अरहर की खेती करने वाले किसानों के सामने फसल में उकठा जैसी बीमारियां लगने की समस्या आती थी, साथ ही अरहर की फसल तैयार होने में ज्यादा समय लेती है, जिससे किसान दूसरी फसल नहीं ले पाते हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों ने अरहर की ऐसी किस्में विकसित की हैं, जो जल्दी जो कम समय में तैयार हो जाती है और उकठा जैसी बीमारियां भी नहीं लगती है।
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान ने अरहर की दो प्रजातियां आईपीएच-15-03 और आईपीएच-09-05 विकसित की है। संस्थान के निदेशक डॉ एनपी सिंह अरहर की नई किस्मों के बारे में बताते हैं, “अभी तक अरहर की हाईब्रिड किस्में नहीं होती थी, ये दोनों अरहर की संकर किस्में हैं। इसमें दूसरी किस्मों के मुकाबले ज्यादा उत्पादन मिलता है, साथ ही खास बात है कि ये जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। अभी तक अरहर को जो किस्में हैं, उनकी बुवाई जून से अगस्त तक होती है और वो अप्रैल में तैयार होती है, लेकिन ये किस्म जुलाई में लगाने पर नवंबर में ही तैयार हो जाती है, जिससे किसान दूसरी फसल भी बो सकते हैं।”
इन किस्मों की खासियतें बताते हुए वो कहते हैं, “दूसरी किस्मों में बांझपन मोजेक रोग और दूसरा फ्यूजेरियम विल्ट जिसे उकठा रोग कहते हैं लगता है। ये दोनों किस्में इन दोनों बीमारियों से प्रतिरोधी हैं, इसमें दोनों बीमारियां नहीं लगती हैं।”
भारत में महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, झारखंड, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य हैं। देश के 90 प्रतिशत अरहर का उत्पादन इन्हीं आठ राज्यों में होती है।
अरहर की नई किस्मों में दूसरी किस्मों की तुलना में ज्यादा उत्पादन भी मिलता है, इस बारे में डॉ एनपी सिंह बताते हैं, “अगर उत्पादन की बात करें इसमें 20-20 कुंतल उत्पादन मिलता है, जबकि दूसरी किस्मों में औसत उपज आठ-दस कुंतल ही मिलती है। अरहर की खेती में खास बात होती है, जैसे किसान फसल की देख रेख करेंगे वैसी ही उपज मिलेगी। कई किसान अरहर में अच्छा उत्पादन लेते हैं। इसमें और ज्यादा भी उत्पादन ले सकते हैं।”
अभी ये किस्में उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे क्षेत्रों के लिए अभी ये किस्में विकसित की गईं हैं। किसानों को बीज उपलब्ध कराने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से बात चल रही है। हम उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही से भी मिलकर आए हैं, कि हमें अरहर बीज उत्पादन के लिए फार्म उपलब्ध कराया जाए। अरहर की हाईब्रिड किस्म का बीज तैयार करने के लिए जहां पर इसकी फसल होती हे, वहां से लगभग 500 मीटर की दूरी पर दूसरा अरहर का खेत नहीं होना चाहिए। संस्थान का फार्म एक्स्पेरीमेंटल फार्म है, यहां पर कई सारी किस्में उगायी जाती हैं। इसलिए सरकार से खेत उपलब्ध कराने की बात की गई है।