जयपुर (राजस्थान)। जयपुर में वेल्डिंग का काम करने वाले असलम को बिजली के खंभे पर काम करने के दौरान झटका लगा और वो नीचे गिर गए। दुर्घटना में उनके दोनों पैर टूट गए। असलम का ऑपरेशन हुआ और अब हर दिन उनकी फिजियोथेरेपी होती है, जिसमें महीने के 14 हजार रुपए लगते हैं। असलम 11 सदस्यीय परिवार में एकलौते कमाने वाले शख्स थे। अब उनके 75 वर्षीय पिता एक दुकान में काम करते हैं और छोटा भाई भी मजदूरी करने लगा है। दोनों की कमाई से बमुश्किल इतना पैसा आ पाता है, जिससे घर चल सके। असलम की पत्नी राशनकार्ड के लिए कई बार कलेक्ट्रेट के चक्कर काट चुकी हैं, दलालों के पैसे दे चुकी हैं लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा योजना में उनका नाम शामिल नहीं हो पाया है।
जयपुर में ही पानीपेच की रहने वाली प्रभाती देवी लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाकर अपना और अपनी दो बेटियों का पेट भरती हैं। सात साल पहले उनके पति और बाद में बेटे की मौत हो गई थी। प्रभाती (50 वर्ष) बीते डेढ़ साल से अपना नाम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पोर्टल में जुड़वाना चाहती हैं। लेकिन उनका नाम नहीं जुड़ पा रहा है। राशन कार्ड रहने के बावजूद उन्हें राशन नहीं मिल रहा। प्रभाती बताती हैं, “साल भर पहले एक दलाल को 800 रुपये दिए थे। छह महीने पहले एक ई मित्र वाले ने भी 400 रुपये लिए लेकिन मेरा नाम नहीं जुड़ा। मैं लोगों के घरों में साफ-सफाई का काम करती हूं। उसी से अपना और दोनों बेटियों का पेट भरती हूं। मैं इतनी असहाय हूं, फिर भी मुझे सरकारी मदद नहीं मिल रही है।”
असलम और प्रभाती देवी की कहानी राजस्थान के लाखों लोगों की कहानी है। देश में होली तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को प्रतिमाह मुफ्त 5 किलो गेहूं/चावल और एक किलो साबुत चना दिया जा रहा है। ये मुफ्त राशन खाद्य सुरक्षा कानून के अतिरिक्त है। लेकिन असलम और प्रभाती देवी को मुफ्त राशन तो दूर की बात उन्हें सब्सिडी वाला राशन भी नहीं मिल पा रहा है।
राजस्थान सरकार के मुताबिक करीब 74 लाख पात्र लोगों के नाम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पोर्टल में नहीं जोड़े जा सके हैं। खाद्य सुरक्षा पोर्टल में नाम न जुड़ने से इन्हें किसी प्रकार का राशन नहीं मिला रहा है। केंद्र सरकार द्वारा तय सीमा के आधार पर राजस्थान की 53% शहरी आबादी और 69% ग्रामीण आबादी खाद्य सुरक्षा के दायरे में आती है। इस आधार पर 4.46 करोड़ आबादी को खाद्य सुरक्षा का लाभ मिल रहा है। लेकिन इसके पात्र लोगों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है।
राजस्थान में 18 मई 2020 से खाद्य सुरक्षा में आवेदन के लिए पोर्टल पर काम बंद है। इसलिए न तो नए आवेदन स्वीकार किये जा रहे हैं और न ही पुराने राशन कार्ड में कोई सुधार हो पा रहा है। इसका असर बड़ी संख्या में लोगों पर पड़ा है। खासकर उन पर जिन्हें कोविड-19 और लॉकडाउन की वजह से काम मिलना बंद हो गया।
सीकर में अपनी 85 वर्षीय मां कलावती देवी के साथ रहने वाले राजू राशन कार्ड बनवाने के लिए परेशान हैं। वे कहते हैं, “मैं दो साल से राशन कार्ड बनवाने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन हर बार कोई बहाना बना कर मना कर दिया जाता है। मैं ई मित्र गया, वहां मुझे श्रमिक कार्ड बनाने को कहा। मैंने 1500 रुपये देकर श्रमिक कार्ड बनवाया। मुझे लगा कि इसके बाद राशन कार्ड बन जायेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।”
राजू आगे कहते हैं, “मैं रसद विभाग भी गया लेकिन मेरा कार्ड नहीं बना। वे मुझे यहां से वहां भेजते रहे। मैं मजदूर आदमी हूं, दफ्तर के चक्कर लगाता रहूंगा तो खाऊंगा क्या? काम तो करना पड़ेगा न।’
