अगर आप भी बागवानी फसलों की खेती करना चाहते हैं तो पपीता की खेती कर सकते हैं। इसकी सबसे खास बात होती है, इसकी खेती साल भर कर सकते हैं।
पपीता की खेती के लिए 10 – 40 डिग्री सेल्शियस तापमान सबसे सही होता है। जल निकास युक्त दोमट मीट्टी पपीते की खेती के लीये उत्तम रहती है। भूमि की गहराई 45 सेमी से कम नही होनी चाहिए।
पपीता की कौन सी किस्म की करें खेती
व्यवसायिक रूप से फल उत्पादन के लिए ताइवान , रेड लेडी -786, हानिड्यू (मधु बिंदु) , कुर्ग हनीड्यू, वाशिंगटन, कोयंबटूर -1 , पंजाब स्वीट , पूसा डिलीशियस ,पूसा जाइंट , पूसा ड्वार्फ, पूसा नन्हा, सूर्या, पंत पपीता आदि।
हरे और कच्चे पपीते के फलों से सफेद रस या दूध निकालकर सुखाए गए पदार्थ को पपेन कहते हैं। इसका उपयोग मुख्य रूप से मांस को मुलायम करने, प्रोटीन के पचाने, पेय पदार्थों को साफ करने, च्विंगम बनाने, पेपर कारखाने में, दवाओं के निर्माण में, सौन्दर्य प्रसाधन के सामान बनाने आदि के लिए किया जाता है। पपेन उत्पादन किस्मों के लिए पूसा मैजेस्टी , CO. -5, CO. -2 जैसी किस्मों को लगा सकते हैं।
पपीता एक ऐसी फसल है, जिसे गमलों में भी लगा सकते हैं, लेकिन इसके लिए खास किस्मों को ही लगाना चाहिए। गमलों में लगाने के लिए पूसा नन्हा, पूसा ड्वार्फ आदि का चुनाव करना चाहिए।
कौन सी किस्म की क्या है खासियत
रेड लेडी : यह अत्यधिक लोकप्रिय किस्म है फल का वजन 1.5 – 2 कि. ग्रा. यह अत्यधिक स्वदिष्ट होती है। इसमें 13 % सर्करा पायी जाती यह रिंग स्पॉट वायरस के प्रति सहनशील है।
पूसा मैजेस्टी : यह किस्म पपेन देने वाली यह सूत्रकृमि के प्रति सहनशील है।
पूसा डेलिशियस: यह पपीता की एक गाइनोडायोशियस किस्म है। इसके पौधे मध्यम ऊंचाई और अच्छी उपज देने वाले होते हैं। यह एक अच्छे स्वाद, सुगन्ध और गहरे नारंगी रंग का फल देने वाली किस्म है, जिसकी औसत उपज 58 से 61 किलोग्राम प्रति पौधा तक होती है। इसमें कुल घुलनशील ठोस 10 से 12 ब्रिक्स होता है। इस किस्म के फल का औसत वजन 1.0 से 2.0 किलोग्राम होता है। पौधों में फल जमीन की सतह से 70 से 80 सेंटीमीटर की ऊँचाई से लगना प्रारम्भ कर देते हैं। पौधे लगाने के 260 से 290 दिनों बाद इस किस्म में फल लगना प्रारम्भ हो जाते है।
पूसा ड्वार्फ: यह पपीता की डायोशियस किस्म है, इसके पौधे छोटे होते हैं और फल का उत्पादन अधिक देते है। फल अण्डाकार 1.0 से 2.0 किलोग्राम औसत वजन के होते हैं। पौधे में फल ज़मीन की सतह से 25 से 30 सेंटीमीटर ऊपर से लगना प्रारम्भ हो जाते हैं। सघन बागवानी के लिए यह प्रजाति अत्यन्त उपयुक्त है। इसकी पैदावार 40 से 50 किलोग्राम प्रति पौधा है। फल के पकने पर गूदे का रंग पीला होता है।
पूसा जायन्ट: इस पपीता किस्म का पौधा मजबूत, अच्छी बढ़वार वाला और तेज हवा सहने की क्षमता रखता है। यह भी एक डायोशियस किस्म है। फल बड़े आकार के 2.5 से 3.0 किलोग्राम औसत वजन के होते हैं, जो कैनिंग उद्योग के लिए उपयुक्त हैं। प्रति पौधा औसत उपज 30 से 35 किलोग्राम तक होती है। यह किस्म पेठा और सब्जी बनाने के लिये भी काफी सही होता है।
पूसा नन्हा: यह पपीता की एक अत्यन्त बौनी किस्म है, जिसमें 15 से 20 सेंटीमीटर ज़मीन की सतह से ऊपर फल लगना प्रारम्भ हो जाते हैं। बागवानी व गमलों में छत पर भी यह पौधा लगाया जा सकता है। यह डायोशियस प्रकार की किस्म है, जो 3 वर्षों तक फल दे सकती है। इसमें कुल घुलनशील ठोस 10 से 12 ब्रिक्स होता है। इस किस्म से प्रति पौधा 25 किलोग्राम फल प्राप्त होता है।
