केले की ये किस्म भरेगी किसानों की जेब

केले की खेती

सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्राद्योगिकी विश्वविद्यालय में केले की जी-9 प्रजाति के लाखों पौधे तैयार किए जा रहे हैं। जैव कृषि प्रोद्योगिकी विभाग में इसका फिल्ड ट्रायल पूरी तरह सफल रहा है। यदि आधुनिक विधि द्वारा इसकी खेती की जाए, तो किसान इससे मालामाल हो सकते हैं।

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ऊतक संवर्द्धन विधि से तैयार यह प्रजाति लगभग रोग प्रतिरोधी है। किसान इसकी अधिक जानकारी के लिए विवि के कृषि विज्ञान केन्द्रों से संपर्क कर सकते हैं, साथ ही विवि द्वारा भी किसानों मेले व गोष्ठियों के माध्यम से जागरूक किया जाएगा।

इस प्रजाति पर सफल प्रयोग जैव प्रोद्योगिकी विभाग अध्यक्ष प्रो, आरएस सेंगर और उनकी टीम ने किया है। टीम में साइंटिस्ट रेशू चौधरी, रिसर्च स्कॉलर अंकिता त्रिवेदी शामिल हैं। प्रो. सेंगर बताते हैं कि ऊतक संवर्द्धन विधि से प्रयोगशाला में पौधे तैयार किए जाते हैं। इनमें पूरी तरह से रोग रहित पौधों को अलग कर लिया जाता है। फिर इन्हीं पौधों से लाखों पौधे तैयार कर खेतों में लगाने के लिए भेज दिए जाते हैं।

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कम पानी में ही उत्तम होती है फसल

वो आगे बताते हैं कि इस प्रजाति की खेती के लिए कम पानी की जरूरत होती है। क्वालिटी की दृष्टि से इसका स्वाद अन्य प्रजातियों से अच्छा होता है। इसके साथ ही इसके अंदर पाए जाने वाले पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में हैं। जी-9 के पौधों को 5 बाई 6 फिट की दूरी पर लगाया जाता है। इस प्रजाति से प्रति एकड़ 43 हजार 500 किग्रा केले का उत्पादन लिया जा सकता है। इसके अलावा इसे दो लाइनों में लगाया जाए तो 55 हजार किग्रा तक प्रति एकड़ के हिसाब से उत्पादन भी हो जाता है। विवि ने इसी उद्वेष्य से पौध तैयार की है कि वेस्ट यूपी के किसानों में संपन्नता आए।

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क्या है ऊतक संवर्द्धन

ऊतक संवर्द्धन के लिए सबसे पहले किसी पौधे से नोड्स और इंटरनोड्स लिए जाते हैं, इसके बाद उन्हे कृत्रिम संवद्र्वन मीडिया में रखा जाता है। इसके बाद आवश्यक पर्यावरण, पोषक तत्व एवं प्रकाश उपलब्ध कराया जाता है। इस अवस्था में कोशिकाएं मल्टीप्लाई होकर ऊतकों का निर्माण करती हैं। यही ऊतक कुछ दिनों में पौधों में परिवर्तित हो जाते हैं। इनमें से रोग रहित पौधों का चुनाव कर अलग कर लिया जाता है।

ऊतक संवर्द्धन के क्षेत्र में जैव विभाग का प्रयास सराहनीय है। देश में खाद्यान की जरूरतों को देखते हुए शोध को और विस्तार देने की जरूरत है।

डॉ. गया प्रसाद, कुलपति कृषि विश्वविद्यालय

सर्दियों में पाले से बचाव जरूरी

इस प्रजाति को सर्दियों के मौसम में पाले से बचाव बहुत जरूरी होता है। बचाव के लिए खेत की सिंचाई करनी चाहिए, इसके अलावा खेत में धुंआ कर फसल को बचाया जा सकता है। वेस्ट यूपी में केले की खेती मवाना के आस-पास तेतावी, मुज्जफरनगर, मोहम्मदपुर, मुरादनगर इलाके में हो रही है। विवि की कोशिश है कि अन्य इलाकों में भी खेती का रकबा बढाया जाए।

भारत में केला उत्पादन

2016-17

88 लाख हेक्टेयर है क्षेत्रफल

30 करोड़ टन है उत्पादन

34 टन प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए उत्पादकता

उत्तर प्रदेश का हाल

42 लाख हेक्टेयर के करीब है क्षेत्रफल

20 करोड़ टन है उत्पादन

47 टन प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए उत्पादकता

चलेगा जागरूकता अभियान

प्रो, सेंगर बताते हैं कि वैसे किसी भी समय क्षेत्रीय किसान उनके ऑफिस में आकर जानकारी कर सकता है। इसके अलावा विवि से जुड़े कृषि विज्ञान केन्द्रों पर भी सभी जानकारी उपलब्ध है। साथ ही जी-9 के पौधों का वितरण भी किया जाएगा। इसके अलावा मेले व किसान गोष्ठियों के माध्यम से भी किसानों को जागरूक किया जाएगा।

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शोध को विस्तार देने की जरूरत

कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गया प्रसाद कहते हैं, “ऊतक संवर्द्धन के क्षेत्र में जैव विभाग का प्रयास सराहनीय है। देश में खाद्यान की जरूरतों को देखते हुए शोध को और विस्तार देने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में नए-नए शोधों से हमने खाद्य सुरक्षा प्राप्त कर ली है। साथ ही पोषण और सुरक्षा की दिशा में अग्रसर हैं। इस उपाधि की श्रेय हमारे कृषि वैज्ञानिक और किसानों को जाता है।”

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