2011 की जनसंख्या के आधार पर आवंटन से हो रही है परेशानी
खाद्य विभाग के अतिरिक्त आयुक्त अनिल अग्रवाल ने गांव कनेक्शन को बताया, “केंद्र सरकार आज भी 2011 के जनगणना के आंकड़ों के आधार पर लाभार्थियों की सीमा निर्धारित करती है। बीते 10 सालों में प्रदेश की जनसंख्या बढ़ी है। हमने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि भले ही वह कोटा वही रखें लेकिन लाभार्थियों की संख्या बढ़ाएं। तभी हम और लोगों के नाम जोड़ पाएंगे।”
उन्होंने आगे कहा, “हालांकि राज्य सरकार अपने स्तर से भी प्रयास कर रही है। हमने कुछ अपात्र लोगों के नाम हटाये हैं। जल्द ही हम पोर्टल खोलेंगे और नए नाम जोड़ना शुरू करेंगे।”
गांव कनेक्शन से बात करते हुए खाद्य एवं रसद विभाग के पूर्व अधिकारी ने नाम छपाने की शर्त पर कहा, “दरअसल पहले राजस्थान फर्जी कार्ड बहुत थे, किसी के दो दो गांव में कार्ड थे, किसी का शादी हो गई उसका भी कार्ड था, किसी की मौत हो गई लेकिन परिवार वाले राशन लेते आ रहे हैं। ऐसे कई केस थे, जिसके लिए सत्यापन हुए। आधार से लिंक किए गए, कुछ कार्ड कटे, कुछ सत्यापित किए। उसके बाद ये कार्ड खाद्य सुरक्षा से क्यों नहीं जुड़ पा रहे, या क्यों नहीं जोड़े गए मुझे इसकी सही जानकारी नहीं है।”
एसडीएम के आदेश के बावजूद नहीं मिल रहा है राशन
मार्च 2020 में कोटा एसडीएम कोर्ट ने पात्र लोगों की सूची जारी कर उनके नाम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पोर्टल में जोड़ने का आदेश जारी किया था। करीब 2 साल बाद भी उन लोगों के नाम सूची में नहीं जुड़ पाए हैं और न ही उन्हें सरकारी राशन मिला है।
कोटा की यास्मीन का नाम भी इस सूची में था। वे कहती हैं, “मार्च 2020 में मुझे फोन कर के बताया गया कि हमारा नाम पोर्टल में जुड़ गया है। फिर हम रसद विभाग गए तो बताया गया कि कुछ दिन बाद नाम जुड़ जाएगा। उसके बाद लॉकडाउन हो गया और हमारा नाम नहीं जुड़ पाया। मेरे पति पास की एक दुकान में काम करते हैं। कोरोना के दौरान काम बंद था तो लोगों से उधार लेकर घर चलाया। वह उधार हम आज तक चुका रहे हैं।”
कोटा की 55 वर्षीय उषा देवी अपना राशन कार्ड शुरू करवाने के लिए दफ्तरों के कई चक्कर लगा चुकी हैं। वे बताती हैं, “मैं लॉकडाउन के दौरान एक बार राशन मिला था। लेकिन उसके बाद से हमें राशन नहीं मिलता। रसद विभाग वाले कहते हैं कि जब सबका राशन शुरू होगा तो तुम्हारा भी शुरू हो जाएगा। मेरे पति एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। कभी ग्राहक आते हैं तो आमदनी होती है, नहीं आते हैं घर का खर्च निकालना मुश्किल होता है। हमें कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। मैं अपना पेंशन शुरू करवाना चाहती हूं, वह भी नहीं हो रहा। हमारे लिए तो कोई सरकार है ही नहीं।’
राजस्थान में मई 2020 तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पोर्टल में नाम जुड़वाने के लिए 3.87 लाख आवेदन पेंडिंग थे। मई के बाद से नए आवेदन लिए ही नहीं गए हैं। जबकि कोरोना के बाद बड़ी संख्या में परिवारों को इसकी जरूरत हुई है।
टोंक जिले के भगवान को भी कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद सरकारी राशन की जरूरत महसूस हुई। भगवान मजदूरी कर के अपना और अपनी मां का पेट भरते हैं। जब लॉकडाउन लगा तो उन्हें काम मिलना बंद हो गया। खाने के लाले पड़ गए। भगवान ने सरकारी राशन लेने की खूब कोशिश की, लेकिन उनका राशन कार्ड नहीं बन पाया। उन्हें बताया गया कि पोर्टल बंद है इसलिए उनका कार्ड नहीं बन सकता। पूरा लॉकडाउन उन्होंने लोगों के दिये राशन से गुजारा।
