मालन संभाजी राउत की महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त जिले लातूर में 2.5 एकड़ ज़मीन है जिस पर वह खेती करती हैं। जब उन्होंने 2016 में बोरवेल लगवाया, तो उन्हें लगा कि इससे खेतों में बेहतरीन उपज की शुरुआत होगी।
ऐसा हुआ भी। वह एक एकड़ में बैंगन, भिंडी और कई साग-सब्जियाँ उगा रही थीं बाकि बची 1.5 एकड़ में अनार, सीताफल और जामुन सहित 25 से ज़्यादा तरह के फल लह लहा रहे थे। (एकड़ = 0.4 हेक्टेयर)
लेकिन उनकी खुशी थोड़े समय के लिए ही थी। हिरणों और जंगली सूअरों के खेतों में घुस आने के चलते उनकी सारी फसल बर्बाद हो गई। इन जानवरों ने अंधेरे की आड़ में उनके खेतों पर हमला किया और फसलों को नुकसान पहुँचाया। लातूर के औरा तालुका के नागरसोरा गाँव की 36 साल की किसान बेहद दुखी थीं।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने अपने खेतों में लगभग 30,000 रुपये लगाए थे और वह सब बर्बाद हो गए।”
फिर उन्हें कुछ ऐसा मिला जिससे उनकी समस्या काफी हद तक दूर हो गई। अप्रैल 2019 में बेंगलुरु स्थित संगठन ‘कटिधन’ इंसानों को वन्यजीव से होने वाले नुकसान से राहत पाने के लिए गुल्लक के आकार (10.5×10.5×22 सेमी) का एक अनूठा पोर्टेबल उपकरण लेकर आया है, जिससे राउत को काफी मदद मिली।
परब्रक्ष एक सौर ऊर्जा से चलने वाली फ्लैश लाइट है (जो रात में चालू होती है और दिन के दौरान बंद हो जाती है)। इसे ‘कटिधन’ संगठन ने तैयार किया है और लातूर के असहाय किसान को ट्रायल के लिए मुफ्त में दिया था। परब्रक्ष जानवरों को नुकसान पहुंचाए बिना, उन्हें खेतों से दूर भगाने के लिए रोशनी की चमक पैदा करने के लिए सौर ऊर्जा से चलती है। राउत ने जंगली जानवरों को रोकने के लिए लोहे की छड़ पर टॉर्च लगाई और उसे अपने खेत के महत्वपूर्ण हिस्से में रख दिया। और यह काम कर गया।
टार्च में 3 वॉट से 6 वाट तक का एक एकल सौर पैनल होता है, जिसमें एक लिथियम-आयन बैटरी और चार एलईडी लाइट होती हैं। यह पलक झपकते ही और पूरे क्षेत्र में यहाँ वहाँ रोशनी फैलाती रहती है।
‘कटिधन’ की आउटरीच अधिकारी प्रांजलि ने गाँव कनेक्शन को बताया, “चमकती रोशनी 500 मीटर दूर तक दिखाई देती है। यह जंगली सूअर, नीलगाय, बाइसन, हाथी, बाघ और तेंदुओं को खेतों से दूर रखती है।” क्योंकि टॉर्च सौर ऊर्जा से चलती है, इसलिए यह उन दूर-दराज के गाँवों के लिए एक अच्छा समाधान है जहाँ बिजली बहुत ही कम आती है।
इन दो सालों में राउत ने अपने खेत में टॉर्च का इस्तेमाल किया और इसने 90 फीसदी परेशानी को कम कर दिया। राउत ने कहा, “इसने जंगली जानवरों को दूर रखा है और फसलों को बचाया है। मैं अपनी सब्जियां बेचकर हर साल लगभग 90,000 रुपये का प्रॉफिट कमा पाती हूँ ।”
किसान ने जब से इस टॉर्च को अपनाया है तब से वह अपने खेतों से दो किलोमीटर दूर अपने घर में शांति से सोने लगी हैं। उन्होंने कहा, “मैं रात में अपने कुत्ते के साथ निगरानी करने के लिए अपने खेतों में एक झोपड़ी बनाकर रहती थी। लेकिन मुझे अब पूरी रात जागना नहीं पड़ता। इसके अलावा मच्छरों का सामना करते हुए और सांप-बिच्छुओं का डर भी अब पीछे छूट गया है।”
‘कटिधन’ ने 12 राज्यों – कर्नाटक, झारखंड, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, राजस्थान, उत्तराखंड, असम, ओडिशा में परब्रक्ष की लगभग 1,000 यूनिट लगाई हैं। आउटरीच अधिकारी प्रांजलि ने कहा, 1,500 से ज़्यादा किसान इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में राऊत के गाँव से 1,200 किलोमीटर दक्षिण में तमिलनाडु के थेनी जिले के के. राजेश को हाथियों और जंगली सूअरों ने गहरी निराशा में पहुँचा दिया था। जंगली जानवरों ने उनके नारियल के पेड़ों को उखाड़, केले के बागानों को बर्बाद कर दिया और उनकी ज़मीन पर सब्जियों को बुरी तरह से रौंद दिया था। इसके बाद उन्होंने 2016 और 2021 के बीच पाँच साल से ज़्यादा समय के लिए अपनी 20 एकड़ ज़मीन परती छोड़ दी थी।
राजेश का गाँव कुल्लप्पा गोंडा पट्टी तीन तरफ से मुरुगमलाई आरक्षित वन से घिरा हुआ है। जंगली जानवरों को दूर रखने के लिए, किसान ने सौर बाड़ लगाने और खाइयाँ खोदने की कोशिश की थी, लेकिन किसी ने काम नहीं किया।
राजेश ने गाँव कनेक्शन को बताया, “अगर बाड़ के ऊपर लताएँ उग आती हैं तो सौर बाड़ में शॉर्ट सर्किट हो जाता है, और खाइयाँ सिर्फ कुछ समय के लिए ही काम करती हैं। हाथी उनमें मिट्टी रौंदकर अपने लिए रास्ता बना लेते थे।”
