उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से रायबरेली की तरफ जब आप बढ़ेंगे तो करीब 30 किमी दूर मोहनलालगंज ब्लॉक में एक गाँव पड़ता है, सिसेंडी, जहाँ आसपास के किसानों का जमावड़ा लगा रहता है। यहाँ किसान पॉली हाउस और हाइड्रोपोनिक विधि से खेती के तरीके जानने पहुँचते हैं।
यहाँ प्रगतिशील किसान पवन अग्रवाल साल भर बेमौसमी सब्जियों की खेती करते हैं, जिससे सालाना उन्हें 25-30 लाख की कमाई हो जाती है।
लेकिन ऐसा नहीं है कि पवन शुरू से खेती से जुड़े हुए हैं, पवन गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “पहले मैं पॉवर सेक्टर में काम करता था, जिसके कारण गाँवों में जाना होता होता था; वहाँ देखता कि हर किसान परेशान रहता था। मुझे लगा कि कुछ करना चाहिए, तभी कोविड के कारण लॉकडाउन लग गया, उस दौरान मैंने नई चीजें सीखकर ये सेटअप तैयार किया।”
पवन आगे बताते हैं, “किसानों से बात करने के बाद मुझे लगा कि हमारी विचारधारा एक जैसी ही है, फिर उनकी मदद से काम करना शुरू किया।”
जब हम एडवांस टेक्निक की बात करते हैं, तो सबसे सस्ता ऑप्शन आता है नेट हॉउस। नेट हाउस लोहे का एक सेटअप होता होता है जिसके चारों तरफ हरी या सफेद जाली से कवर कर दिया जाता है। केवल बारिश के दो महीने वहाँ खेती नहीं हो पाती हैं, क्योंकि जाली लगी है तो पानी अंदर आ जाता है। उसके अलावा 10 महीने आराम से खेती हो जाती है। इसका एक फायदा ये भी है , चारों तरफ कवर होने के कारण कोई भी कीट अंदर नहीं आ पाता, जिससे दवाइयों का खर्च कम लगता है।
यहाँ तीन एकड़ में पॉलीहाउस, 500 वर्ग मीटर में हाइड्रोपोनिक्स और 2500 वर्ग मीटर में बनी है हाईटेक नर्सरी, जिसमें साल भर पौधे तैयार होते रहते हैं।
पालीहाउस के बारे में पवन विस्तार से समझाते हैं, “अब नेट हाउस में ज़्यादा वजन आएगा पॉलीहाउस का, क्योंकि उसमें नेट की जगह पॉलीथिन लगी होती है, जिसकी वजह से उसमें बारिश का पानी नहीं जाता है; कुछ एडवांस तकनीक की मदद से कृत्रिम रूप से बारिश करायी जाती है।”
पवन पॉलीहाउस के साथ ही हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से भी खेती करते हैं, जिसमें पत्तेदार सब्जियाँ उगा सकते हैं। इसके फायदे के बारे में समझाते हैं, “अगर आप हाइड्रोपोनिक में खेती करते हैं तो कम समय में फसल तैयार हो जाती है, कई बार तो महीने में 12 बार फसल काट सकते हैं, जोकि बाहर खेती करने पर संभव नहीं है।”
पवन के अनुसार अगर किसी किसान को हाइड्रो या पॉलीहाउस में चुनना है तो सबसे पहले पॉलीहाउस से शुरुआत करें। इसकी लागत एक एकड़ में लगभग 40 लाख के करीब आती है, जिसको लगाने के लिए सरकार सब्सिडी भी देती है। पॉलीहाउस में खेती करके किसान दोगुना फसल उत्पादन ले सकता है और क्वालिटी भी ज़्यादा बेहतर होती है।
पवन खुद तो कमाई कर ही रहे हैं, साथ ही आसपास के लोगों को भी रोज़गार दे रखा है। वो कहते हैं, “हमारे यहाँ जितने भी लोग काम करते हैं, सब आस पास की महिलाएँ हैं। इन महिलाओं को परमानेंट काम मिल गया है। गाँव में जहाँ हफ्ते में पाँच दिन ही काम मिलता है, यहाँ हफ्ते के सातों दिन काम मिल गया है।”
अभी पवन के यहाँ 30-40 महिलाएँ काम करती हैं; उन्हीं में से एक रानी भी हैं, रानी बताती हैं, “यहाँ की कमाई से 40-45 हज़ार रुपए जमा कर लिए हैं और घर भी अच्छा चल रहा है। महीने के छह हज़ार रुपए कमा लेती हूँ, खेत के मुकाबले यहाँ मेहनत भी कम लगती है।”