जयपुर के पानीपेच की रहने वाली 58 वर्षीय सरोज अकेली महिला हैं। वे लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाती हैं। उनका राशन कार्ड बना हुआ था। लेकिन उन्होंने तीन महीने तक राशन नहीं लिया तो उनका नाम पोर्टल से हटा दिया गया। पोर्टल में नाम जुड़वाने के लिए वे ई मित्र, कलेक्ट्रेट और पोस्ट ऑफिस के दर्जनों चक्कर लगा चुकी हैं। लेकिन पोर्टल बंद होने की वजह से उनका नाम नहीं जुड़ पा रहा है।
हर दिन 4-5 लोग पोर्टल में नाम जुड़वाने आते हैं
जयपुर में ‘ई मित्र’ चलाने वाले अभिषेक लाडना बताते हैं, “हर दिन सिर्फ हमारे पास 4-5 लोग खाद्य सुरक्षा पोर्टल में नाम जुड़वाने के लिए आते हैं। राजस्थान में 85 हजार से ज्यादा ई मित्र हैं। तो हर दिन पता नहीं कितने लोग नाम जुड़वाने की कोशिश करते होंगे। इनमें से अधिकतर निम्न आय वर्ग वाले लोग होते हैं। पोर्टल चालू होता तो इनका भी काम होता और हमें भी पैसे मिलते। पोर्टल बंद होने की वजह से हमारा भी नुकसान हो रहा है।”
“पोर्टल बंद कर लोगों का अधिकार छीन रही सरकार”
सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश गोस्वामी कहते हैं, “सरकार लोगों की अपील स्वीकार या नकार सकती है लेकिन अपील करने से रोकना लोगों के अधिकार का अतिक्रमण है। राज्य सरकार भी कोटा बढ़ा सकती है। खुद कांग्रेस ने 2018 के अपने घोषणा पत्र में ग्रामीण क्षेत्र में 69% के दायरे को बढ़ाकर 100% करने का वायदा किया था। लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी यह वायदा पूरा नहीं किया गया है।”
वे आगे कहते हैं, “राशन कार्ड को आधार से जोड़ने की प्रक्रिया के दौरान आधार कार्ड नहीं होने या फिंगरप्रिंट काम नहीं करने की वजह से लाखों लोगों के नाम राशन कार्ड से हटाए गए हैं। कम से कम उतने आवेदन तो तुरंत स्वीकार किये जाने चाहिए।”
स्वास्थ्य पर पड़ा है असर, प्रदेश में बढ़ी है एनीमिया पीड़ितों की संख्या
पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में छह महीने से पांच साल तक के 71.5 फीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। जबकि चौथे सर्वेक्षण के दौरान यह आंकड़ा 60.3 फीसदी था।
15 साल से 49 साल की 54.4 फीसदी महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं जबकि चौथे सर्वेक्षण में 46.8 फीसदी महिलाएं एनीमिया पीड़ित थी। 15 साल से 49 साल के पुरुषों में भी एनीमिया पीड़ितों की संख्या बढ़ी है। चौथे सर्वेक्षण में यह आंकड़ा 17.2 फीसदी था लेकिन अब यह 23.2 है।
सवाई मान सिंह (एस एम एस) हॉस्पिटल जयपुर की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ चारुल मित्तल एनीमिया पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी को बड़ा खतरा बताती हैं। वे कहती हैं, “एनीमिया रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है। किशोरियों और महिलाओं के लिए यह गंभीर समस्या है। अगर गर्भावस्था के दौरान एनीमिया का उपचार नहीं किया जाए तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। गर्भ में संक्रमण हो सकता है और शिशु मृत्यु की संभावना भी बढ़ जाती है। अगर महिला में खून की कमी होगी तो बच्चा भी कुपोषित होगा। कुपोषित बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित नहीं हो सकता है।”
