झोले में फिट होने वाला सौर सिंचाई पंपसेट, छोटे किसानों के लिए बना फायदे का सौदा

कॉम्पैक्ट और पोर्टेबल सौर ऊर्जा पंप सेट सिंचाई को आसान बना रहे हैं। इन्हें इस्तेमाल करने वाले किसानों का कहना है कि इससे उनकी फसल की उपज पर काफी अच्छा असर पड़ा है।
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अक्ली टुडू अपना झोला उठाती हैं और अपने एक एकड़ सरसों के खेत की ओर चल देती हैं। झोला कोई साधारण कपड़े का थैला नहीं है, इसमें एक पोर्टेबल सौर ऊर्जा से चलने वाला सिंचाई पंप है जो झारखंड के गुरुबांधा के सुरगी गाँव के सीमांत किसान को अपनी फसल की सिंचाई करने में मदद कर रहा है।

इस पोर्टेबल सौर ऊर्जा से चलने वाले सिंचाई पंप को पुणे के स्टार्टअप खेतवर्क्स ने बनाया है। यह एक मिक्सर जार के आकार का है और छोटे और सीमांत किसानों को उनकी सिंचाई जरूरतों को पूरा करने में मदद कर रहा है। दरअसल 2 हेक्टेयर या 5 एकड़ तक की जमीन वाले ये किसान एक लाख रुपये तक की लागत वाले बड़े सौर सिंचाई पंप खरीदने में असमर्थ हैं। आसानी से चलने वाले पोर्टेबल सिंचाई पंप उनके लिए खासे फायदेमंद साबित हो रहे हैं।

सिंगल-स्विच, ऑटोमेटिक ऑपरेशन और पोर्टेबल पंपसेट को लगाने के लिए किसी तरह स्थापित लागत नहीं आती है। इसका मतलब है कि कोई भी उन्हें आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। किसान खेतवर्क्स सोलर पंप को रोजाना लाकर अपने खेतों में इस्तेमाल करते हैं और रात होने पर इसे सुरक्षित रूप से घर ले जा सकते हैं। अतिरिक्त आय के लिए वे इसे किराये पर भी दे सकते हैं। खेतवर्क्स ने पहले उथले पानी और सतही जल क्षेत्रों को लक्षित किया था, जहां रिचार्जेबल पानी एक स्थायी संसाधन के रूप में मौजूद है।

पूर्वी सिंहभूम जिले की महली जनजाति से ताल्लुक रखने वाली टुडू को अपने पोर्टेबल पंप पर काफी भरोसा है। वह अपने खेत के तालाब में पोर्टेबल सोलर पंप को डुबोती है, पंप के साथ आने वाले एक पाइप को जोड़ती है और एक बटन दबाती है – और पानी बाहर निकलने लग जाता है।

उनके अनुसार, सौर ऊर्जा से चलने वाले सिंचाई पंपसेट को अपनाने से उनकी फसलों की अच्छी पैदावार हुई है और इस कारण उनकी कमाई भी बढ़ी है। पारंपरिक पंपसेट चलाने के लिए डीजल खरीदना पड़ता था, लेकिन अब उसकी भी बचत हो रही है।

टुडू ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इस साल मेरी ज़मीन पर 1.5 क्विंटल (150 किलोग्राम) सरसों की पैदावार हुई, जो पहले कभी नहीं हुई। पिछले साल, हमारे पास सिर्फ 30 किलो सरसों थी।” उन्होंने कहा कि इस साल बंपर पैदावार समय पर और पर्याप्त सिंचाई की वजह से हुई है। वह सरसों को पिसवाती है और उसका तेल निकलवाकर रख लेती हैं।

उन्होंने कहा, “इस साल मेरी भतीजी की शादी हुई और हमारे पास शादी में खाना पकाने के लिए भरपूर सरसों का तेल था। नहीं तो हमें इसे 235 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से खरीदना पड़ता। अब हम अतिरिक्त तेल बेचने की भी सोच रहे हैं।”

केंद्र सरकार अपनी पीएम-कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान) योजना के तहत, कृषि क्षेत्र में डीजल पंपसेट को बदलने के लिए सौर सिंचाई पंप (एसआईपी) के इस्तेमाल को लोकप्रिय बनाने पर जोर दे रही है। इरादा भारत को स्वच्छ-ऊर्जा आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने का है। यह 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करेगा।

