रूस-यूक्रेन युद्ध का असर: एमएसपी के ऊपर गेहूं का भाव, रतलाम में 3000 रुपए प्रति कुंटल तक बिका गेहूं

रुस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया में दिखाई देने लगा है। पेट्रोलियम से लेकर खाद्य तेल की कीमतें बढ़ गई हैं। हालांकि कीमतों में उठापटक से भारत को कहीं घाटा तो कहीं फायदा भी है। ग्लोबल मार्केट में गेहूं की भारी मांग के चलते गेहूं एमएसपी से ऊपर पहुंच गया है। रतलाम मंडी में एक किसान को 3000 रुपए प्रति कुंटल का भाव मिला।
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लखनऊ। रुस-यूक्रेन युद्ध के बाद विश्व बाजार में भारत के गेहूं की मांग बढ़ गई है, जिसके चलते देश की कई मंडियों में गेहूं एमएसपी से 200 से 500 रुपए ऊपर बिक रहा है। सोमवार को मध्य प्रदेश की रतलाम मंडी में ए ग्रेड गेहूं 3000 रुपए कुंटल बिका, जबकि पिछले एक हफ्ते से मंदसौर मंडी में भी 2200 से 2400 रुपए कुंटल का रेट चल रहा है।

मध्य प्रदेश में रतलाम जिले के किसान महिपाल सिंह सोनगरा (40 वर्ष) 7 फरवरी को कृषि उपज मंडी समिति रतलाम में अपना 22 कुंटल गेहूं लेकर पहुंचे जिसका उन्हें 3000 रुपए प्रति कुंटल का रेट मिला। गांव कनेक्शन से इसकी पुष्टि करते हुए महिपाल ने कहा, “सोमवार को 22 कुंटल गेहूं हमने 3000 में बेचा जबकि, शनिवार को हमें 50 कुंटल गेहूं का 2800 का रेट मिला था। इससे एक दिन पहले हमारे चाचा को 2771 रुपए का रेट मिला था।” दिल्ली से करीब 800 किलोमीटर दूर रतलाम जिले के सांगला गांव में रहने वाले महिपाल के पास 5 एकड़ जमीन है, जिसमें वो लोकवन किस्म का गेहूं उगाते हैं। महिपाल के मुताबिक उनके गांव के आसपास किसान इसी किस्म को गेहूं उगाते हैं जो एक्सपोर्ट क्वालिटी का होता है। महिपाल ने भी बताया कि उन्हें पिछले साल कुछ समय के लिए 2500 रुपए प्रति कुंटल का रेट मिला था, जबकि इस बार की शुरुआत ही 2700 रुपए से ऊपर हुई है। 

रतलाम के किसान महिपाल के गेहूं की रसीद, जिसमें उन्हें 3000 रुपए प्रति कुंटल का भाव मिला।

रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद गेहूं की कीमतों में खासी तेजी देखी गई। भारत के गेहूं की विश्व के कई देशों में मांग बढ़ी है। भारत में खरीद वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपए प्रति कुंटल है। लेकिन पिछले करीब एक पखवाड़े से गेहूं की कीमतें लगातार ऊपर बनी हुई हैं। यूक्रेन की राजधानी कीव से करीब से करीब 4800 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश की मंदसौर मंडी में पिछले 10 दिनों से गेहूं 2200 रुपए के ऊपर बिक रहा है।

मध्य प्रदेश की मंदसौर मंडी के थोक कारोबारी तनुज कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि शनिवार को उन्होंने 2500 रुपए में गेहूं खरीदा था। वो कहते हैं, “आज हमने 2571 के रेट में गेहूं लिया है। जबकि उसमें हल्की नमी थी। हमारे यहां मंडी लगातार 2400 के ऊपर बना हुआ है। ये किसानों के लिए अच्छा है।”

रूस और यूक्रेन के चलते दुनिया भर चीजों की कीमतों में उठापटक जारी है। क्योंकि ये दोनों देश दुनियाभर के कई देशों में पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, गेहूं, सूरजमुखी समेत कई चीजों के प्रमुख निर्यातक हैं। अमेरिकी कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक रुस दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक है, जबकि यूक्रेन इस मामले में चौथे नंबर पर है। यूक्रेन से गेहूं खरीदने वाले देशों में पाकिस्तान और बांग्लादेश से लेकर कई खाड़ी के देश भी शामिल हैं। युद्ध के चलते इन दोनों से देशों से कारोबार ठप होने से दुनियाभर के निर्यातक गेहूं की मांग को पूरा करने लिए जिन देशों में संभावनाएं तलाश रहे हैं उनमें भारत भी है। विश्व बाजार में गेहूं की मांग बढ़ने से भाव भी बढ़ गए हैं।

