आपने कोई वीडियो या ख़बर ऐसी ज़रूर देखी होगी, जहाँ आपको बताया गया होगा कि ड्रैगन फ्रूट की खेती कर आप भी लाखों कमा सकते हैं। ये बात सुनने और देखने में बहुत आकर्षक लग सकती हैं, लेकिन इसको सार्थक करना या कहें इस लाखों के आँकड़ों तक पहुँच पाना आसान नहीं होता। अगर इस एक्जॉटिक फ्रूट की खेती ध्यान से नहीं की गई तो आपको नुकसान भी झेलना पड़ सकता है। आज ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले दो किसानों से समझते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में क्या करें, कैसे करें और क्या न करें।
चलिए पहले जानते हैं क्या है ड्रैगन फ्रूट ..
ड्रैगन फ्रूट जिसे भारत में कमलम भी कहा जाता है, इसका पौधा एक तरीके का क्लाइम्बिंग कैक्टस होता है। दुनिया भर में ये पिताया के नाम से मशहूर है। इसका मूल निवास दक्षिण मेक्सिको, सेंट्रल अमेरिका और दक्षिण अमेरिका है। ये पूरी दुनिया में न सिर्फ अपने रंग और बनावट की वजह से मशहूर है, बल्कि इसके अनेकों स्वास्थ्य लाभ भी हैं।
भारत में, ड्रैगन फ्रूट का आयात 2017 में 327 टन के साथ शुरू हुआ था, जो 2019 में 9,162 टन तक तेजी से बढ़ गया और 2020 और 2021 के लिए अनुमानित आयात लगभग 11,916 और 15,491 टन है। ड्रैगन फ्रूट की खेती के पहले साल में आर्थिक उत्पादन के साथ बहुत तेज़ प्रॉफिट देता है और पूरी तरह से बढ़िया उत्पादन तीन-चार साल में होता है। पौधों की उम्र लगभग 20 वर्ष होती है।
पौधों को लगाने के दो साल के बाद औसत आर्थिक उत्पादकता एक एकड़ में 10 टन है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक रिसर्च के अनुसार ड्रैगन फ्रूट की खेती में ज़्यादा पानी की ज़रुरत नहीं होती और इसे सूखी ज़मीन में भी उगाया जा सकता है।
किसान से समझते हैं ड्रैगन फ्रूट की खेती का गणित
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के मोहम्मदपुर गाँव में दूर-दूर से किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती देखने आते हैं। यहाँ पर पिछले पाँच वर्षों से ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसान गया प्रसाद बताते हैं, “ड्रैगन फ्रूट में बीमारी के नाम पर सिर्फ फंगस है, जिससे आपको फलों को बचाना पड़ता है। क्योंकि एक बार फल में फंगस लग गया, तो वो फल को पहले पीला कर देगा। उसके बाद उसके अंदर के गूदे को भी सड़ा देता। ये बीमारी विशेष रूप से जड़ों में आती है या फिर तब आती है जब बहुत ज़्यादा गर्मी हो यानि की तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार पहुँच जाए।”
अब बीमारी की जानकारी देने के बाद गया प्रसाद ने इसका जैविक उपाय भी बताया जिसका उन्होंने सफल प्रयोग खुद की फसल पर भी किया है। उनके मुताबिक देसी गाय का दही लीजिए, उसमे कॉपर यानि ताम्बे के तार को कम से कम बीस दिन रख दीजिए। इसे ज़्यादा दिन रखे तो और भी बढ़िया है। लेकिन कम से कम 20 दिन तो तार को दही में रखे। 250 मिली दही को 15 लीटर पानी में मिलाकर इसका खेत में छिड़काव करें; ऐसा करने पर आपको फंगस से निजात मिल पाएगी। गया प्रसाद गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “जब बहुत अधिक फंगस लग जाये तो उस पत्ते या डाली को काट के अलग कर देना चाहिए।”
