालगंज के निवासी रितिक भी इन दिनों बाढ़ से प्रभावित है। उनकी चिंता है कि जो अभ्यर्थी बाढ़ से पीड़ित है वे कैसे परीक्षा दें पाएंगे? रितिक गांव कनेक्शन से कहते हैं, “पहले कोरोना महामारी और दूसरे बिहार में बाढ़ से काफी लोग प्रभावित है। बिहार की स्थिति दयनीय है। ऐसी स्थिति में सरकार को परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। सभी परीक्षाओं को कैंसिल किया जाना चाहिए। दरअसल, 9 सितंबर से परीक्षा कराने का फैसला आगामी विधानसभा को देखते हुए लिया गया है।”

रितिक का कहना है, “28 जनवरी को जो हमारी परीक्षा हुई थी, वह परीक्षा रद्द हो गई। लेकिन, सार्वजनिक तौर पर यह नहीं पता चला कि किसने 28 जनवरी की परीक्षा रद्द की है। हम अभ्यर्थियों को जानना है कि परीक्षा को बिहार बोर्ड के तरफ रद्द किया गया है या शिक्षा विभाग के तहत या फिर मुख्यमंत्री के निर्देश के तहत? सरकार ने 28 जनवरी को हुई परीक्षा को किस बुनियाद पर रद्द किया है, आज तक नहीं समझ आया है।” रितिक का यह भी कहना है कि जब यह पूरा मामला पटना हाईकोर्ट में चल रहा है, तो सरकार कैसे सितंबर में परीक्षा आयोजित कर सकती है?

मामला पटना हाईकोर्ट में

16 मई को बिहार बोर्ड द्वारा परीक्षा रद्द किए जाने के बाद अभ्यर्थियों ने बोर्ड के इस फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी है। पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान बोर्ड को निर्देश दिया है कि वह इस परीक्षा के ओएमआर सीट को नष्ट नहीं करेगा। मामले की सुनवाई अभी पटना हाईकोर्ट में चल रही है। ऐसे में अभ्यर्थियों का कहना है कि जब मामला पटना हाईकोर्ट में विचाराधीन है तो बिहार बोर्ड पुन: परीक्षा कैसे करवा सकती हैं?

‘शिक्षा माफिया के दबाव में परीक्षा कैंसल’

28 जनवरी की एसटीईटी परीक्षा में चार केंद्रों पर हंगामा होने के कारण इन चार केंद्रों की परीक्षा 26 फरवरी को आयोजित किया गया था । अभ्यर्थियों का कहना है कि 28 जनवरी की परीक्षा में खामियों को 26 फरवरी की हुई परीक्षा में दुरुस्त कर लिया गया था, तो परीक्षा रद्द करने का सवाल ही नहीं उठता हैं।

पटना निवासी एसटीईटी के अभ्यर्थी अनंत कहते हैं, “28 जनवरी को हर जगह पर साफ-सुथरी परीक्षा हुई। सिर्फ चार सेंटर पर हंगामा हुआ, वहां पर अभ्यर्थियों को समय से प्रश्न पत्र नहीं मिला। इसलिए उन परीक्षा केंद्रों पर 25 फरवरी को परीक्षा हुई। इस परीक्षा में धांधली से एक भी रिपोर्ट पूरे बिहार में नहीं आई। फिर भी परीक्षा को रद्द कर दिया गया। इससे तो स्पष्ट होता है कि सरकार ने यह परीक्षा शिक्षा माफियाओं के दबाव में रद्द किया है।”

बिहार में बाढ़ को लेकर अनंत कहते हैं, “हम तो बाढ़ से प्रभावित नहीं है, लेकिन, मेरे कई साथी इन दिनों बाढ़ से काफी प्रभावित हैं। बाढ़ से प्रभावित बहुत लोगों तक तो पुन: परीक्षा करवाए जाने के बारे में जानकारी भी नहीं पहुंची होगी। अगर परीक्षा होता है तो ऐसे अभ्यर्थी कैसे शामिल हो पाएंगे?”

सिलेबस नहीं हुआ जारी

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने एसटीईटी परीक्षा को दोबारा लेने के लिए 9 सितंबर से 21 सितंबर के बीच में आयोजित करने का फैसला लिया है। ऑनलाइन मोड में होनी वाली इस परीक्षा का अभी तक सिलेबस जारी नहीं हुआ है। सिलेबस जारी नहीं किए जाने से एसटीईटी अभ्यर्थियों में उहापोह की स्थिति बनी हुई है। एसटीईटी अभ्यर्थियों की मांग है कि सिलेबस जारी किया जाए। गौरतलब है कि 28 जनवरी 2020 को हुई एसटीईटी की परीक्षा को रद्द किए जाने के कारणों में से एक कारण सिलेबस के बाहर से आए प्रश्न भी थे, जैसा कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के तरफ से बताया गया है।

