मैंने अपने एक प्रयोग से ये साबित कर दिया है कि संकर बीज और बीटी कपास फसल में देशी कपास फसल से अधिक उत्पादन देने की आनुवंशिक क्षमता नहीं होती है। इसे लेकर कृषि वैज्ञानिकों का दावा पूरी तरह झूठा है। ये तभी संभव है जब उसमें रासायनिक खाद डाला जाए।
सुभाष पालेकर कृषि जन आंदोलन जन्नूक रोपित (आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों) यानी जेनेटिकली मोडीफाइड जीएम बीटी कपास और जीएम सरसों बीजों के निर्माण करने वाले जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक का और उसपर अमल करने वाले रेन्विक जैव वैज्ञानिकों का सख्त विरोध करता है। क्यों कि यह जन्नूक रोपण तकनीक ईश्वर निर्मित प्राकृतिक देशी बीजों पर किया गया मानवी अपराध है। ईश्वर निर्मित प्रकृति में इस तरह के काम का कहीं भी अस्तित्व नहीं है। प्रकृति में सिर्फ ईश्वर निर्मित स्वयं उत्परिवर्तन उत्पादक (देशी किस्मों) का विकास बिना मानवीय सहायता ईश्वर करता है । इसलिए कपास हो या सरसों जन्नूक रोपन की राक्षसी कृति ईश्वरीय व्यवस्था को खुली चुनौती है, अधर्म है।
देशी बीजों के हाथ पांव बांधकर उनकी अनुमति लिए बिना कड़े विरोध के बावजूद उन पर अत्याचार हो रहा है। पाश्चात्य जन्नूक अभियांत्रिकी वैज्ञानिक ये जो कर रहे हैं गलत है।
जेनेटिक इंजीनियर साइंटिस्ट यानी रेन्विक जैव वैज्ञानिकों द्वारा जेनेटिकल इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी के जरिए देशी हरबेरियम कपास पौधों की जड़ों के पास अपना काम करने वाले बैसिलस थुरिएंजीएंसीस नाम के प्राकृतिक सूक्ष्म जीवाणुओं के शरीर से अमेरिकन बोल वर्म के विरोध में प्रतिरोध शक्ति निर्माण करने वाले बीटी जन्नूक बोलगार्ड प्रोटीन को निकालकर उस बीटी जन्नूक को देशी कपास के गर्भाशय में रोपित किया जा रहा है।
इससे जो कपास के पौधों का बच्चा रुपी जो बीज पैदा हुआ,उसे जन्नूक रोपित बी टी बीज या बी टी कपास कहते हैं। यह सारा अप्राकृतिक अवैज्ञानिक अमानवीय जघन्य काम है।
खास बात ये है, इस प्रक्रिया को दोबारा देखने वाली समिति (ऑन जेनेटिक मॅनीपुलेशन) और जन्नूक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूव्हल कमिटी) की कड़ी निगरानी में सब हो रहा है। क्या ईश्वर निर्मित प्रकृति में इस तरह का कोई जघन्य अप्राकृतिक कार्य सही है? बिल्कुल नहीं है। ईश्वर निर्मित प्रकृति में किसी भी भूमि में होने वाले सूक्ष्म जीवाणु के शरीर में से कोई जीन को निकालकर उसे किसी पौधे के बीज में रोपण करने का कहीं भी अस्तित्व नहीं है। ये ईश्वर को खुली चुनौती है।
प्रकृति में हर पेड़ पौधा,जीव जंतु, प्राणी, पंछी या मानव में उसके सामने खड़ी हर गंभीर समस्या के साथ उससे मुकाबला यानी प्रति रक्षात्मक संघर्ष करने की शक्ति भी ईश्वर ने उसे दी है। गंभीर समस्याओं का सामना कर वो खुद युद्ध जीत जाता है और स्वयं का वंश और ज़्यादा सशक्त करके आगे बढ़ाता है।
इसी ईश्वरीय व्यवस्था से यह सजीव सृष्टि विकसित होती आ रही है, नई नई प्रजातियों का निर्माण होता आ रहा है। सजीव सृष्टि की जैवविविधता निरंतर बढ रही है। इस सृष्टि विकास के लिए ईश्वर ने किसी जन्नूक अभियांत्रिकी तकनीक का उपयोग नहीं किया। सुभाष पालेकर कृषि में हम इस ईश्वरीय व्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं। हम इन देशी बीजों पर पाश्चात्य विदेशी रेन्विक जैव वैज्ञानिकों के द्वारा कपास और सरसों के बीजों पर होने वाले इस तरह के जन्नूक अभियांत्रिकी द्वारा हो रहे खुले मानवी अवैज्ञानिक काम के कट्टर विरोध में है।
इस जन्नूक रोपन क्रिया से जन्मे जन्नूक रोपित बीटी बीजों रूपी बच्चों का क्या दोष है? उन जन्नूक रोपित बीटी बीजों के द्वारा खड़ी उनकी जन्नूक रोपित बीटी कपास की फसल या जन्नूक रोपित सरसों फसल का क्या दोष है? वे बीटी कपास की खड़ी फसल तो निष्कलंक निर्दोष हैं।
