गेहूं ही नहीं फूलों की खेती पर भी हुआ है गर्मी का असर, लागत भी नहीं निकाल पा रहे किसान

इस बार मार्च के बाद से बढ़े तापमान ने सभी फसलों पर असर डाला है, गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ा है तो दूसरी फसलें भी इससे नहीं बची हैं। फूलों की खेती करने वाले किसान भी इससे अछूते नहीं रह पाए हैं।
#heat wave

फूल मंडी, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। सुबह के सात बजे हर दिन की तरह ही फूल मंडी में लोगों की भीड़ आ जा रही है, जमीन पर बिछे कपड़े पर तरह-तरह के फूलों को रखे हर कोई ग्राहक के इंतजार में बैठा है। उसी भीड़ में 45 साल के रामपाल मौर्या भी गेंदा के फूल लिए ग्राहक के इंतजार में बैठे हैं। सुबह से कई ग्राहक आए गए लेकिन शायद सही कीमत न मिलने के कारण फूल नहीं बिक पाए।

उत्तर प्रदेश की राजधानी में पुराने लखनऊ की चौक फूल मंडी प्रदेश की सबसे पुरानी मंडियों में से एक है, जहां पर लखनऊ के साथ ही आसपास के जिलों के भी किसान और व्यापारी आते हैं। लखनऊ जिले के मलिहाबाद ब्लॉक के अमलौली गांव के किसान रामपाल मौर्या भी सुबह चार बजे अपने घर से लगभग 22 किमी दूर फूल लेकर मंडी के लिए निकलते हैं।

अभी तक उनके फूल क्यों नहीं बिके? के सवाल पर परेशान झल्लाए हुए रामपाल गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “जो भी आता है उसे बड़े-बड़े फूल चाहिए, अब हम फूल को तो खुद से बड़ा कर नहीं देंगे, इस बार इतनी गर्मी पड़ रही है, फूल बढ़ ही नहीं रहे हैं। खाद-पानी सब डाल रहे हैं, लेकिन बढ़ ही नहीं रहे हैं।”

ग्राहकों के इंतजार में बैठे रामपाल मौर्या। फोटो: दिवेंद्र सिंह

ये सिर्फ रामपाल अकेले की परेशानी नहीं है, बढ़ती गर्मी ने गेंदा, गुलाब जैसे फूलों की खेती करने वाले किसानों को परेशान को किया है। खेती में इस्तेमाल होने वाले डीजल, खाद, उर्वरक और कीटनाशकों के रेट में पिछले एक साल में 10-20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अब बढ़ती गर्मी ने उन्हें और परेशान कर दिया है।

रामपाल के गाँव से लगभग 336 किमी दूर मध्य प्रदेश के सतना जिले के बगहा वार्ड नंबर एक में नीरज त्रिपाठी (40 वर्ष) भी फूलों की खेती करते हैं, उनकी भी यही स्थिति है। पिछले साल उन्होंने 50 पैसे प्रति पौध के हिसाब से पौधे मंगाए थे, लेकिन इस बार वही पौधे डेढ़ रुपए में मिले थे।

उन्होंने बटाई पर जमीन भी ले रखी है और उसी पर ट्यूबवेल भी लगवा रखा है। नीरज बताते हैं, “जिस तरह से गर्मी बढ़ी है, जो सिंचाई 15 दिन में करनी होती थी, वो हफ्ते में ही करनी पड़ रही है। इस समय गेहूं का कटाई का समय चल रहा है तो लाइट भी उतनी नहीं आ रही है। इस कारण सिंचाई भी नहीं हो पा रही है।”

वो आगे कहते हैं, “शादियों में ज्यादातर लोग बड़े फूल ही पसंद करते हैं, लेकिन हमारे यहां से मैहर और चित्रकूट से भी व्यापारी आते हैं, इसलिए छोटे फूल भी बिक जाते हैं।”

नीरज ने तीन साल के लिए बटाई पर जमीन ले रखी है, जिसका उन्हें 12000 रुपए प्रति एकड़ सालाना किराया देना होता है। पहले साल में ट्यूबवेल पर एक लाख, पूरे खेत की फेंसिंग में एक लाख, 60000 रुपए मजदूरी, 35000 रुपए में सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर, बिजली कनेक्शन के लिए तीन महीने का 25000 रुपए और फर्टीलाइजर और कीटनाशक में 25000 रुपए लगे थे। लेकिन पिछले साल कोविड की वजह से मार्केट पर काफी असर पड़ा था, लेकिन इस बार उन्हें उम्मीद दिखी थी कि शायद फूलों से अच्छी कमाई हो जाए।

“फूलों की खेती में लगातार घाटा हो रहा है, पहले साल तीन एकड़ में सेवंती लगाई थी, लेकिन इस बार एक एकड़ में सिर्फ गेंदा लगाया है। अगर ऐसा ही रहा तो फूल खत्म करके कुछ और खेती करूंगा, नीरज ने आगे कहा।”