कोविड की तीसरी लहर के बावजूद राशन की सुविधा से चूके इन लोगों के लिए गैर सरकारी संगठन फिक्रमंद हैं और लड़ाई लड़ रहे हैं। एकल नारी शक्ति संगठन की चन्द्रकला शर्मा बताती हैं, “पोर्टल बंद होने का सबसे बड़ा नुकसान अकेली महिलाओं को हुआ है। वे न तो कहीं काम करने जा पाती हैं न ही उन्हें सरकारी लाभ मिल पा रहा है। लोग दलालों और बिचौलियों के शिकार बन रहे हैं। हमने बीते साल नवंबर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को 12 हजार पोस्टकार्ड भेज कर पोर्टल शुरू करने की मांग की थी। पूरे राजस्थान से करीब 10 हजार महिलाओं ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया है। लेकिन इसके बावजूद सरकार सुन नहीं रही है। लोग 1500-2000 रुपये देकर श्रमिक कार्ड बनवा रहे हैं। क्योंकि बिचौलिए उन्हें बताते हैं कि श्रमिक कार्ड बनने से उन्हें राशन मिलना शुरू हो जाएगा। जबकि ऐसा है नहीं।”
क्रांतिकारी निर्माण मजदूर संघ के रितांश भी बीते साल भर से पोर्टल खोलने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। बीते दिसंबर में उन्होंने विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर आक्रोश मार्च निकाला था। वे कहते हैं, “कोरोना की दोनों लहर के दौरान गरीबों को राशन नहीं मिला। इसका असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। राशन लोगों की मूलभूत आवश्यकता है लेकिन सरकार वह भी नहीं दे पा रही है। हम लगातार सरकार से राशन देने की मांग कर रहे हैं और जब तक पोर्टल नहीं खुलता है हम आंदोलन करते रहेंगे।”
मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर जनसंख्या के वर्तमान आंकड़ों के अनुरूप राज्य को खाद्य सुरक्षा योजना में प्रतिमाह 30 हजार मैट्रिक टन गेहूं अतिरिक्त आवंटित करने का आग्रह किया है।
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— CMO Rajasthan (@RajCMO) April 23, 2020
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पीएम को लिख चुके हैं खत
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लाभार्थियों की संख्या का पुनर्निर्धारण 2021 की जनसंख्या के आधार पर करने का अनुरोध किया है। पत्र में उन्होंने लिखा कि 2011 की जनसंख्या के बाद प्रदेश की जनसंख्या में इजाफा हुआ है। कोरोना के कारण कई परिवार एनएफएसए की पात्रता में आ गए हैं। यह भी तय है कि कोरोना की वजह से 2021 की जनगणना में विलंब होगा। ऐसे में 2011 की जनसंख्या के आधार पर लाभार्थियों की संख्या तय करना न्यायसंगत नहीं है।
उन्होंने लिखा कि प्रदेश में अभी 4 करोड़ 46 लाख लोग खाद्य सुरक्षा के दायरे में हैं। 2021 की अनुमानित जनसंख्या के आधार पर इसमें 74 लाख अतिरिक्त लाभार्थियों को जोड़ने की आवश्यकता है। इसलिए यह संख्या बढ़ाई जाए ताकि जरूरतमंद लोगों को खाद्य सुरक्षा मिल सके।
राइट टू फूड (भोजन का अधिकार Right to food ) के कार्यकर्ता और मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डे उन लोगों में से हैं जो मुफ्त राशन की समय सीमा और इसका दायरा बढ़ाने की मांग करते रहे हैं। पिछले दिनों गांव कनेक्शन से हुई बात में निखिल एनएफएसए योजना में सुधार की जरुरत बताते हैं। वे कहते हैं, “मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूं कि कैसे एनएफएसए योजना में भी दिक्कत हैं। राजस्थान में 4 लाख परिवार (अति गरीब) ऐसे हैं जिन्हें सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत पेंशन मिलती है। लेकिन इन्हें राशन नहीं मिलता। इसी तरह 8 लाख बुजुर्ग हैं जिन्हें सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत पेंशन मिलती है लेकिन कार्ड नहीं है, जबकि ये लोग पहले से आत्मनिर्भर नहीं है।”
सरकारी दफ्तरों में इस मेज से उस मेज तक सरकारी फाइलों, ईमेल के सवालों जवाबों और राजनीति से इतर जयपुर की पुष्पा देवी अपने नाम से राशन का इंतजार है। अपना फटा हुआ राशन कार्ड दिखाते हुए वो कहती हैं, जबसे उनका राशन कार्ड बना है तब से उन्हें कभी भी राशन नहीं मिला। खाद्य सुरक्षा पोर्टल में नाम जुड़वाने के लिए उन्होंने कई कोशिशें की लेकिन उनका नाम नहीं जुड़ा।”