सिलेबस को लेकर भूपेश बताते हैं, “जिस कंपनी को 9 सितंबर से परीक्षा कराने की जिम्मेदारी दी गई है, उस कंपनी ने अभी तक सिलेबस जारी नहीं किया है। 28 जनवरी की परीक्षा रद्द किए जाने को लेकर कुछ अभ्यर्थियों द्वारा सिलेबस के बाहर से सवाल पूछने की बात कही गई थी। परीक्षा रद्द करने के लिए बिहार बोर्ड समिति ने इसे भी आधार माना है। अगर कल कोई अभ्यर्थी परीक्षा देने के बाद फिर से सिलेबस को लेकर आपत्ति जतात है तो फिर परीक्षा रद्द हो जाएगी? ऐसे तो यह प्रकिया चलता ही रहेगा।”

पटना के रहने वाले भूपेश, जो यूपी के प्रयागराज में रहकर पढ़ाई करते है, उन्होंने भी बिहार बोर्ड द्वारा एसटीईटी की पुन:परीक्षा लिए जाने के फैसले का विरोध किया है।

बिहार बोर्ड का क्या है कहना?

बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष आनंद किशोरने परीक्षा रद्द करने के मसले पर कहा, “राज्य में हुई परीक्षा को लेकर परीक्षार्थियों में काफी असंतोष था। वे परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रहे थे। इसके मद्देनजर बोर्ड द्वारा कमेटी गठित कर जांच कराई गई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में परीक्षा रद्द करने की सिफारिश की, इसके बाद बोर्ड ने परीक्षा रद्द कर दी गई।”

हालांकि, 28 जनवरी को हुई परीक्षा के बाद आनंद किशोर ने मीडिया में कहा था कि परीक्षा भ्रष्टाचार मुक्त हुई है। पेपर लीक की बात अफवाह है। सामाजिक विज्ञान में आउट ऑफ सिलेबस सवाल पूछे जाने को लेकर आनंद किशोर ने कहा, “यह आरोप निराधार है। चूंकि सामाजिक विज्ञान में कई विषय शामिल हैं। ऐसे में एसटीईटी में सारे विषयों से प्रश्न पूछे जाने थे। सारे प्रश्न एसटीईटी सिलेबस के अनुसार ही पूछे गए।”

अभ्यर्थी अपनी मांग को लेकर कई बार बिहार बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर से मिलने की कोशिश भी किए। लेकिन, वे उनसे मिल पाने में असफल रहे हैं।

शिक्षकों से कमी से जूझता बिहार

भारत को विश्वगुरु बनाने का जिम्मा जिन शिक्षकों के कंधों पर है, उन कंधों की मांगों को सरकारें लगातार नजरअंदाज करती आ रही है। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कानून के तहत प्राइमरी स्कूलों में 30 बच्चों पर एक शिक्षक को होना चाहिए। लेकिन, सेंटर फॉर बजट एंड गर्वनेंस एकाउंटबिलिटी (सीबीजीए) और चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में यह अनुपात 50:1 है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार और उत्तर प्रदेश में मिलाकर 4.2 लाख प्राइमरी शिक्षकों की कमी है। दिसंबर 2016 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया था कि प्राथमिक स्कूलों में 22.99 प्रतिशत शिक्षकों के पद खाली थे।

शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संगठन ‘प्रथम’ अपने रिपोर्ट ‘असर’ (Annual Status of Education Report)के वार्षिक सर्वेक्षेण में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर तमाम सरकरों के दावे को कटघरे में खड़ा करती है। रिपोर्ट के अनुसार आज भी कक्षा पांचवी के बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ नहीं पढ़ पाते हैं। बिहार में 56.9 फीसदी आठवीं के छात्र दो संख्याओं को आपस में भाग नहीं कर पाते हैं।

भारत सरकार ने कहा था- सरकारी नौकरी की भर्ती प्रकिया 6 महीने के अंदर हो

2016 में भारत सरकार के कार्मिक विभाग ने एक सर्कुलर जारी किया था, जिसके अनुसार केंद्र सरकार की किसी भी सरकारी नौकरी की भर्ती प्रक्रिया विज्ञप्ति की तारीख से 6 महीने के अन्दर पूरी कर देनी चाहिए। केंद्र सरकार की तरह तमाम राज्य सरकारें भी लगातार दावा करती हैं आ रही है कि वे राज्य में खाली सरकारी पदों को निश्चित प्रक्रिया के अनुसार, एक निश्चित समय में भरने के लिए दृढ़संकल्पित है। लेकिन, उनके दावों की हकीकत जमीन पर नहीं दिखती है।

(आनंद कुमार गांव कनेक्शन के साथ इंटर्नशिप कर रहे हैं।)

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