अर्का सूर्या: यह पपीता की गाइनोडायोशियस किस्म है। जिसका औसत वजन 500 से 700 ग्राम तक होता है। इसमें कुल घुलनशील ठोस 10 से 12 ब्रिक्स तक होता है। यह सोलो और पिंक फ्लेश स्वीट द्वारा विकसित संकर किस्म है। इस किस्म की प्रति पौधा औसत पैदावार 55 से 56 किलोग्राम तक होती है और फल की भंडारण क्षमता भी अच्छी हैं।
पपीता की बुवाई
पपीते का व्यवसाय उत्पादन बीजों द्वारा किया जाता है। इसके सफल उत्पादन के लिए यह जरूरी है कि बीज अच्छी क्वालिटी का हो। बीज का चुनाव करते समय कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए :
1. बीज बोने का समय जुलाई से सितम्बर और फरवरी-मार्च होता है।
2. बीज अच्छी किस्म के अच्छे व स्वस्थ फलों से लेने चाहिए। चूंकि यह नई किस्म संकर प्रजाति की है, लिहाजा हर बार इसका नया बीज ही बोना चाहिए।
3. बीजों को क्यारियों, लकड़ी के बक्सों, मिट्टी के गमलों व पॉलीथीन की थैलियों में बोया जा सकता है।
4. क्यारियां जमीन की सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंची व 1 मीटर चौड़ी होनी चाहिए।
5. क्यारियों में गोबर की खाद, कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट काफी मात्रा में मिलाना चाहिए। पौधे को पद विगलन रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फार्मलीन के 1:40 के घोल से उपचारित कर लेना चाहिए और बीजों को 0.1 फीसदी कॉपर आक्सीक्लोराइड के घोल से उपचारित करके बोना चाहिए।
6. जब पौधे 8-10 सेंटीमीटर लंबे हो जाएं, तो उन्हें क्यारी से पौलीथीन में स्थानांतरित कर देते हैं।
7. जब पौधे 15 सेंटीमीटर ऊंचे हो जाएं, तब 0.3 फीसदी फफूंदीनाशक घोल का छिड़काव कर देना चाहिए।
बीज व बीजोपचार
एक हैक्टर क्षेत्रफल के लिए 500 -600 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बोने से पूर्व बीज को 3 ग्राम केप्टान प्रति किलो ग्राम. बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए।
पौध रोपण : 45 X 45 X 45 सेमी . आकर के गड्ढ़े 1.5 X 1.5 या 2 X 2 मीटर की दुरी दूरी पर तैयार करें। प्रति गड्ढे 10 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद, 500 ग्राम जिप्सम, 50 ग्राम क्यूनालफास 1.5 % चूर्ण भर देना चाहिए।
प्लास्टिक थैलियों में बीज की रोपाई
इसके लिए 200 गेज और 20 x 15 सेमी आकर की थैलियों की जरूरत होती है। जिनको किसी कील से नीचे और साइड में छेद कर देते हैं और 1:1:1:1 पत्ती की खाद, रेट, गोबर और मिट्टी का मिश्रण बनाकर थैलियों में भर देते हैं।
प्रत्येक थैली में दो या तीन बीज बो देते हैं। उचित ऊंचाई होने पर पौधों को खेत में प्रतिरोपण कर देते हैं ।
प्रतिरोपण करते समय थाली के नीचे का भाग फाड़ देना चाहिए।
सिंचाई
पौधा लगाने के तुरन्त बाद सिंचाई करें ध्यान रहे पौधे के तने के पास पानी न भरने पाए। गर्मियों में 5-7 दिन के अंतराल पर और सर्दियों में 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
तुड़ाई और उत्पादन
पौधे लगाने के 10 से 13 माह बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है और फलों पर नाखून लगने से दूध की जगह पानी और तरल निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया है ।
एक पौधे से औसतन 150 – 200 ग्राम पपेन प्राप्त हो जाती है प्रति पौधा 40 -70 किलो पति पौधा उपज प्राप्त हो जाती है