“यूक्रेन संकट के पहले ग्लोबल मार्केट में भारतीय गेहूं की का रेट 300-310 डॉलर प्रति टन था जो 15 दिन में बढ़कर 360 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गया है। अगर यही हालात रहे तो अगले कुछ दिनों में ये 400 डॉलर प्रति टन पहुंच जाएगा यानि भारतीय रुपए में 2800 रुपए प्रति कुंटल। ये किसान और भारत दोनों के लिए अच्छा है।” दिल्ली में रहने वाले एक कमोडिटी एक्सपर्ट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।

उन्होंने आगे कहा, “भारत का गेहूं यूक्रेन से मिलता जुलता है, इसलिए पूरी दुनिया की डिमांड भारत आ गई है। भारत का निर्यात इस वित्तीय वर्ष के आखिर तक रिकॉर्ड 7 मिलियन टन तक पहुंच सकता है और अगले साल इससे भी आगे। डिमांड इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि यूक्रेन और रुस का गेहूं पश्चिमी एशियाई देशों (तुर्की, सीरिया, ओमान, लेबनान, सऊदी अरब) जाता था और वहां अप्रैल में रमजान हैं। इसलिए गेहूं की खरीद तेज है। अब रुस और यूक्रेन में माल नहीं आ पा रहा तो भारत से उसकी भरपाई हो रही है।”

नई फसल आने से गेहूं के रेट पर असर पड़ेगा?

महाराष्ट्र के बड़े फ्लोर मिल कारोबारी और फ्लोर मिल फेडरेशन से जुड़े अजय गोयल के मुताबिक ये गेहूं किसानों के लिए अनुकूल और फायदे का समय है।

वो गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े गेहूं एक्सपोर्टर देशों में शामिल है। वहां युद्ध के चलते कारोबारी ऐसे ठिकाने खोज रहे हैं, जहां से गेहूं मिल सके। भारत उनमें से एक है। भारत से गेहूं का निर्यात गुजरात के कांडला बंदरगाह से होता है। वहां आज की तारीख मे एक्सपोर्टर 2500 रुपए के खुले भाव से गेहूं इकट्टा कर रहे हैं। एक्सपोर्टर के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने यह तक कहा कि 2500 रुपए में अप्रैल के किसी भी दिन डिलीवरी करो। लेकिन ये बाजार कितने दिन तक चलेगा ये समझ नहीं आ रहा, क्योंकि आने वाले दिनों में देश में गेहूं की नई फसल आने वाली है।”

बाजार के जानकारों के मुताबिक गेहूं की आसमान छूती कीमतों ने निर्यात में प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी है। भारत में मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से गेहूं (ट्रेन-ट्रकों) से कांडला बंदरगाह के पास गोदामों में भरा जा रहा है। जहां 2500 के आसपास का रेट है जबकि 15 दिन पहले ये रेट 2100 रुपए कुंटल के आसपास था।

नाम न छापने की शर्त पर एक ग्लोबल ट्रेडर ने गांव कनेक्शऩ को फोन पर बताया, “देखिए गेहूं किसानों के नजरिए से ये अच्छी बात है, गेहूं एमएसपी के ऊपर बिक रहा है। किसानों को चाहिए वो गेहूं रोके नहीं, निकाल दें। इसका फायदा उन्हें ज्यादा मिलेगा, जिनकी फसल अगैती है। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि इससे महंगाई तेजी से बढ़ेगी। ग्लोबल बाजार में मांग बनी रही तो सरकार का क्या रुख होगा काफी कुछ उस पर निर्भर करेगा। क्योंकि उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए गेहूं भी खरीदना है। हालांकि लगता नहीं कि निर्यात को लेकर सरकार कुछ करेगी।”

देश में रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन की उम्मीद

कोरोना की तीसरी लहर से उबर रहे देश के लिए अच्छी खबर है। देश में साल 2021-22 में रिकॉर्ड खाद्यान्न 316.06 मिलियन टन होने का अनुमान है। साल 2021-22 में 111.32 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन अनुमानित है, जो साल 2020-21 के 109.5 मिलियन टन से 1.82 मिलियन टन (18.02 लाख टन) ज्यादा है। साल 2020-21 में 343 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती हुई थी।

देश में नई फसल 15 मार्च के बाद से आनी शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार ज्यादातर राज्यों में गेहूं की फसल मौसमी कारणों से लेट है, क्योंकि बुवाई के सीजन से पहले अक्टूबर में कई राज्यों में बारिश हो गई थी। देश में सरकारी खरीद 1 अप्रैल से शुरू होनी है।

एक्सपोर्ट की ऊंची कीमतें, सरकारी खरीद क्या कहा होगा?

