एक किसान अपने पौने दो एकड़ नीबू के बगीचे की लागत से परेशान था, सिर्फ इनकी लागत ही लाखों रुपए में पहुंच जाती थी। अभिषेक जैन ने इस बढ़ी लागत को कम करने के लिए बाजार से रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाएं लेनी बंद कर दी। पिछले तीन साल से जैविक तरीका अपनाने से इनकी हजारों रुपए की लागत कम हो गयी है। लागत कम होने से ये नीबू के बगीचे से बाजार भाव के हिसाब से सालाना पांच से छह लाख रुपए बचा लेते हैं।
राजस्थान के भीलवाड़ा जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर संग्रामपुर गाँव के अभिषेक जैन (34 वर्ष) बीकॉम करने के बाद मार्बल के बिजनेस से जुड़ गये। अभिषेक जैन गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “पिता के देहांत के बाद बिजनेस छोड़कर पुश्तैनी जमीन को सम्भालना पड़ा। खेती करने के दो तीन साल बाद मैंने ये अनुभव किया कि एक तिहाई खर्चा सिर्फ खाद और दवाइयों में निकल जाता है। इस बढ़ती लागत को कम करने के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया था।”
वो आगे बताते हैं, “लागत कम करने के लिए तीन साल पहले साकेत ग्रुप के बारे में पता चला, जो जैविक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षण देता है। इस ग्रुप से जुड़ने के बाद अब हम पूरी तरह से नीबू के बगीचे को जैविक ढंग से कर रहे हैं, इससे जो लागत पहले 33 प्रतिशत आती थी अब वो 10 प्रतिशत पर आ गयी है।”
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अभिषेक को खेती करने का पहले कोई अनुभव नहीं था। इनकी कुल छह एकड़ सिंचित जमीन है, पौने दो एकड़ जमीन में नीबू की बागवानी और लगभग तीन एकड़ में अमरुद की बागवानी इनके पिता पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं। साल 2007 में इनके पिता का हार्ट अटैक से देहांत हो गया। पुश्तैनी जमीन को करने के लिए इन्होंने अपने बिजनेस को बंद किया और 2008 से खेती करने लगे। अभिषेक बताते हैं, “खेती को लेकर पहले मेरा कोई अनुभव नहीं था, पर जब खेती करना शुरू किया तो धीरे-धीरे चीजों को सीखने लगा। हमारे यहाँ नीबू का बगीचा हमेशा से पिता जी खुद करते थे, अमरुद और बाकी की फसलें बटाई पर उठा दी जाती थी।”
वो आगे बताते हैं, “नीबू की बागवानी से हर साल सात आठ लाख रुपए की आमदनी हो जाती थी लेकिन लागत भी डेढ़ से पौने दो लाख आती थी। इस लागत में सबसे ज्यादा पैसा रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाइयों में खर्च हो रहा था। इस लागत को कम करने के लिए जब मैंने बहुत रिसर्च किया तो सोशल साइट के जरिये साकेत पेज पर पहुंचे, जहाँ किसानो को लागत कम करने के तौर तरीके सिखाए जाते थे।”
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एक बार नीबू का बगीचा लगाने पर 30 साल तक रहता है जबकि अमरुद का बगीचा 25 साल तक रहता है। अभिषेक के पौने दो एकड़ खेत में नीबू के लगभग 240 पौधे 15 साल पहले से लगे हैं। यदि कोई नीबू का नया बगीचा लगाना चाहे तो देसी कागजी नीबू की वैराइटी का एक पौधा नर्सरी से लगभग २५ रुपए में मिल जाता है। नीबू के पौधे लगाने के तीन या साढ़े तीन साल बाद से फल निकलने शुरू हो जाते हैं। दो साल तक इसमे कोई भी फसल ले सकते हैं।
नीबू का पौधा लगाने के तीन साल बाद फल देना शुरू हो जाता है लेकिन एक नीबू 100 किलो फल पांच साल बाद देना शुरू करता है। ये नीबू के बगीचे में जैविक खाद का ही प्रयोग करते हैं। नीबू बेचने के लिए पहले तो ये मंडी जाते थे लेकिन अब व्यापारी इनके बगीचे से ही नीबू ले जाते हैं।
