किसी भी फसल में सबसे जरूरी होता है अच्छी पैदावार व अच्छा स्वाद लेकिन बहुत कम ही किस्मों में ऐसा मिलता है, कर्नाटक के एक किसान ने धान की एक ऐसी किस्म विकसित की है जो गुणवत्ता व उत्पादकता दोनों में बेहतर है।
कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले के मैसूरहल्ली गाँव के किसान एमके शंकर गुरू पिछले 50 वर्षों से धान की खेती कर रह हैं, उन्होंने नई किस्म एनएमएस-2 विकसित की है। सात साल में विकसित ये स्वाद व उत्पादकता दोनों में बेहतर है।
गुरु 1992 से ही विभिन्न किस्मों के बीज एकत्र और संरक्षित करने में लगे हुए हैं। बीजों के प्रति उनके आकर्षण ने एनएमएस-2 नामक इस नई किस्म का विकास करने में उनकी मदद की। उन्हें राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन-भारत, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया है।
गुरु ने 16 साल की उम्र में खेती करनी शुरू कर दी थी। मैसूर जिले के मैसूरहल्ली गाँव में उनकी 25 एकड़ जमीन है। शुरू-शुरू में यह शुष्क भूमि वाला खेत था और वह रागी, ज्वार और बंगाल चना, मूंग, उड़द और तूर दाल जैसी दलहनों की खेती करते थे। 1985 में कबीनी नदी परियोजना अस्तित्व में आने के बाद, गुरु को नहर के जरिये पानी मिलने लगा और इसलिए उन्होंने धान, गन्ने और केले की खेती करना शुरू कर दिया। गुरू के खेतों में ढेर सारी विविधता वाली फसलों का मिश्रण है जिसमें दालें, अनाज, कपास और धनिया शामिल हैं।
इन वर्षों में, गुरु ने अपनी फसलों के विकास पर बहुत बारीकी से नजर रखी। गुरू बताते हैं, “एक दिन, मैं अपने खेत में सलेम सना और जीरा सना या सांबा (सुगंधित चावल) धान किस्मों को देख रहा था। मैंने इन दो धान की किस्मों से अलग चार पौधों को देखा। मैंने इन चार प्रकारों को चार अलग-अलग रंग के धागों से बांधकर चिह्नित कर दिया। फसल कटाई के बाद, मैंने इन चार किस्मों का बीज इकठ्ठा किया और उन्हें 1,2,3,4 नाम दिया।
जून-जुलाई में उन्होंने अपनी नर्सरी में इन चार किस्मों की पौध विकसित की। उन्होंने विकास पैटर्न में होने वाला बदलाव देखने के लिए उनकी अलग-अलग स्थानों पर खेती की। हर साल, कटाई के बाद बीजों को अगली फसल के लिए सम्भाल कर रख लेते थे। सबसे जरूरी बात यह है कि वह जैविक तरीकों (रासायनिक आदानों का कोई उपयोग नहीं) का उपयोग करके इनकी खेती करते थे।
यह प्रयोग अगले सात सालों तक जारी रहा। धान की दूसरी किस्म ने अच्छी तरह विकास करना जारी रखा और अधिक पैदावार दी जबकि अन्य तीनों बच नहीं पायी। उन्होंने अपना परिणाम पास के कृषि महाविद्यालयों को दिखाया। इस तरह धान की एनएमएस-2 किस्म की खोज हुई।
एनएमएस-2, 130-135 दिन की फसल है। एक एकड़ के लिए, 10-15 किलो बीज की आवश्यकता होती है। पैदावार 28-30 क्विंटल होती है। जैविक खेती की पद्धतियों का उपयोग कर इसे उगाया जाता है।
यह रोग प्रतिरोधी किस्म है जो सफेद रंग का चावल देती है। बीज का आकार मध्यम होता है। कटाई के बाद चावल में संसाधित करने पर, धान की अन्य किस्मों की तुलना में हानि का प्रतिशत तुलनात्मक रूप से कम होता है। बीज 3000-3500 रुपये प्रति कुंतल की दर से बिकता है जबकि चावल की फसल 2,000 रुपये प्रति कुंतल में बिकती है।
2012 में, अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन ने एनएमएस-2 को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान की। 2015 में शंकर की एनएमएस-2 धान की किस्म को पेटेंट के लिए पंजीकृत किया गया।
अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें:
एमके शंकर गुरू
गाँव- मदाराहा, कन्नेहल्ली आंचे
तालुका- टी नरासीपूरा
मैसूर, कर्नाटक
मोबाइल- 09900658921