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय बागवानी डेटाबेस (द्वितीय अग्रिम अनुमान) के अनुसार, 2019-20 के दौरान भारत में फूलों की खेती का रकबा 305 हजार हेक्टेयर था, जिसमें 2301 हजार टन खुले फूलों और 762 हजार टन कटे हुए फूलों का उत्पादन हुआ था। आंध्र प्रदेश (19.1%), तमिलनाडु (16.6%), मध्य प्रदेश (11.9%) के साथ कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, गुजरात, उड़ीसा, झारखंड, हरियाणा, असम और छत्तीसगढ़ जैसे अन्य उत्पादक राज्यों से आगे बढ़कर फूलों की खेती अब कई राज्यों में व्यावसायिक रूप से की जाती है।

किसानों की माने तो फूलों की कीमत निर्धारित नहीं होती है, ये मंडी में फूलों के आवक पर निर्भर करती है। लखनऊ फूल मंडी के अध्यक्ष इसरार खान बताते हैं, “आज तो तीस रुपए में गेंदा बिका है गुलाब भी 40-50 रुपए में चल रहा है। मंडी का कोई भाव नहीं होता जैसे माल आया वैसा ही दाम मिलता है।”

वो आगे कहते हैं, “अब जिसने फूल लगाया है वो सिंचाई पर खर्च कर रहा है। मंडी में लखनऊ के नरौना, ककौरा, काकोरी, मोहान रोड, मलिहाबाद, माल, भरावन, बीकेटी और रायबरेली तक से फूल आता है। गर्मी की वजह से फूल झुलसा जा रहा है, गुलाब छोटा होता जा रहा है। अगर एक माला बनानी है तो उसमें एक किलो तक फूल लग जा रहा है।” “डीजल महंगा है इससे सब त्रस्त हैं, किसान अपने गाँव से फूल लेकर आ रहा है तो उसका किराया भी तो बढ़ा है, “इसरार ने आगे कहा।

भारतीय फूलों की खेती के उद्योग में गुलाब, एन्थ्यूरियम, कार्नेशन्स, गेंदा जैसे फूल शामिल हैं। खेती खुले खेत की स्थिति के साथ-साथ अत्याधुनिक पॉली और ग्रीनहाउस दोनों में की जाती है। भारत, अमेरिका, नीदरलैंड, इंग्लैंड, जैसे कई देशों को फूल निर्यात करता है। भारत ने साल 2020-21 में 575.98 करोड़ रुपए का फूल निर्यात किया।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस बढ़ती गर्मी का असर फूलों के उत्पादन पर काफी पड़ने वाला है। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान’ (एनबीआरआई) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एसके तिवारी कहते हैं, “इस समय में खेत में गुलाब गेंदा और रजनीगंधा की फसल है, जिस पर गर्मी का असर पड़ रहा है। गर्मी से बचने के लिए किसान को ज्यादा सिंचाई करनी पड़ रही है।”

वो आगे कहते हैं, “जैसे कि दोपहर एक बजे से तीन बजे तक गुलाब के पौधे मुरझाए हुए दिखते हैं, किसान को लगता है कि अगर पानी दे देते हैं तो वो सही हो जाएगा, जबकि ऐसा नहीं होता है, इससे पौधे सूखने लग जाते हैं। यही हाल गेंदा की फसल के साथ भी है, गर्मियों के गेंदा के साथ वैसे भी परेशानी होती है, इस बार तो टेंप्रेचर 40 डिग्री मार्च में ही हो गया, तो उसका असर तो इस पर पड़ेगा ही, गर्मी की वजह से फूलों का आकार भी छोटा रह जा रहा है।”

सिर्फ गुलाब और गेंदा ही नहीं सभी फूलों पर इसका असर पड़ रहा है। डॉ तिवारी कहते हैं, “यही हाल रजनीगंधा के साथ है, जिन किसानों ने इसी साल रजनीगंधा के बल्ब लगाए हैं तो अभी उनकी अच्छे से जड़ें भी नहीं विकसित हुईं होंगी तो उन पर ज्यादा असर हो रहा है। इस समय बहुत से किसान पॉली हाउस में जरबेरा की खेती भी करते हैं, वैसे मिड मई से मिड जून तक इसकी देखरेख सबसे ज्यादा करनी पड़ती है, लेकिन इस बार मार्च से ही तापमान बढ़ गया है।”

अभी भी कुछ उपाय अपनाकर किसान नुकसान से बच सकते सकते हैं। डॉ तिवारी सलाह देते हैं, “किसान इस समय ओवर इरिगेशन से किसानों को बचना चाहिए, अगर दोपहर में पौधे मुरझाए हुए दिखे तो सिंचाई न करें, इसी की वजह से पौधे मर जाते हैं।” “खेत में मल्चिंग कर दें, इस समय जैसे गेहूं कटने के बाद जो अवशेष बचे हैं, या फिर पेड़ की सूखी पत्तियों से मल्चिंग करें, इससे खेत में नमी बनी रहेगी, “उन्होंने आगे कहा।

गर्मी बढ़ने के साथ ही फसल पर कई तरह के कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। डॉ तिवारी बताते हैं, “इस समय जैसे आसपास के खेतों में कोई फसल नहीं होती, जिससे फूलों की खेत में नमी होने के कारण बहुत से कीट भी लग सकते हैं। इसलिए पौधों को सिर्फ ऊपर से न देखें बल्कि नीचे जड़ के पास भी देखते रहें, जहां कीट लगे हो सकते हैं।”

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