सुभाष पालेकर कृषि जन आंदोलन बीटी कपास या सरसों फसल के निर्दोष फसल को गोद लेकर उन्हें अपने दत्तक पुत्र के रूप में मानकर उन्हें जीवामृत, घन जीवामृत, आच्छादन, वाफसा और जैवविविधता से कृषि के सारे संस्कार करते हैं। इस तरह उन्हें सम्मान के साथ ईश्वर देय अधिकार उन्हें लौटाते हैं।
हम जो ये सारे संस्कार और सम्मान देशी बीजों से पैदा फसल को देते हैं, वही संस्कार और सम्मान खड़े बीटी कपास को भी देते हैं। उनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते हैं। बीटी कपास में होनेवाले कोई भी अमेरिकन गुलाबी सुंडी का आक्रमण या गंभीर बिमारियों के सारे दोष सुभाष पालेकर कृषि में खड़ी बीटी कपास फसल में आपको दिखाई नहीं देगी।
हमने सिद्ध किया है कि सुभाष पालेकर कृषि में देशी बीज, सीधे चयनित बीज, उन्नत बीज या संकर बीज की फसल खड़ी बीटी कपास की फसल से कई गुना अच्छी,स्वस्थ निरोगी है।
बीटी कपास के पौधों में अब बीटी जन्नूक बोलगार्ड प्रोटीन का विरोध हो रहा है। अमेरिकन गुलाबी सुंडी पर कीटनाशक दवाओं का असर नहीं हो रहा है क्योंकि इस अमेरिकन गुलाबी सुंडी ने अपने शरीर में इन जहरीले कीटनाशक दवाओं के विरोध में प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण कर किया है।
आज कपास का वैश्विक उत्पादन लगातार घट रहा है, वैश्विक मंडी में और भारतीय मंडी में भी कपास के दाम बढ रहें हैं। इस वास्तविकता को अब कृषि वैज्ञानिकों को भी स्वीकार करना चाहिए। इस वास्तविक स्थिति को नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने स्वीकार किया है।
मैंने एक भूखंड में देशी कपास के बीज बोये, दूसरे भूखंड में संकर और बीटी कपास के बीज बोये। दोनों फसलों को कुछ भी खाद यानी गोबर खाद, रासायनिक खाद, कंपोस्ट खाद, वर्मी कंपोस्ट खाद, खल्लियां पंचगव्य, बायोडायनैमिक खाद और अन्य खाद नहीं डाले, सिंचाई भी नहीं किया। किसी भी दवा का छिड़काव नहीं किया, उसे जीवामृत, घनजीवामृत भी नहीं दिया, कुछ भी नहीं डाला, सिर्फ बीज बोया, खरपतवारों का नियंत्रण गुड़ाई निराई से किया और हर दिन फसल का निरीक्षण किया।
मेरे द्वारा किए गए प्रयोग विधि के निष्कर्ष बताते हैं कि जिस देशी कपास में कोई भी खाद नहीं डाले थे, दवा का छिड़काव नहीं किया था और सिंचाई नहीं किया था वहाँ मुझे प्रति एकड़ तीन क्विंटल कपास की उपज मिली। लेकिन उसी समय जिस संकर और बीटी कपास को कोई भी खाद नहीं डाले थे, किसी भी दवाओं का छिड़काव नहीं किया था और सिंचाई नहीं किया था , उस में मुझे प्रति एकड़ सिर्फ दो क्विंटल कपास की उपज मिली। सत्य सामने है। संकर और बीटी कपास फसल की उपज देशी कपास फसल से एक तिहाई कम मिली, क्यों? अगर कृषि वैज्ञानिक दावा करते हैं कि संकर और बीटी कपास फसल की उपज देशी कपास से ज़्यादा मिलती है तो ऐसा क्यों नहीं हुआ।
इससे ये साबित होता है कि संकर बीज और बीटी कपास फसल में देशी कपास फसल से अधिक उत्पादन देने की आनुवंशिक क्षमता नहीं है। कृषि वैज्ञानिक झूठा दावा करते हैं।
लेकिन, दूसरे अनुसंधानात्मक प्रयोग में मुझे मालूम पड़ा कि जब मैंने देशी कपास फसल और संकर एवं बीटी कपास फसल को दोनों को समान मात्रा में रासायनिक खाद डालें और कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया, खरपतवार नाशक दवाओं का उपयोग किया,तब संकर और बीटी कपास फसल ने देशी कपास के फसल से ज़्यादा उत्पादन दिया । यानी जब रासायनिक खाद नहीं डाले तब बीटी कपास ने देशी कपास से कम उत्पादन दिया, और जब रासायनिक खाद डाले तब ज़्यादा उत्पादन दिया।
इसका अर्थ यह है कि देशी कपास की तुलना में संकर और बीटी कपास फसल के द्वारा मिली अधिक उपज वास्तव में यह उन संकर बीजों का या बीटी कपास बीजों के आनुवंशिक गुणधर्म का परिणाम नहीं है, यह परिणाम रासायनिक खाद का है, कीटनाशक दवाओं के छिड़काव का है।
संकर कपास और बीटी कपास का देशी कपास से ज़्यादा उत्पादन सिर्फ रासायनिक खाद डालने के बाद और कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करने से मिलता है।