गाय-भैंस का गोबर सिर्फ खाद या बॉयो गैस ( bio gas ) बनाने के ही काम नहीं आता। ये गोबर खाद के अलावा भी कमाई का जरिया बन सकता है। दर्जनों लोग इसी गोबर ( gobar या cow dung ) से कई कमाल की चीजें बनाई जा सकती हैं।
इलाहाबाद। गोबर से खाद और बायो गैस बनने के बारे में तो सभी ने सुना होगा, लेकिन आज हम आपको गोबर से बने गमले और अगरबत्ती के बारे में बताएंगे, कि कैसे गोबर आपकी कमाई का बेहतर जरिया बन सकता है।
इलाहाबाद जिले के कौड़िहार ब्लॉक के श्रींगवेरपुर में स्थित बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान में गोबर से बने उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। उत्तर प्रदेश ही नहीं दूसरे प्रदेशों के भी कई लोग इसका प्रशिक्षण ले चुके हैं।
प्रबंध निदेशक डॉ. हिमांशू द्विवेदी बताते हैं, “हमारे यहां गोबर की लकड़ी भी बनाई जाती है, इसका हम प्रशिक्षण भी देते हैं, इसे गोकाष्ठ कहते हैं। इसमें लैकमड मिलाया गया है, इससे ये ज्यादा समय तक जलती है, गोकाष्ठ के बाद अब गोबर का गमला भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। गोबर से गमला बनने के बाद उसपर लाख की कोटिंग की जाती है। ये काफी प्रभावशाली है।”
गोबर में लाख के प्रयोग से कई मूल्यवर्धित वस्तुएं बनाई जा रही हैं। जैसे गमला, लक्ष्मी-गणेश, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैण्ड आदि आसानी से बनाए जा सकते हैं।
जब कोई पौधा नर्सरी से लाते हैं तो वह प्लास्टिक की थैली में दिया जाता है और थैली हटाने में थोड़ी भी लापरवाही की जाए तो पौधे की जड़ें खराब हो जाती हैं और मिट्टी में लगाने पर पौधा पनप नहीं पाता। इस स्थिति से बचने के लिए गोबर का गमला काफी उपयोगी है। गमले को मशीन से तैयार किया जाता है। इसमें मिट्टी भरकर पौधा लगाइए और जब इस पौधे को जमीन की मिट्टी में लगाना हो तो गड्ढा कर इस गमले को ही मिट्टी में दबा दीजिए। इससे पौधा खराब नहीं होगा और पौधे को गोबर की खाद भी मिल जाएगी। पौधा आसानी से पनप जाएगा।
संस्थान में केले के तने का भी अच्छा प्रयोग किया जा रहा है, प्रबंध निदेशक डॉ. हिमांशू द्विवेदी बताते हैं, “केले के तने से साड़ियां भी बनती हैं, इसी तरह से गोबर से एनर्जी केक बनाया जाता है, जो अंगीठी में तीन-चार घंटे तक आसानी से जल जाता है। ये गैस की तरह ही जलाया जाता है। इसी तरह स्टिकलेस अगरबत्ती भी बनाई जाती है।”
बायोवेद शोध संस्थान लाख के कई तरह के के मूल्यवर्धित वस्तुओं के निर्माण का प्रशिक्षण देकर कई हजार परिवारों को रोजगार के साथ अतिरिक्त आय का साधन उपलब्ध करा रहा है। संस्थान के निदेशक डॉ. बी.के. द्विवेदी बताते हैं, “जानवरों के गोबर, मूत्र में लाख के प्रयोग से कई मूल्यवर्धित वस्तुएं बनाई जा रही हैं। गोबर का गमला, लक्ष्मी-गणेश, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, जैव रसायनों का निर्माण, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैण्ड व पुरस्कार में दी जाने वाली ट्रॉफियों का निर्माण आदि शामिल हैं। इन सभी वस्तुओं का निर्माण बायोवेद शोध संस्थान करा रहा है।”