किसानों की उपज की खरीद और खाद्य सुरक्षा योजना (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के लिए जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं धान की खरीद करती है। किसान और व्यापारियों के एक वर्ग को लगा रहा है कि संभव है सरकारी खरीद की पूर्ति और महंगाई को देखते हुए सरकार एक्सपोर्ट पर कुछ अंकुश लगाए। लेकिन आंकड़े और हालात इसकी गवाही नहीं देते हैं।

सरकारी खरीद 1 अप्रैल से शुरु होगी जो कि ज्यादातर पंजाब और हरियाणा से होती है, जहां निजी कारोबार कम होता है क्योंकि उस पर टैक्स ज्यादा है। जबकि एक्सपोर्टर की पसंद मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान समेत कुछ राज्यों का गेहूं होता है। इसके अलावा सरकार खरीद एक अप्रैल से शुरू होगी, जिसमें अभी वक्त है।

दो साल से मुफ्त बांटे जा रहे अनाज के बावजूद सरकारी गोदाम अनाज से भरे हैं। दूसरी तरफ अप्रैल में बंपर फसल भी आने वाली है। उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय) के 16 फरवरी तक के आंकड़ों के मुताबिक देश में 26 मिलियन टन गेहूं गोदामों में रखा है जबकि 1 अप्रैल तक का कोटा 7.5 मिलियन टन है। यानि एक अप्रैल तक गोदामों में इतना गेहूं हर हाल (रिजर्व कोटा) में होना चाहिए, जो निर्धारित कोटे से करीब साढ़े 3 गुना ज्यादा है। यानि अनाज की किसी स्तर पर कमी होने वाली नहीं है।

वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय की 7 मार्च की रिपोर्ट के अनुसार कृषि संबंधित तथा प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के दायरे के तहत उत्पादों का निर्यात अप्रैल-जनवरी 2020-21 के 15,974 मिलियन डॉलर से बढ़कर अप्रैल-जनवरी 2021-22 में 19,709 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया

गेहूं के निर्यात में अप्रैल-जनवरी 2021-22 के दौरान भारी वृद्धि दर्ज की गई जो पिछले वर्ष की समान अवधि के 358 मिलियन डॉलर की तुलना में 387 प्रतिशत उछल कर 1742 मिलियन डॉलर तक जा पहुंचा।

हालांकि बंपर फसल और गेहूं की कीमतों को लेकर कई एक्सपर्ट अलग राय भी रखते हैं।

रोलर फ्लोर मिल्स फेडरेशन की पूर्व पदाधिकारी वीना शर्मा फोन पर बताती हैं, “अभी कुछ कहना बहुत जल्दबाजी होगी। ये नाजुक समय है क्योंकि अभी फसल आने में वक्त है। इस बीच कहीं कोई गड़बड़ (बारिश आदि) हुई तो फसल पर बड़ा असर पड़ेगा। वैसे भी इस बार फसल में देरी है। पंजाब हरियाणा की भी फसल में देर है। अगर गर्मी एकाएक बढ़ी तो उत्पादन पर असर पड़ेगा। आप ऐसे समझिए कि अगर 1 डिग्री भी तापमान बढ़ा तो उत्पादन में दशमलव 01 फीसदी की कमी आ जाएगी।”

गेहूं में फायदा लेकिन डीजल-पेट्रोल और उर्वरक की पड़ेगी मार

रुस-यूक्रेन युद्ध के चलते गेहूं में किसानों और देश को फायदा हो रहा है लेकिन पेट्रोलियम, नैचुरल गैस और सूरजमुखी का तेल और डीएपी-यूरिया, पोटाश जैसे उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी का खामियाजा भी किसानों को भुगतना होगा। पिछले एक महीने में एमओपी के अलावा यूरिया, डाई आमोनियम फास्फेट और कॉपलेक्स खाद के दाम बढ़े हैं। कच्चे तेल की कीमतों 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर चल रही हैं जो महंगाई लाएंगी। भारत ज्यादा उर्वरक या उसके कच्चे माल का आयात करता है। देश की जरुरत के 10-12 फीसदी उर्वरक की आपूर्ति रुस, यूक्रेन और बेलारुस से होती है। बेलारुस, रुस का सहयोगी है। इसलिए आयात प्रभावित हो सकता है।

ये भी पढ़ें- देश में आखिर क्यों हुई डीएपी और एनपीके जैसे उर्वरक की किल्लत?

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