आम के बाग में गुम्मा रोग व स्केल कीट का प्रकोप, समय से प्रबंधन न करने पर घट सकता उत्पादन

आम के बाग

फरवरी महीने के आखिरी सप्ताह तक आम में बौर आने शुरु हो जाते हैं, लेकिन दिसंबर-जनवरी में लगने वाले स्केल कीट व गुम्मा रोग का सही समय पर नियंत्रण न करने पर आम की उत्पादकता पर असर पड़ सकता है।

क्षेत्रीय केंद्रीय एकीकृत नाशीजीवी प्रबंधन केंद्र, लखनऊ के तकनीकी विशेषज्ञों ले प्रतापगढ़ ज़िले के कुंडा ब्लॉक के मानिकपुर क्षेत्र के कुशाहिल और मिरिया गाँव में आम के बाग में स्केल कीट का भयंकर प्रकोप पाया।

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इस कीट के लार्वा और वयस्क पत्तियों व टहनियों का रस चूसते हैं, तीव्र प्रकोप की दशा में प्ररोह और बौर सूख जाते हैं और प्रारंभिक अवस्था में फल भी सूख कर झड़ जाते हैं इन कीटों के प्रभाव से फफूंद का प्रकोप बढ़ जाता है।

विशेषज्ञों अनुसार क्षेत्र के लगभग 60 बीघा आम के बाग में में इस कीट से ग्रसित हैं, इस कीट का सही समय पर नियंत्रण नहीं किया गया तो बौर आने की समस्या और आम उत्पादन में भारी कमी आ सकती है।

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सर्वे टीम के समन्यवक डॉ. टी एस उस्मानी सयुंक्त निदेशक ने आई पी एम संस्थान के वनस्पति संरक्षण तकनीकी अधिकारियों समेत क्षेत्र का भ्रमण किया गया और किसानों को स्केल कीट जे प्रकोप के नियंत्रण के बारे में जानकारी दी गई।

स्केल कीट के प्रबंधन के लिए डाईमेथेओएट 0.5 मिली/लीटर पानी एवं स्टीकर के साथ मिलाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। सर्वे टीम के सहायक फसल सुरक्षा अधिकारी डीके सिंह और वैज्ञानिक सहायक राजीव कुमार ने किसानों को कीट प्रबंधन के उपाय बताएं।

इस समय आम में गुम्मा का प्रकोप बढ़ जाता है, जिससे सही तरह से बोर विकसित नहीं हो पाते हैं एक ही टहनी पर पत्तियों का गुच्छ तैयार हो जाता है, यह संभवतः हार्मोन डिस बैलेंस और कुछ हद तक फ्यूजेरियम स्पीशीज जिम्मेदार है।

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आम की फसल में बौर आने से पहले दिए गए। बताए गए विधि से उपचार करने से इस रोग से बचा जा सकता है। इस बीमारी का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है।

डॉ. उस्मानी बताते हैं, “बीमारी का नियंत्रण प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़कर किया जा सकता है। अक्तूबर माह में 200 प्रति दस लक्षांश वाले नेप्थालिन एसिटिक एसिड का छिड़काव करना और कलियां आने की अवस्था में जनवरी के महीने में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है, क्योंकि इससे न केवल आम की उपज बढ़ जाती है बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है।

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