गया प्रसाद नए किसान जो ड्रैगन फ्रूट की खेती करना चाहते हैं उनको एक सलाह देते हैं कि अच्छी उपज के लिए किसानों को करीब दो साल का इंतज़ार करना पड़ सकता है, लेकिन तीसरे चौथे साल से इसकी उपज बढ़िया होने लगती है। गया प्रसाद गाँव कनेक्शन से बताते है, “जब तक पौधे का विकास बढ़िया से नहीं होगी तब तक कैसे अच्छी उपज मिलेगी, तीन से चार साल में पौधा बढ़िया से तैयार हो जाता है।”
ड्रैगन फ्रूट कि खेती के लिए सबसे अच्छा तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस तक माना जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में गर्मियों में अक्सर तापमान काफी बढ़ जाता है। ऐसे में किसान अपनी ड्रैगन फ्रूट की फसल को कैसे बचाए इसके जवाब में गया प्रसाद कहते हैं, “गर्मी से बचाव के लिए या तो किसान नेट लगाए तो इससे तापमान से फलों को बचाया जा सकता है; लेकिन उसमें खर्च ज़्यादा होता है। इसलिए चाहे तो दस से पाँच मिनट के लिए पेड़ों पर पानी का छिड़काव भी एक उपाय है, इससे तापमान कम हो जाएगा।”
गया प्रसाद ने बताया कि लखनऊ में उनका माल 250 से 300 रूपए प्रति किलो तक बिक जाता है। किसानों से ये फ्रूट किलो के भाव से खरीदा जाता है जबकि मार्कट में ये प्रति नग के हिसाब से बिकता है। एक किलो में लगभग कितने फल आते हैं इस सवाल पर गया प्रसाद कहते हैं, “कभी-कभी एक किलो में पाँच फल भी चढ़ते हैं और कभी कभार दो फल भी नहीं चढ़ पाते हैं। क्योंकि सर्दियों में नवंबर और दिसंबर में जो फल निकलता हैं वो 500 से 800 ग्राम का होता है; क्योंकि सर्दियों में इन फलों का वजन बढ़ जाता है। वहीं गर्मियों में इनका वजन कम होता है।”
इसके फल चक्र के बारे में समझाते हुए गया प्रसाद कहते है, “20 अप्रैल के बाद जब भी बारिश हो जाए तो इसकी शुरुआत हो जाती है। फिर जो कली निकलती है, वो उसे 40 से 50 दिन के अंदर-अंदर उसे पक जाना है। गर्मियों में ये फल 40 दिन में ही पक जाता है, जबकि अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में इसे 55 से 60 दिन भी लग जाते हैं।”
इस फसल की हार्वेस्टिंग के बारे में गया प्रसाद बताते हैं कि जून से दिसंबर तक करीब दस बार इस फसल कि हार्वेस्टिंग हो जाती है। एक साल में एक एकड़ में करीब 50 से 60 कुंटल तक इसका प्रोडक्शन किया जा सकता है।
वो आगे कहते हैं, “इसकी खेती के लिए सबसे ज़रूरी बात ये है कि इसकी खेती उसी ज़मीन पर करनी चाहिए जहाँ ‘जल भराव’ न हो और अगर मान लीजिए कोई ऐसी मिट्टी हो जहाँ पानी रिचार्ज न होता है; तो वहाँ 2×2 का गड्ढ़ा खोदा जाता है, जिसके बाद उसमें कुछ मिट्टी हो कुछ बालू हो, वर्मीकम्पोस्ट, गाय का गोबर उसमे भरा जाता है।”
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले से 1016 किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के जवाली में 26 साल के आशीष ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं। किसान आशीष राणा कहते हैं, “टीवी या फिर यूट्यूब पर जितना लोग दिखाते हैं, उतना होता नहीं है बस वो सुनने और देखने में ही अच्छा लगता है।”
आशीष आगे बताते हैं, “मुझे तो बड़ी दिक्क्त आयी थी, जब मैंने इसकी खेती कि शुरुआत की थी, क्योंकि आज से करीब दो से तीन साल पहले तक हिमाचल में तो ड्रैगन फ्रूट था ही नहीं; बस पंजाब से यहाँ ड्रैगन फ्रूट आया करता था। जब मैं पंजाब के किसानों से ही पूछता रहता था तो वहीं एक फ्रेंड सर्किल बन गया। तो पहली बार मैंने प्लांट्स पंजाब से ही लिए थे। फिर डिपार्टमेंट को पता लग गया की कोई नई चीज़ लगायी है तो साइंटिस्ट भी खेत पर आना शुरू हो गए।”
अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए आशीष राणा कहते हैं कि कैसे सर्दियों के मौसम में उनके प्लांट्स फंगस की वजह से ख़राब हो गए थे। उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट में सिर्फ एक ही बीमारी होती है और वो है फंगस दूसरी कोई बीमारी इसमें नहीं लगती।
इस बीमारी को रोकने के लिए आपने क्या किया इस सवाल के जवाब पर आशीष ने गाँव कनेक्शन से बताया, “जैसे अभी का जो मौसम है, तो रात में कोहरा पड़ेगा, तो हम राख का इस्तेमाल करते थे, जिसके कारण एक परत सी बन जाती है। इससे कोहरा डायरेक्ट असर नहीं कर पाता है। बाकी हम अपने फ़र्टिलाइज़र जैसे घनजीवामृत को गर्मियों में ही तैयार करके बोरी में भर लेते है। तो खेत में जब भी पानी का छिड़काव होता है तो उसमे घनजीवाम अमृत ज़रूर मिलाते हैं।”
आशीष किसानों को एक सलाह देते हैं जो गलती उन्होंने की थी नहीं चाहते कि कोई भी किसान इस गलती को दोबारा दोहराए, वो है प्लांटेशन का सही समय। वो कहते हैं, “जैसे हमारा नॉर्थ जोन है और यहाँ ठण्ड होती है, तो अक्टूबर नवंबर के बाद आप प्लांटेशन करेंगे तो आपको कोहरे की मार पड़ेगी। छोटे प्लांट्स का मतलब है वो अभी छोटे शिशु जैसे हैं, हम जितना तापमान सह सकते हैं उतना बेबी नहीं सह सकते। तो जो परिपक्व पौधे होते हैं उनकी आपेक्षा नए प्लांट्स में फंगस लगने के ज़्यादा आसार होते है। तो हमारे नार्थ जोन का प्लांटेशन का सही समय मार्च से अप्रैल में रखना चाहिए।”
आशीष शुरुआत से ही नेचुरल फार्मिंग ही करते आ रहे हैं और फ़सल चक्र के बारे में वो बताते हैं, “फूल आने कि 30 से 35 दिन बाद फल तैयार हो जाता है और बरसात के बाद यही समय और कम हो जाता है।”
बरसात के बाद प्रोडक्शन क्यों ज़्यादा होती है इस सवाल पर आशीष गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “जून से पहले एक बरसात होती है, जिसे हम यहाँ की लोकल भाषा में पहाड़ी बत्तर कहते हैं, ये मानसून आने से एक महीना पहले होती है। तो वो जो पहली बारिश होती है उससे नमी बढ़ती है। ज़मीन से तामस निकलती है, क्योंकि बारिश से पहले ज़मीन गरम होती है। तो मानसून के दिनों में प्रोडक्शन ज्यादा होती है, क्योंकि एक दिन बारिश हुई फिर धूप निकली इससे नमी बनी रहती है और जितनी ज़्यादा नमी उतना अच्छा प्रोडक्शन।”
“मुझे मेरी पहली खेप जून में मिल जाती है और अगर उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में देखा जाए तो वहाँ अप्रैल लास्ट में फूल निकलने लगते होंगे और मई लास्ट में उनका पहला हार्वेस्ट मिल जाता होगा, “आशीष ने आगे कहा।
ड्रैगन फ्रूट की खेती में इन बातों का भी रखें ध्यान
इसकी खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए; ताकि मिट्टी में वायु रिक्तियाँ या कहें हवा पास होती रहे।
खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसका पौधा कैक्टस की तरह ही होता है। इसे ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती बस नमी चाहिए होती है।
प्लांटेशन के लिए सही समय का चुनाव करें, बहुत ज़्यादा सर्दी या बहुत ज़्यादा गर्मी नहीं होनी चाहिए।
सही समय पर कटाई की जानी चाहिए।
बीमारी के नाम पर ड्रैगन फ्रूट में फंगस का खतरा रहता है।
तापमान ज़्यादा कम या बहुत अधिक गर्म नहीं होना चाहिए।
नमी ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए वरदान का काम करती है।