हालाँकि कुसुम योजना के जरिए दिए जाने वाले पंपों की क्षमता 2 हॉर्स पावर (एचपी) से 10 हॉर्स पावर के बीच है। लेकिन छोटे और सीमांत किसानों के लिए ये बहुत बड़ा और महंगा सौदा है।

खेतवर्क्स के मोबाइल माइक्रो-एसआईपी में 168 वॉट के दो सौर पैनल हैं, जिन्हें टुडू अपने पति की मोटरसाइकिल पर बैठ जमीन के एक हिस्से से दूसरे हिस्से की सिंचाई के लिए ले जाती है। टुडू की तरह, गुरुबांधा ब्लॉक के 32 अन्य किसान भी इन छोटे सिंचाई सोलर पंपों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

कई छोटे और सीमांत किसान पोर्टेबल सौर-आधारित सिंचाई पंपसेट का विकल्प चुन रहे हैं। उदाहरण के लिए, टुडू घरोनी लाहंती महिला उत्पादक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड नामक किसान उत्पादक कंपनी की सदस्य है और पिछले सितंबर में उसने 0.48 एचपी का पोर्टेबल पंप खरीदा था।

उन्होंने पोर्टेबल सोलर पंप के लिए 6,000 रुपये का अग्रिम भुगतान किया और बाकी के पैसे उन्हें किस्तों में अदा करने थे। इन पंपों की कीमत रियायती दर पर 26,000 रुपये है। टुडू पहले ही काफी मुनाफा कमा चुकी है और जल्द ही सभी किस्तें चुका देगी।

आदिवासी किसान ने गर्व के साथ कहा, “मैं आने वाले सप्ताह में अपनी आखिरी किस्त चुका दूंगी।”

पिछले साल अगस्त तक, टुडू अपनी जमीन की सिंचाई के लिए डीजल से चलने वाले सिंचाई पंपसेट पर निर्भर थी। हालाँकि उसके पास पंपसेट था, लेकिन ईंधन की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर थी। सबसे नजदीकी पेट्रोल पंप 25 किलोमीटर दूर डुमरिया में है। उनके मुताबिक, पंप को चलाने में एक दिन में पांच लीटर ईंधन की खपत होती थी।

उन्होंने कहा, “पिछले सीजन में सरसों की फसल की सिंचाई के लिए पंप चलाने में मुझे लगभग 16,000 रुपये का खर्च आया था।” इसके अलावा, भारी डीजल पंप को चलाने के लिए, टुडू को एक मजदूर को काम पर रखना पड़ा, जो इस काम के लिए रोजाना 200 रुपये लेता था।

भारी पंपसेट को ले जाना काफी मुश्किल होता है। इसलिए हमेशा उसके चोरी होने का खतरा बना रहता है। टुडू जैसे किसानों के लिए यह एक चिंता की एक और बात होती है। ऐसी कई रातें थीं जब उसे यह सोचकर नींद नहीं आई कि क्या उसका पंपसेट अगली सुबह भी वहीं रहेगा जहां उसने उसे अपने खेत में छोड़ा था।

पोर्टेबल सोलर पंपसेट काफी हद तक इन समस्याओं से छुटकारा दिला रहा है। घरोनी लहंती महिला उत्पादक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सीईओ दुर्गा दयाल पात्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इन पंपों की लागत 52,000 रुपये है, जिसमें से किसानों को सिर्फ 26,000 रुपये का भुगतान करना होगा। बाकी पैसों का भुगतान टाटा ट्रस्ट अपने कलेक्टिव्स फॉर इंटीग्रेटेड लाइवलीहुड इनिशिएटिव्स के तहत करता है।” पात्रा ने कहा, “26,000 रुपये में से पहले सिर्फ 6,000 रुपये देने होते है और बाकी पैसों के लिए हमारी कंपनी से लोन लिया जा सकता है।” पात्रा की निर्माता कंपनी ब्लॉक में 5000 किसानों के साथ काम करती है और इसमें 2095 महिला शेयरधारक हैं, जिनमें से 33 ने पंपसेट में निवेश किया है।

उन्होंने आगे कहा, “इस क्षेत्र में, आप दादाओं (पुरुषों) की तुलना में दीदियों (महिलाओं) को ज्यादा देखेंगे। यही कारण है कि हम अपनी कंपनी के सदस्यों के रूप में महिलाओं को शामिल करने पर ध्यान दे रहे हैं।”

