मछली पालक इस तरह उठा सकते हैं नीलीक्रांति योजना का लाभ
Diti Bajpai | Apr 15, 2019, 10:56 IST
लखनऊ। देश में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने नीली क्रांति योजना की शुरूआत की थी इस योजना के तहत वर्ष 2022 तक मछली का उत्पादन 15 मिलियन टन तक पहुंचाना है। ऐसे में इस व्यवसाय में किसानों और युवाओं के लिए अपार संभावनाएं है।
अगर कोई मछली पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहता है तो वह नीलीक्रांति योजना के अंतर्गत जितनी भी योजनाएं सम्मिलित की गई है उनका लाभ उठाकर अपनी आय को बढ़ा सकता है। इस योजना की विस्तृत जानकारी देते हुए मत्स्य निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ. हरेंद्र प्रसाद ने बताया, " मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए जितनी भी योजनाएं है उनको एक साथ सम्मिलित कर दिया गया और जिसका नाम नीलीक्रांति रखा गया। इस योजना में मत्स्य बीज उत्पादन, मत्स्य की मार्केटिंग, मछुआरा बीमा समेत मत्स्य विकास के सारे सेक्टरों को रखा गया है।"
नीलीक्रांति योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को अनुदान की भी सुविधा दी गई है। "इस योजना में जो लाभार्थी के लिए योजनाएं है उसमें जो भी परियोजना लागत है उसमें सामान्य वर्ग के व्यक्ति के लिए सरकार ने 40 प्रतिशत अनुदान की सुविधा रखी है वहीं एससी/एसटी या महिला वर्ग के लिए सरकार ने 60 प्रतिशत अनुदान की सुविधा रखी है।" डॉ प्रसाद ने बताया।
"अगर किसी किसान को इस योजना के अंतर्गत लाभ लेना है तो वह अपने जिले के जनपदीय कार्यालय में संपर्क कर आवदेन कर सकता है। कार्यालय जिले स्तर पर चयन समिति गठित करके उसका चयन करती है और चयन करने के बाद उसके परियोजना प्रस्ताव को निर्माण कराया जाता है।"योजना के लिए आवेदन करने की जानकारी देते हुए डॉ हरेंद्र ने गाँव कनेक्शन को बताया, "प्रस्ताव के निर्माण के बाद निदेशालय को उपलब्ध होता है उसी के आधार पर हम वह परियोजना प्रस्ताव उत्तर प्रदेश सरकार को राष्ट्रीय मत्सिकी विकास बोर्ड के माध्यम से प्रेषित करते है। बोर्ड परियोजना प्रस्ताव को परीक्षण करती है और उसके बाद वह संतुति करती है उसके बाद भारत सरकार प्रदेश सरकार को धनराशि देती है। धनराशि मिलने के बाद प्रदेश सरकारी सारी औपचारिखताएं पूरी करते हुए लाभार्थी को धनराशि देती है।"
आवेदक को धनराशि कई चरणों में दी जाती है जो कि परियोजनाओं पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए अगर किसी लाभार्थी को तालाब का निर्माण कराया जाना है तो उसमें दो चीज़े होती है एक तालाब का निर्माण दूसरा तालाब का निवेश।
तालाब के निर्माण में दो चरणों में धनराशि दी जाती है। पहले तालाब निर्माण होता है तालाब निर्माण होने के बाद उसमें जो भी निवेश की लागत होती है। उसकी धनराशि उसको अनुदान के रुप में दी जाती है। क्योंकि 40 प्रतिशत अनुदान में जो शेष धनराशि लाभार्थी को लगानी होती है। इस परियोजना में लाभार्थी पहले खुद काम पूरा करता है शेष धनराशि अनुदान की राशि से पूरी की जाती है।
आरएएस तकनीक यानि रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम को नीलीक्रांति के अंतर्गत शामिल किया गया है। इस तकनीक में कम पानी और कम जगह में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है। इस योजना के अंतर्गत मत्स्य पालक को 50 लाख की यूनिट कॅास्ट की दर से एक लघु इकाई का प्रोजेक्ट लगाने का प्रावधान है।
केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस परियोजना के अंर्तगत सामान्य वर्ग के लाभार्थियों को 40 प्रतिशत अनुदान की राशि दी जाती हैऔर कमजोर वर्ग जिसके अंर्तगत महिला, एससी, एसटी सम्मिलित हैं, उन्हें 60 प्रतिशत अनुदान राशि दी जाती है। 20 लाख रुपए के प्रोजेक्ट में से लाभार्थी को 5 लाख रुपए देना होगा। बाकी 7 लाख 50 हजार रुपए केंद्र सरकार और 3 लाख 75 हजार रुपए राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार 3 लाख 75 हजार रुपए का बैंक लोन भी दिलाएगी।
अगर कोई मछली पालन का व्यवसाय शुरू करना चाहता है तो वह नीलीक्रांति योजना के अंतर्गत जितनी भी योजनाएं सम्मिलित की गई है उनका लाभ उठाकर अपनी आय को बढ़ा सकता है। इस योजना की विस्तृत जानकारी देते हुए मत्स्य निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ. हरेंद्र प्रसाद ने बताया, " मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए जितनी भी योजनाएं है उनको एक साथ सम्मिलित कर दिया गया और जिसका नाम नीलीक्रांति रखा गया। इस योजना में मत्स्य बीज उत्पादन, मत्स्य की मार्केटिंग, मछुआरा बीमा समेत मत्स्य विकास के सारे सेक्टरों को रखा गया है।"
नीलीक्रांति योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को अनुदान की भी सुविधा दी गई है। "इस योजना में जो लाभार्थी के लिए योजनाएं है उसमें जो भी परियोजना लागत है उसमें सामान्य वर्ग के व्यक्ति के लिए सरकार ने 40 प्रतिशत अनुदान की सुविधा रखी है वहीं एससी/एसटी या महिला वर्ग के लिए सरकार ने 60 प्रतिशत अनुदान की सुविधा रखी है।" डॉ प्रसाद ने बताया।
कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक 'देश के डेढ़ करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। सभी प्रकार के मछली पालन (कैप्चर एवं कल्चर) के उत्पादन को साथ मिलाकर 2016-17 में देश में कुल मछली उत्पादन 11.41 मिलियन तक पहुंच गया है।
आवेदक को धनराशि कई चरणों में दी जाती है जो कि परियोजनाओं पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए अगर किसी लाभार्थी को तालाब का निर्माण कराया जाना है तो उसमें दो चीज़े होती है एक तालाब का निर्माण दूसरा तालाब का निवेश।
तालाब के निर्माण में दो चरणों में धनराशि दी जाती है। पहले तालाब निर्माण होता है तालाब निर्माण होने के बाद उसमें जो भी निवेश की लागत होती है। उसकी धनराशि उसको अनुदान के रुप में दी जाती है। क्योंकि 40 प्रतिशत अनुदान में जो शेष धनराशि लाभार्थी को लगानी होती है। इस परियोजना में लाभार्थी पहले खुद काम पूरा करता है शेष धनराशि अनुदान की राशि से पूरी की जाती है।
आरएएस तकनीक यानि रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम को नीलीक्रांति के अंतर्गत शामिल किया गया है। इस तकनीक में कम पानी और कम जगह में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है। इस योजना के अंतर्गत मत्स्य पालक को 50 लाख की यूनिट कॅास्ट की दर से एक लघु इकाई का प्रोजेक्ट लगाने का प्रावधान है।
केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस परियोजना के अंर्तगत सामान्य वर्ग के लाभार्थियों को 40 प्रतिशत अनुदान की राशि दी जाती हैऔर कमजोर वर्ग जिसके अंर्तगत महिला, एससी, एसटी सम्मिलित हैं, उन्हें 60 प्रतिशत अनुदान राशि दी जाती है। 20 लाख रुपए के प्रोजेक्ट में से लाभार्थी को 5 लाख रुपए देना होगा। बाकी 7 लाख 50 हजार रुपए केंद्र सरकार और 3 लाख 75 हजार रुपए राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर दिया जाएगा। इसके अलावा सरकार 3 लाख 75 हजार रुपए का बैंक लोन भी दिलाएगी।