अभिषेक बताते हैं, “नीबू के बगीचे में अगर रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाएं न डालनी पड़ें तो इसमे ज्यादा खर्चा नहीं होता है। जैविक खाद जैसे- भेड़-बकरी की मींगनी (लेंड्डी), बायो गैस की स्लरी, गोबर की खाद का ही प्रयोग करें तो सिर्फ मजदूर खर्च ही आता है, बाकी की लागत बच जाती है। जैविक खाद के अलावा एक पौधे की देखरेख में एक साल में 150 रुपए का खर्चा आता है।”
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वैसे तो नीबू की पैदावार सालभर होती रहती है। लेकिन सबसे ज्यादा नीबू जुलाई से अक्टूबर में निकलता है। अभिषेक का कहना है, “एक पौधे से एक साल में बाजार भाव के हिसाब से औसतन तीन हजार का प्रोडक्शन निकल आता है, नीबू बाजार भाव के अनुसार 20 रुपए से लेकर 150 रुपए किलो तक रहता है। वर्ष 2017 में आठ लाख रुपए का नीबू बेचा था, वर्ष 2018 में साढ़े छह लाख और वर्ष 2019 में दस लाख रुपए का बेचा है।”
वो आगे बताते हैं, “अमरुद के लगभग तीन एकड़ बगीचे से सालाना पांच लाख रुपए निकल आते हैं। नीबू और अमरुद के बगीचे से लागत निकाल कर हर साल 10 से 12 लाख रुपए बच जाते हैं। बगीचे के अलावा मक्का, ज्वार, उड़द, मूंगफली, गेहूँ, जौ, चना सरसों उगाते हैं। सब्जियों में मिर्च, भिन्डी, ग्वारफली, बैंगन, टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी बोई जाती हैं।”
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एक एकड़ खेत में नीबू का बगीचा लगाने का ये है तरीका
नीबू के पौधे लगाने का सही समय बरसात में जुलाई से अगस्त महीने में होता है। जब भी नर्सरी लें इस बात का ध्यान रखें वो नर्सरी बीज से बोई हुई हो जिससे पौधे का जीवनकाल लम्बा होता है। अभिषेक जैन देसी कागजी नीबू की वैराइटी लगाते हैं।
एक एकड़ में 140 पौधे लगाएं। पौध से पौध की दूरी 18 बाई 18 फिट होनी चाहिए। अगर पौध लगाने वाला गड्ढा डेढ़ बाई डेढ़ का गर्मियों में खोदकर डाल दिया है तो अच्छा है नहीं तो पौध लगाने के समय भी गड्ढा खोद सकते हैं। पौधा लगाते समय गोबर की कम्पोस्ट खाद का उपयोग करें। पौधा लगाने के बाद जो पानी देते हैं उसके लिए 200 लीटर पानी में एक एकड़ के लिए दो किलो ट्राईकोडरमा दो किलो स्यूडोमोनास का उपयोग करें।
साल में दो बार दो किलो ट्राईकोडरमा दो किलो स्यूडोमोनास का पानी के साथ छिड़काव करें। वर्ष में एक बार सितम्बर लास्ट या अक्टूबर माह में गड्ढा की खुदाई करके कम्पोस्ट खाद डालें। ये खाद भेड़-बकरी की मीगनी, बायो गैस की स्लरी या गोबर की कम्पोस्ट कुछ भी हो सकती है। हर दो महीने में चूना, नीला थोथा का छिड़काव करें जिससे नीबू में लगने वाले कैंकर रोग से बचाव हो सके। जमीन से पौधे की एक फुट उंचाई तक नीला थोथा, अलसी का तेल, चूना मिलाकर पेंट कर दें जिससे फंगस और अन्य बीमारियाँ नहीं लगेंगी।
अभिषेक सभी किसानो को ये सन्देश देते हैं, “अगर खेती में मुनाफा कमाना है तो बाजार पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा। जैविक खादें और कीटनाशक दवाइयां घर पर बनानी होंगी, पुराने बीजों को बचा कर रखना होगा। तभी एक आम किसान की लागत कम होगी और बचत ज्यादा होगी। पिछले तीन साल में सिर्फ जैविक तौर तरीके अपनाकर हमने अपनी लाखों रुपए की लागत कम कर ली है, जबकि नीबू के उत्पादन में कोई असर नहीं पड़ा।” अभिषेक धीरे-धीरे अपनी पूरी खेती को जैविक तरीके से करने लगे हैं क्योंकि इसमे इनकी लागत बहुत कम हो रही है।
इस खबर के बारे में अधिक जानकारी के लिए अभिषेक जैन के व्हाट्सऐप नम्बर पर संपर्क कर सकते हैं. मोबाइल नम्बर-9982798700
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