लखनऊ। इस समय ज्यादातर क्षेत्रों में धान की फसल में बालियां आने लगी हैं, इस समय फसल में सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है।
धान में बालियां आने पर खेत में पर्याप्त नमी रखनी चाहिए, लेकिन वातावरण में तापमान अधिक होने और नमी रहने से खेत में रोग व कीट भी प्रभावी हो जाते हैं। इसलिए इनके नियंत्रण के लिए लाइट ट्रैप, बर्ड पर्चर, फेरोमोन ट्रैप, ट्राइकोग्राम व रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडरमा का प्रयोग करें।
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रोग व कीट नियंत्रण के लिए ये उपाय करें किसान
धान की फसल में अगर खैरा रोग लग रहा तो रोग नियंत्रण के लिए फसल में पांच किलो जिंक सल्फेट (21 प्रतिशत) और 20 किलो यूरिया या 2.5 किलो बुझे हुए चूने को 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
तना छेदक हरा, भूरा व सफेद पीठ वाले फुदका और पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण के लिए कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4जी 18 किलो का छिड़काव करें या फिर एमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल 125 मिली 500-600 लीटर पानी में घोलकर कर छिड़काव करें।
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फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. की 2.5 लीटर सिंचाई के पानी के साथ या फोरेट 10 जी. की 10 किग्रा. मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 3-5 सेमी. स्थिर पानी में छिड़काव करें।
जीवाणु झुलसा और जीवाणुधारी झुलसा के नियंत्रण के लिए 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसीन सल्फेट 90 प्रतिशत टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू.पी. के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर 500-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
धान की गंधीबग वयस्क लम्बा, पतले और हरे-भूरे रंग का उड़ने वाला कीट होता है। इस कीट की पहचान कीट से आने वाली दुर्गन्ध से भी कर सकते हैं। इसके व्यस्क और शिशु दूधिया दानों को चूसकर हानि पहुंचाते हैं, जिससे दानों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और दाने खोखले रह जाते हैं।
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यदि कीट की संख्या एक या एक से अधिक प्रति पौध दिखायी दे तो मालाथियान पांच प्रतिशत विष धूल की 500-600 ग्राम मात्रा प्रति नाली की दर से छिड़काव करें। खेत के मेड़ों पर उगे घास की सफाई करें क्योंकि इन्ही खरपतवारों पर ये कीट पनपते रहते हैं और दुग्धावस्था में फसल पर आक्रमण करते हैं। 10 प्रतिशत पत्तियां क्षतिग्रस्त होने पर केल्डान 50 प्रतिशत घुलनशील धूल का दो ग्राम/ली. पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
भूरी चित्ती रोग के लक्षण मुख्यता पत्तियों पर छोटे- छोटे भूरे रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देतें है। उग्र संक्रमण होने पर ये धब्बे आपस में मिल कर पत्तियों को सूखा देते हैं और बालियां पूर्ण रूप से बाहर नहीं निकलती हैं। इस रोग का प्रकोप धान में कम उर्वरता वाले क्षेत्रों में अधिक दिखाई देता है।
इस रोग के रोकथाम के लिए पुष्पन की अवस्था में जरुरत पड़ने पर कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर 10-20 दिन के अन्तराल पर या बाली निकलते समय दो बार आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील धूल की 15-20 ग्राम मात्रा को लगभग 15 ली पानी में घोल बनाकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करें।