सुपर फूड बनते मोटे अनाजों को थाली और खेत में वापस लाने की जरूरत

भारत के 21 राज्यों में मोटे अनाज की खेती की जाती है। प्रत्येक राज्य के अपने किस्म के मोटे अनाज हैं जो न सिर्फ उनकी खाद्य संस्कृति का हिस्सा हैं बल्कि उनके धार्मिक अनुष्ठानों का भी भाग हैं। भारत प्रति वर्ष 1.4 करोड़ टन बाजरा की पैदावार करता है। इतना ही नहीं भारत दुनियां का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक देश भी है।
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भारत दुनिया का सबसे बड़ा मिलेट (मोटे अनाज) उत्पादक देश है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, झारखण्ड, तमिलनाडु, और तेलगांना आदि प्रमुख मोटे अनाज उत्पादक राज्य हैं। जबकि आसाम और बिहार में सबसे ज्यादा मोटे अनाजों की खपत होती है।

देश में पैदा की जाने वाली मुख्य मिलेट फसलों में ज्वार, बाजरा और रागी का स्थान आता है। छोटी मिलेट फसलों में कोदों, कुटकी, सवां आदि की खेती की जाती है। जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से भी ये फसलें अत्यंत उपयोगी हैं जो कि सूखा सहनशील, अधिक तापमान, कम पानी की दशा में और कम उपजाऊ जमीन में भी आसानी से पैदा कर इनसे अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। इसलिए इनको भविष्य की फसलें और सुपर फूड तक कहा जा रहा है।

पांरपरिक भारतीय अनाजों में स्वास्थ्य का खजाना छुपा है। ज्वार, बाजरा, रागी, कोदों और कुटकी जैसी पुरातन पांरपरिक फसलों को सुपर फूड कहा जाने लगा है। बीते कुछ सालों में कई ऐसी फसलें खेतों में और ऐसा खाना थाली में लौट आया है। जिन्हें कुछ वक्त पहले तक बिल्कुल भुला दिया गया था। मोटे अनाजों को खेेत में और थाली में वापस लाने के लिए और इस पर लगे भूली हुई फसल के टैग को हटाने के लिए ठोस वैश्विक प्रयास की जरूरत है। साल 2018 को भारत में ‘ईयर ऑफ मिलेट्स’ के रूप में मनाया गया था। भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस दरम्यांन लोगों को मोटे अनाजों के प्रयोग से होने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में जागरूक किया जायेगा।

साथ ही इनकी खेती की उपयोगिता के बारे में किसानों को भी बताया जायेगा। मोटे अनाज कम उपजाऊ मिट्टी में भी अच्छी उपज दे सकते हैं और तुलनात्मक रूप से इनकों कीटनाशकों की उतनी जरूरत नहीं होती है। मोटे अनाज तेजी से चलन में लौट रहे हैं उन्हें सुपर फूड के तौर पर पहचाना जा रहा है। क्योंकि वह धरती के लिए, किसानों के लिए और हमारी और आपकी सेहत के लिए अच्छे हैं। मोटे अनाजों को अधिक पानी-सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। यह अधिक तापमान में भी आसानी से पैदा किये जा सकते हैं। यह फसलें किसानों के लिए अच्छी हैं, क्योंकि उनकी खेती करना दूसरी फसलों की तुलना में आसान है। यह कीट पंतगों से होने वाले रोगों से भी बचे रहते हैं।

दुनिया में सबसे ज्यादा मिलेट उत्पादन करने वालों में भारत, नाइजीरिया और चीन प्रमुख देश हैं। जो कि दुनियां का 55 फीसदी उत्पादन करते हैं जिसमें भारत कई सालों से दुनियां का मुख्य मिलेट उत्पादक देश है। देश में राजस्थान सबसे ज्यादा बाजरा पैदा करने वाला राज्य है जहां 7 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती की जाती है। मध्य प्रदेश में छोटे मोटे अनाज की सबसे ज्यादा क्षेत्रफल में खेती की जाती है। जिसमें मध्य प्रदेश 32.4, छत्तीसगढ़ 19.5, उत्तराखण्ड 8, महाराष्ट्र 7.8, गुजरात 5.3 और तमिलनाडु 3.9 फीसदी क्षेत्रफल में छोटी मिलेट फसलों की खेती की जाती है। देश में की जाने वाली ज्वार की खेती का 50 फीसदी रकबा अकेले महाराष्ट्र से आता है। कर्नाटक में सबसे ज्यादा रागी की खेती की जाती है। सामांयतः मोटे अनाजों की सभी फसलों की कीमत सामान्य धान से ज्यादा ही रहती है।

मोटे अनाज स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी अच्छे हैं क्योंकि इनमें पौष्टिक तत्व अधिक मात्रा में होते हैं। रागी में पोटेशियम एवं कैल्शियम अन्य मिलेट फसलों की तुलना में ज्यादा है। कोदों में प्रोटीन 11, हल्की वसा 4.2, बहुत ज्यादा फाइवर 14.3 फीसदी के अलावा विटामिन-बी, नाइसिन, फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम मैगनीशियम, जिंक आदि महत्वपूर्ण पौषक तत्व पाये जाते हैं। इसी प्रकार से बाजरा में प्रोटीन, फाइवर, मैगनीशियम, आयरन एवं कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। अध्ययन के मुताबिक बाजरे से मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद मिलती है और कोलेस्ट्रोल स्तर में सुधार होता है। यह कैल्शियम, आयरन और जिंक की कमी को दूर करते हैं। सबसे जरूरी बात यह है कि यह ग्लूटेन फ्री होते हैं।