उन्होंने शिकायत करते हुए कहा, “हाथियों की वजह से लगभग 500 नारियल के पेड़ बर्बाद हो गए थे। जंगली सूअरों ने कई एकड़ केले के पौधे खोद डाले। मुझे यह भी नहीं पता कि इन पिछले सालों में मैंने कितना पैसा खो दिया है।”
आखिरकार राजेश ने अक्टूबर 2022 में परब्रक्ष को आजमाने का फैसला किया। तब से, उनके खेतों पर अभी तक हमला नहीं हुआ है।
69 वर्षीय किसान ने अपनी 55 सेंट (0.5 एकड़) ज़मीन पर टॉर्च का इस्तेमाल किया है। उनका कहना है कि वह जल्द ही और भी टार्च खरीदेंगे। राजेश ने सोलर लाइट के लिए 10,000 रुपये खर्च किए और उन्हें तीन दिनों में लाइट मिल गई।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए प्रकाश-आधारित प्रभावशाली तरीकों का इस्तेमाल करने के बारे में बात करते हुए वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, “जंगली जानवर रात के समय खेतों में चले जाते हैं और फसल पर हमला करते हैं। रोशनी, इंसान या किसी भी हलचल की उपस्थिति निश्चित रूप से जानवरों को खेतों में अंदर आने से रोक सकती है। इसके लिए किसी भी तरह की सौर रोशनी उनके काम में बाधा डाल सकती है। लेकिन समुद्र तट जैसी जगहों पर जहाँ कछुए रहते हैं, वहां रोशनी की मौजूदगी उनके घोंसले बनाने के व्यवहार पर बहुत नकारात्मक असर डाल सकती है।”
छत्तीसगढ़ में चलाए जा रहे जंगली हाथी परियोजना में वन्यजीव एसओएस, एक संरक्षण गैर-लाभकारी संगठन, ने पाया कि गाँव के लोग रोशनी और शोर-शराबे से हाथियों को खेतों में घुसने से रोक पाए थे।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “जब हाथी, तेंदुए और अन्य जंगली जानवर रोशनी या आवाज़ सुनते हैं, तो वे उस दिशा में जाने से बचते हैं।”
सत्यनारायण के मुताबिक, परब्रक्ष तकनीक किसी भी सौर लाइट के समान है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर एग्रीकल्चर एप्लीकेशन में किया जा रहा है और ये अन्य किसी तरह के रोशनी देने वाले उपकरण की तरह ही काम करता है।
हालाँकि, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह पुष्टि करने के लिए और ज़्यादा शोध की जरूरत होगी कि कहीं जंगली जानवर इस रोशनी के आदी तो नहीं हो जाएंगे या कुछ समय बाद उस रोशनी से उन्हें फर्क पड़ना बंद तो नहीं हो जाएगा।
हालाँकि डिवाइस की कीमत छोटे और सीमांत किसानों के लिए चिंता का विषय है। राजेश को पता है कि वह थेनी इलाके में अपनी ज़मीन पर परब्रक्ष लगाने वाले एकमात्र किसान हैं। उन्होंने कहा, “छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाइट बहुत महंगी है।”
लातूर के राउत ने कहा कि अन्य किसान टॉर्च को आजमाना चाहते हैं। वह नगरसोरा गाँव में स्वयं सखी शेटमल फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी की निदेशक हैं और 1,000 छोटे और सीमांत किसानों के साथ मिलकर काम करती हैं।
उन्होंने कहा, “उन्हें टॉर्च आज़माने में ख़ुशी होगी, लेकिन वे इसे ख़रीद नहीं सकते हैं।” उन्हें टॉर्च की मरम्मत और सर्विसिंग को लेकर भी चिंता है।
वह सवाल करती हैं, ‘अगर यह काम करना बंद कर दे तो किससे संपर्क किया जाएगा? इसे कितनी जल्दी बदला जाएगा?’, ‘क्या कंपनी इसकी सेवा और मरम्मत के लिए किसी को भेजेगी या किसी को इसे कंपनी तक पहुँचाना होगा?’ उन्होंने बताया, “मेरा सोलर पैनल इस साल अप्रैल से ख़राब है और मैं इसे ठीक नहीं करा पाई हूँ “
उन्होंने वकालत की कि सरकार को किसानों के लिए समाधान के रूप में परब्रक्ष को सब्सिडी देने के लिए कदम उठाना चाहिए।
सोलर टॉर्च की एक साल की सर्विस वारंटी है। कटिधन की प्रांजलि ने कहा कि उन्हें अभी तक राऊत के ख़राब हो चुके सौर पैनलों के बारे में जानकारी नहीं है और वे इसे ठीक करने के लिए उनसे संपर्क करेंगी।
उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “अगर बैटरियाँ और पैनल एक साल के भीतर ख़राब हो जाते हैं तो हम उन्हें बदल देते हैं। अगर वारंटी का समय खत्म हो चुका है तो किसानों को उनके घटकों को बदलने के लिए पास की दुकानों पर ले जाना होता है।”
कंपनी मानती है कि छोटे किसानों के लिए टॉर्च खरीदना एक चुनौती है। कंपनी की अधिकारी प्रांजलि ने कहा, “कंपनी पराब्रक्ष की लागत कम नहीं कर पाई है। हाँ, अगर माँग बढ़ती है और उत्पादन भी बढ़ता है, तो कीमत कम हो जाएगी।”