किसान अपनी फसल को कीट से बचाने के लिए महंगे रसायन व कीटनाशी का प्रयोग करता है, इससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है। ऐसे में किसान जैविक कीटनाशी द्वारा प्रबंधन कर सकता है।
आजकल कीटनाशकों के अंधाधुन्ध प्रयोग से कीटों को भले ही समाप्त किया जा रहा है मगर बाद में उसकी प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो गई है। यानी रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से कुछ कीटों की प्रजातियां नष्ट नहीं हो पा रही है। साथ ही साथ वातावरण को काफी नुकसान पहुंचता है। इन सभी नुकसानों से बचने के लिए जैविक कीटनाशी एकमात्र विकल्प है।
अन्तरराष्ट्रीय बाजार पर शोध करने वाली संस्थान केन के शोध के अनुसार, भारत में कीटनाशक का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। उसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2018 तक देश में 229,800 लाख का करोबार हो जाएगा।
जैविक कीटनाशक विभिन्न प्रकार के जीवों जैसे कीटों, फफूंदी, जीवाणु, विषाणु व वनस्पतियों का उत्पाद होते हैं। नीम आधारित कीटनाशी प्राकृतिक है, जिसमें एजाडारेक्टिन एवं सैलनिन नामक तत्व पाए जाते हैं, जिसका कीटों पर प्रभाव होता है बाजार में विभिन व्यापारिक नाम उसे उपलब्ध है।
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किसान चार किलोग्राम नीम की गुठली महीन कर रात भर 20 लीटर पानी में भिगो दें, सुबह छान कर 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति बीघा क्षेत्रफल में अरहर, धान, व टमाटर में लगने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए छिड़काव करें। टाईकोग्राम जाति के कीट अण्ड परजीवी होते हैं, इसकी मादा हानि पहुंचाने वाले कीटों के अंडो के भीतर अंडा देती है।
इनका प्रयोग धान व गन्ना के तना छेदक कीट के प्रबंधन में ज्यादा प्रभावी है। एनपीवी फली वेधक कीटों के नियंत्रण के लिए प्रयोग किया जाता है। 70 मिलीमीटर को 70 लीटर पानी में मिलाकर प्रति बीघा की दर से छिड़काव करें। सभी का प्रयोग शाम को किया जाता है धूप में छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि इन में उपस्थित जीवाणु मर जाते हैं।
वीटी बैक्टीरिया जनित कीटनाशी है, यह सूड़ियो को नष्ट करता है, 100 से 200 ग्राम मात्रा 100 से 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति बीघा मे छिड़काव करें। इसका प्रयोग अरहर धान, फूल गोभी, टमाटर, मिर्च, बैंगन व भिंडी में होता है।
ल्योर विभिन्न कीटों का अलग अलग होता है जो एक माह तक प्रभावी होता है। इसका प्रयोग धान अरहर व गोभी वर्गीय सब्जियों में किया जाता है। इस प्रकार जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है व रासायनिक कीटनाशकों की खपत को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।
डॉ. रवि प्रकाश मौर्य
प्रमुख वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, पाती, अंबेडकरनगर
फेरोमोन ट्रैप का उपयोग फसलों को हानि पहुंचाने वाले सुडियों के नर पतंगा कीटों को आकर्षित करने में किया जाता है, इस में जो गंध लगाया जाता है उसे ल्योर कहते हैं। दो ट्रैप प्रति बीघा में लगाया जा सकता है इसके माध्यम से नर पतंगों को एकत्र कर मार दिया जाता है। ट्रैक की ऊंचाई फसल से एक से दो फीट ऊपर होनी चाहिए।