आज स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी मोटे अनाजों को लेकर गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भारत में करीब 8 करोड़ डायबिटीज के मरीज हैं। हर साल करीब 1.7 करोड़ लोग हृदय रोग के कारण दम तोड़ जाते हैं। देश में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जिसमें आधे से अधिक गंभीर रूप से कुपोषित हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक संबोधन में भारत से कुपोषण को खत्म करने के लिए ‘मिलेट्स रिवोल्यूशन’ की बात कही थी। विशेषज्ञों का भी मानना है कि भारत के लिए असंभव कार्य नहीं होगा क्योंकि सालों से मोटा अनाज भारतीयों के लिए भोजन का मुख्य स्रोत रहा है। मानव जाति को पुरातन समय से जिन खाद्यान्नों की जानकारी रही है वो ज्वार-बाजरा जैसे मोटे अनाज ही हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान भी बाजरा की खेती का उल्लेख मिलता है।

भारत में 21 राज्यों में इनकी खेती की जाती है। प्रत्येक राज्य के अपने किस्म के मोटे अनाज हैं जो न सिर्फ उनकी खाद्य संस्कृति का हिस्सा हैं बल्कि उनके धार्मिक अनुष्ठानों का भी भाग हैं। भारत प्रति वर्ष 1.4 करोड़ टन बाजरा की पैदावार करता है। इतना ही नहीं भारत दुनियां का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक देश भी है।

बीते 50 सालों में कृषि योग्य भूमि घटकर 3.8 करोड़ हेक्टेयर से 1.3 करोड़ हेक्टेयर ही रह गई है। इसी के साथ 1960 के दशक में होने वाली बाजरा की पैदावार आज 6 फीसदी पर आ गई है। उस समय तक भारत खाद्य सहायता प्राप्त कर रहा था और अपनी एक बड़ी आबादी के पोषण के लिए अनाज का आयात करता था। इसके बाद हरित क्रांति का आगाज हुआ और चावल-गेंहू की अधिक पैदावार वाली किस्मों को उगाना शुरू किया गया। भारत में 1960 और 2015 के बीच गेंहू का उत्पादन तीन गुना से अधिक हो गया और चावल के उत्पादन में 800 फीसदी की वृद्धि हुई। परंतु इस दौरान बाजरा जैसे मोटे अनाजों का उत्पादन कम ही बना रहा।

बीते सालों में चावल-गेंहू की उपज बढ़ाने पर बहुत अधिक जोर दिया गया और इस दौरान बाजरा और कई दूसरे पारंपरिक खाद्यान्नों की उपेक्षा हुई। जिसकी वजह से उनका उत्पादन प्रभावित हुआ है। मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहतः मिलेट मिशन संचालित कर रही है। मध्य प्रदेश सरकार छोटे मिलेट को बढ़ावा देने के लिए कोदों एवं कुटकी को बढ़ावा दे रही है। छत्तीसगढ़ सरकार ने राष्ट्रीय मिलेट शोध संस्थान, हैदराबाद के साथ समझोता करके राज्य में मिलेट मिशन का आगाज किया है। छत्तीसगढ़ सरकार की योजना राज्य को मिलेट हब के रूप में विकसित करने की है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी तथा जंगली क्षेत्रों में कोदों, कुटकी तथा रागी की खेती बहुतायत में की जाती है जो कि पौषण में काफी समृद्ध होती हैं।

हालांकि छोटे मिलेट की कटाई-मड़ाई तथा थ्रैसिंग करना मुश्किल होता है। मोटे अनाजों को पकाना भी इतना आसान नहीं हैं। आज के समय में किसी के पास इतना समय भी नहीं हैं। इसी के चलते दशकों से इनका बेहद कम इस्तेमाल किया जा रहा है। बाजार ने भी इनकी उपेक्षा की है। लेकिन लोगों को यह जानना होगा कि उनकी थाली में अलग-अलग स्वाद और अलग-अलग तरह के पौषक तत्वों का होना बहुत जरूरी है। ऐसा करने के लिए भुला दिये गये मोटे अनाजों की फसलों पर भी चावल-गेंहू की तरह ही ध्यान देना होगा। देखा जा रहा है कि ज्वार, बाजरा, रागी, कुटकी, कोदों जैसे अनाज धीरे-धीरे चलन में लोट रहे हैं।

कृषि विशेषज्ञों द्वारा मोटे आनाजों को दुबारा से चलन में लाने के लिए कई तरह के उपाय सुझाएं हैं। इन सुझावों के परिणाम भी अब दिखने लगे हैं। पिछले दो सालों में बाजरा की मांग में 146 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। मोटे अनाज जैसे बाजरा आदि से बिस्कुट, कुकीज, चिप्स, पफ ओर दूसरी चीजें सुपर मार्केट, ऑनलाइन स्टोर से लेकर पांच सितारा होटलों में बिक रहे हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लाखों लोगों को एक रूपये/किग्रा की दर से बाजरा ओर मोटा अनाज दिया जा रहा है। कुछ राज्यों में दोपहर के खाने में भी इन मोटे अनाजों से बने व्यंजन परोसे जा रहे हैं। जिस मोटे अनाज को गरीब, पिछड़े, आदिवासी लोग जीवनभर अपने भोजन में लेते रहे, उसे आज पढ़े लिखे, संपन्न, शहरी लोग भी पंसद कर रह हैं। यह आने वाले समय में मोटे अनाजों के लिए एक अच्छा संकेत माना जाना चाहिए।

(डॉ सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी, मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं, यह उनके निजी विचार हैं।)

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