टुडू की तरह, पूर्वी सिंहभूम के गुरा गांव की 29 वर्षीय सुनीता मुर्मू ने नवंबर 2022 में खेतवर्क्स के छोटे-सोलर पंप की ओर रुख किया था।

मुर्मू को उनकी फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी में आयोजित एक डेमो सत्र में पोर्टेबल पंप के इस्तेमाल के बारे में प्रशिक्षित किया गया था। बदले में उन्होंने अपने पति और परिवार के अन्य सदस्यों को पंपसेट चलाना सिखाया। उन्होंने कहा, ”और उनकी सिंचाई से जुड़ी दिक्कतें अब खत्म हो गई हैं।”

पंप पांच स्पीड पर चलते हैं और मुर्मू अपनी जरूरत के मुताबिक पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकती हैं। वह इसे किसी खुले कुएं या तालाब में डाल देती है। अगर जल स्तर 12 फीट से नीचे है तो पंप ऑटोमेटिक तरीके से बंद हो जाएगा। सौर ऊर्जा वाले सिंचाई पंपसेट अपनाने से उनके बिजली बिल में भी कमी आई है। दरअसल खेतों की सिंचाई अब उसके गांव में बिजली के आने या न आने से नहीं जुड़ी है।

मुर्मू ने गाँव कनेक्शन को बताया, “गर्मियों में हमें लगभग पाँच घंटे बिजली मिलती है। भगवान न करे अगर बारिश हो जाये तो हम पानी के लिए भी तरस जाते थे। जब हम सिंचाई करना चाहते थे तो हमें कभी पानी नहीं मिल पाता था।”

खेतवर्क्स के माइक्रो सोलर पंप के बारे में बताते हुए मुख्य कार्यकारी अधिकारी विक्टर लेस्निविस्की ने बताया कि पंप 86 फीसदी छोटे और सीमांत किसानों की मानसून बारिश और ईंधन-आधारित पंपों पर काफी हद तक निर्भरता से होने वाली परेशानियों को देखते हुए लाया गया है। पूर्वी भारत में जहां बिजली खेतों तक नहीं पहुंच पाती है, वहां यह खास तौर पर उनकी उत्पादकता और आय पर असर पड़ता है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “इन क्षेत्रों में पानी तो है, लेकिन इसे जमीन से निकालना महंगा है। डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं और केरोसीन की उपलब्धता कम हो रही है। सिंचाई ऊर्जा की लागत उत्पादन लागत का 20-40% (प्रति सीजन 10,000 रुपये प्रति एकड़ तक) होने का अनुमान है। छोटे किसान मानसूनी खेती से इतर खेती करने की बजाय मजदूरी के लिए पलायन करना पसंद कर रहे हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “हमारे पास औसतन प्रति पंप लगभग 2 छोटे किसान उपयोगकर्ता हैं और 14 भारतीय राज्यों में लगभग 2000 किसान सीधे तौर पर इसका लाभ उठा रहे हैं। इनमें से लगभग एक चौथाई किसान खास तौर पर झारखंड से हैं।”

सीईओ पात्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया कि फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी माइक्रो पंपों को और अधिक सुलभ बनाने के लिए कीमतों में और कमी लाने के लिए खेतवर्क्स के अधिकारियों के साथ बातचीत कर रही है।

चुनौतियों का हवाला देते हुए, लेस्निविस्की ने पिछले कुछ सालों में सप्लाई चैन में रुकावट और कच्चे माल की बढ़ती लागत की ओर इशारा किया। मांग पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि वर्षों की पूंजीगत सब्सिडी के बावजूद दूरदराज के समुदायों में सौर पंपों के बारे में काफी कम जागरूकता है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “सबसे बड़ी चुनौती अंतिम ग्राहक के लिए सौर पंप की अग्रिम लागत है। हम अगले महीने झारखंड और ओडिशा दोनों में भागीदारों के साथ एंड-यूजर फाइनेंसिंग शुरू करने की उम्मीद कर रहे हैं।”

लेस्निविस्की ने कहा कि कंपनी एंड-यूजर फाइनेंसिंग इकोसिस्टम की तरफ जाने की कोशिश कर रही है। 

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