रांची(झारखंड)। किसान गंसू महतो एक समय 50 रुपए दिहाड़ी की मजदूरी के लिए घर से 25 किलोमीटर दूर जाते थे, लेकिन अपनी सूझबूझ से इन्होंने अपनी 9 एकड़ जमीन को बंजर से उपजाऊ बनाया और अब सालाना 50 लाख रुपए की आमदनी ले रहे हैं।
किसान गंसू महतो (40 वर्ष) ने बताया, “पिछले साल एक एकड़ खेत में जलबेरा के फूल 35 लाख रुपए के बेचे और 8 एकड़ खेत की सब्जियां 15 लाख रुपए की बेची। 9 एकड़ जमीन में लागत लगभग 20 लाख रुपए आयी। इस हिसाब से बचत 30 लाख रुपए हुई।” गंसू अभी अपनी इस आमदनी से संतुष्ट नहीं हैं इनका कहना है साल 2018 में केवल सब्जी ही 50 लाख रुपए की बेचूंगा।
गंसू की जिंदगी में 50 से गहरा जुड़ाव है। इनका कहना है, “एक समय मैं 50 रुपए की मजदूरी के लिए अपने घर से 25 किलोमीटर दूर रांची शहर में जाता था। जहां पूरे दिन ईंट गारा देने के बाद दिन के 50 रुपए मिलते थे। अगर दो मिनट सुस्ताने लगते तो ठेकेदार चिल्लाकर बोलता था, मजबूरी थी इसलिए सुन लेता था लेकिन बहुत बुरा लगता था।”
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गंसू महतो के पास अपनी जमीन तो थी लेकिन वह बंजर भूमि थी। इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद इनके पास इतना पैसा नहीं था जिससे ये आगे की पढ़ाई कर सकें। इसलिए 20 साल की उम्र में ये 50 रुपए की दिहाड़ी मजदूरी करने लगे। तीन साल मजदूरी करने के बाद गंसू ने मजदूरी छोड़ दी। ये अपनी बंजर पड़ी जमीन में ही खेती करना चाहते थे।
गंसू ने बताया, “बंजर जमीन में गोबर की खाद डालकर उसे धीरे-धीरे इसे उपजाऊ बनाया। शुरुआती दिनों में शकरकंद और गोड़ा धान (जो बंजर जमीन में धान होती है उसे गोड़ा धान कहते हैं) की फसल ली।”
वर्ष 1998 में गंसू ने 12 डिसमिल जमीन में शिमला मिर्च की खेती की। पहली बार एक लाख 20 हजार रुपए की शिमला मिर्च की बिक्री हुई जिससे इनका आत्मविश्वास बढ़ा। फिर ये कारवां रुका नहीं, तब से ये लगातार खेती कर रहे हैं।
झारखंड राज्य में पानी की कमी होने की वजह से यहां के किसान ज्यादातर बरसात के पानी पर ही खेती करने के लिए निर्भर रहते थे। बरसात के पानी से धान की उपज खाने भर के लिए होती थी। जिससे रोजमर्रा के खर्चों के लिए इन्हें दिहाड़ी मजदूरी करने पड़ती। धीरे-धीरे सरकार की तमाम योजनाएं किसानों तक पहुंची जिससे किसानों ने सब्सिडी पर ड्रिप एरीगेशन और पॉली हॉउस लगाने शुरू किए और आधुनिक तरीके से खेती करना शुरू किया, जिसका एक उदाहरण किसान गंसू महतो हैं।
गंसू रांची जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर ओरमांझी ब्लॉक के सदमा गाँव के रहने वाले हैं। इनके गाँव में 80 घर हैं, गंसू इस समय तरक्की की रफ्तार में सबसे आगे हैं।
झारखंड ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से इस गाँव में गंसू के अलावा 20 और किसानों ने ड्रिप एरीगेशन लगाया है जो अब पूरे साल अपने खेत में फसल लेकर अच्छी आमदनी ले रहे हैं।
गंसू ने 25 डेसमिल के 4 पॉली हॉउस लगाए, एक एकड़ जरबेरा से 35 लाख रुपए कमाए
गंसू ने सरकार की सब्सिडी की मदद से 25-25 डिसमिल में दो पॉली हॉउस और दो ग्रीन हाउस और ड्रिप इरीगेशन लगाया। जरबेरा फूल के पौधे लगाने के 75 दिन बाद तोड़ाई शुरू हो गयी। एक सप्ताह में फूलों की तुड़ाई दो बार होती है। एक बार जरबेरा लगाने पर चार साल लगातार उपज देगा।
गंसू बताते हैं, “पहले ही साल में हमने 35 लाख रूपए के फूल एक एकड़ खेत के बेचे हैं। लागत 15 लाख रुपए आयी है, 20 लाख बचत हुई है। इस साल लागत 3 लाख रुपए आयेगी और मुनाफा 20-25 लाख रुपए होगा।” गंसू को जरबेरा के फूल बेचने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता, व्यापारी खेत में आकर ही खरीदकर ले जाते हैं।
ये दस हजार से ज्यादा किसानों को कर चुके हैं प्रशिक्षित
खेती कर कमाई करना ही गंसू का मकसद नहीं है। इनकी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा किसान खेती के नए तौर तरीकों को सीखें और बेहतर उपज लेकर अच्छा मुनाफ़ा कमाएं जिससे उनकी आय बेहतर हो सके। कृषि विभाग भी इन्हें किसानों को प्रशिक्षित करने के लगातार बुलाते हैं। अब तक गंसू निःशुल्क 10 हजार से ज्यादा किसानों को प्रशिक्षित कर चुके हैं।
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ये आठ एकड़ में उगाते हैं जैविक सब्जियां
गंसू के पास कुल 14 एकड़ जमीन है जिसमें 9 एकड़ भूमि में ही ये खेती करते हैं, बाकी भूमि अभी भी चट्टानी है। गंसू ने आधुनिक तरीके से खेती करने की शुरुआत वर्ष 2015 से ही 9 एकड़ में करनी शुरू की है। एक एकड़ में जरबेरा की खेती करते हैं और आठ एकड़ में विभिन्न प्रकार की सब्जियां उगाते हैं। वर्ष 2017 में 15 लाख रुपए की सब्जियां बेच चुके हैं। वर्ष 2018 में गंसू ने 50 लाख रुपए की सब्जी बेचने का लक्ष्य रखा है।
ये बाजार से कोई भी खाद और कीटनाशक का उपयोग नहीं करते हैं। सभी खादें और दवाइयां के घर पर ही बनाते हैं।
अगर आप किसान से मिलना चाहते हैं या फोन पर सम्पर्क करना चाहते हैं तो नीचे दी गयी डिटेल में आप गंसू महतो तक पहुंच सकते हैं।
नाम-गंसू महतो
राज्य-झारखंड
जिला-रामगढ़
ब्लॉक- ओरमांझी
गाँव- सदमा
मोबाईल नम्बर-9065224475