बिना पॉलीहाउस के शिमला मिर्च की खेती से नोट कमा रहा यूपी का ये युवा किसान

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खेती से यदि अच्छी आमदनी लेनी है तो पारम्परिक खेती के साथ आपको व्यावसायिक खेती भी अपनानी होगी, ये बात 35 साल के पंकज वर्मा भलीभांति समझ चुके हैं। वो सब्जियों की खेती करते हैं और धान-गेहूं की अपेक्षा कई गुना ज्यादा कमाते हैं। पंकज शिमला मिर्च, टमाटर और खीरे की खेती से सालाना कई लाख रुपए कमाते हैं, वो भी काफी कम लागत लगा कर।

पंकज की माने तो वो एक एकड़ में अगर शिमला मिर्च की खेती करते हैं तो 40 से 50 हजार रुपए की लागत आती है, अगर इसका थोक रेट 35-40 रुपए प्रतिकिलो का रेट मिल जाए तो 4-5 लाख मिल जाएंगे।

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पंकज की माने तो वो एक एकड़ में अगर शिमला मिर्च की खेती करते हैं तो 40 से 50 हजार रुपए की लागत आती है, अगर इसका थोक रेट 35-40 रुपए प्रतिकिलो का रेट मिल जाए तो 4-5 लाख मिल जाएंगे। पंकज पूरा गणित लगाने के बाद कहते हैं, “सारा खर्च निकाल दिया जाए तो भी 3 से 4 लाख रुपए बच ही जाएंगे।’ पंकज की खेती का खर्च कम इसलिए भी हैं क्योंकि वो बिना पॉलीहाउस के शिमला मिर्च की खेती करते हैं। जबकि माना जाता है कि अगर अच्छी शिमला मिर्च चाहिए तो पॉलीहाउस जरुरी है लेकिन पंकज ने इस सोच को तोड़ दिया है।

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शिमला मिर्च के अलावा टमाटर की खेती करता हूं। लागत कम करने के लिए ड्रिप और मल्चिंग कराई है। मुझे प्रति एकड़ 3-4 लाख रुपए मिलते हैं। 

पंकज वर्मा, किसान

उत्तर प्रदेश में बाराबांकी जिले के निवासी पंकज शुरु से न इतनी कमाई करते थे और न ही उनके लिए राह आसान थी। पंकज के परिवार के पास दो एकड़ जमीन है, परिवार के लोग पारंपरिक रुप से खेती करते थे, घर की जरुरतों के लिए हमेशा किल्लत रहती थी। लेकिन स्नातक करने के बाद पंकज ने जब खेती पर ध्यान देना शुरु किया तो सबसे पहला काम उन्होंने जो किया वो था, नई तकनीकि को समझना। कुछ जागरुक किसानों की मदद से पंकज ने सब्जियों की खेती शुरु की और अब वो खुद उनके खेत पर कई किसान खेती की तकनीकी सीखने आते हैं।

पंकज बताते हैं, “खेती से पैसे कमाने हैं तो उसकी लागत कम करनी होगी। सब्जियों की खेती में सबसे ज्यादा लागत सिंचाई और निराई-गुड़ाई में आती है। सिंचाई का पैसा बचाने के लिए हमने ड्रिप (बूंद-बूंद सिंचाई) लगवाई तो निराई में मजदूरी का पैसा बचाने के लिए मल्चिंग शुरु की। एक बार पैसा जरुर लगता है लेकिन फिर कोई झंझट नहीं रहता।’

पंकज वर्मा अपनी खेती में तीसरा काम जो करते हैं वो है समय पर बुआई-रोपाई और पौधों को खाद-पानी देना। पंकज सितंबर में शिमला मिर्च लगाते हैं जनवरी तक फसल लेते हैं।

सब्जियों की खेती को माना जाता है नगदी फसल लेकिन, रेट से मात खा जाते हैं कई बार किसान। (फाइल फोटो गांव कनेक्शऩ)

उत्तर प्रदेश में बाराबंकी से पश्चिम 6 किलोमीटर दूर सफीपुर गांव पंकज की व्यवसायिक खेती के लिए भी जाना जाने लगा है। इस समय उनके खेत में शिमला मिर्च और टमाटर लगा है। पंकज अपनी उपज अब सीखे लखनऊ की मंडियों में भेजते हैं। पंकज की माने तो भले ही पॉलीहाउस नहीं है लेकिन मेरी शिमला मिर्च की गुणवत्ता इतनी अच्छी है कि मंडी में हाथोहाथ माल बिक जाता है।

पंकज के जिले बाराबंकी समेत पूरे उत्तर प्रदेश में सब्जियों की खेती का रकबा तेजी से बढ़ा है। जिले के उद्यान अधिकारी जयकरण सिंह बताते हैं, “प्रदेश में सबसे ज्यादा पॉलीहाउस बाराबंकी में हैं। इसके साथ बहुत से किसान सब्जियों और फूलों की खेती सामान्य तरीकों से करते हैं, विभाग उन्हें हर संभव मदद करता है।’ माना जा रहा है केंद्र सरकार के ऑपरेशन ग्रीन के बाद ऐसे किसानों की आमदनी और बढ़ेगी।

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