श्रावस्ती और लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। सोनबरसा गांव में तपती दोपहरी में कुछ युवा लड़िकयां बर्तन धोते हुए हंस-खेल रही हैं। इन्हीं में से एक है 12 साल की चिमकी। चिमकी की पिछले साल शादी हुई थी। अपनी उम्र से दोगुने उम्र के पति के बारे में वह ज्यादा नहीं जानती है। उसने बताया कि वह उससे पहले कभी नहीं मिली थी।
चिमकी की आंखों ने कभी हिंदी टीचर बनने का सपना देखा था। लेकिन आज वह 12 साल की उम्र में एक बहू होने की जिम्मेदारियां निभा रही है। उसके माता-पिता ने उससे कहा था कि वे अब और ज्यादा समय तक उसे स्कूल नहीं भेज सकते और फिर उसकी शादी हो गई। चिमकी ने गांव कनेक्शन से कहा, “ये तो भगवान की मरजी थी। जो भगवान चाही तोनो होई, और वैसे भी मैं अपने पिता से लड़ तो नहीं सकती।”
साथ खड़ी उसकी सहेलियों ने हंसते हुए कहा, “देहात मा तो ऐसे ही हो जात है (गांवों में ऐसी शादियां आम हैं)।”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5: 2019-21) के आंकड़े श्रावस्ती जिले की बदसूरत वास्तविकता से सामना करा रहे हैं। इसी जिले में चिमकी का भी घर है। यहां 20-24 साल की उम्र की 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी गई थी।
चिमकी उत्तर प्रदेश में उन 3.6 करोड़ बाल वधूओं में से एक है, जो न केवल घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। बल्कि उन्हें शिक्षा और सुरक्षा से भी वंचित रखा जाता है।
बाल विवाह भारत में एक राष्ट्रीय समस्या है। भारत दुनिया में हर तीन में से एक बाल वधू का घर है। इस साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जारी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, देश में 22.6 करोड़ से ज्यादा बाल वधुएं हैं। यहां चार में से हर एक युवा महिला की शादी बचपन में ही कर दी गई थी। इनमें से 9 करोड़ 98 लाख महिलाओं ऐसी हैं जिनकी शादी 15 साल की उम्र से पहले हो गई थी।
भारत की आधी से अधिक बाल वधुएं उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हैं।
बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली एक वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था सेव द चिल्ड्रन के उपनिदेशक, प्रभात कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, “लड़कियां हमेशा से ही बीच में स्कूल छोड़ देती हैं और जल्दी ही शादी के बंधन में बंध जाती हैं। कम उम्र में गर्भधारण से मातृ और बाल मृत्यु दर में गंभीर वृद्धि होती है।”
17 साल की गुड़िया जैसी न जाने कितनी बाल वधूओं को क्रुर दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है। चिमकी के गांव से मुश्किल से पांच किलोमीटर की दूरी पर रहने वाली गुड़िया की उम्र उस समय मुश्किल से 15 साल थी, जब उसकी दूसरी पत्नी के रूप में उसकी शादी 35 साल के व्यक्ति से कर दी गई थी।
गुड़िया के साथ ससुराल में न केवल अपशब्द बोले जाते थे, बल्कि उसे शारीरिक रुप से भी प्रताड़ित किया जाता था। गुड़िया ये सब सहन नहीं कर पाई और शादी के तीन महीने बाद ही अपने माता-पिता के पास घर लौट आई। गुड़िया के पति ने उसे इतनी बेरहमी से पीटा कि उसके चेहरे को लकवा (पक्षाघात) मार गया। उसके माता-पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। वे बड़ी मुश्किल से अपना भरण-पोषण कर पाते हैं। उन्होंने जैसे-तैसे गुड़िया के इलाज पर 15,000 रुपये खर्च किए। गुड़िया का पति कभी उससे मिलने नहीं आया। उसकी मां दुखी थी, लेकिन इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने उस आदमी के खिलाफ कभी कोई मामला दर्ज नहीं कराया।
गुड़िया सातवीं कक्षा तक पढ़ी है। आगे भविष्य में क्या करना है, अभी तक कुछ तय नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि वह अब क्या करना चाहेंगी, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। आंसुओं से भरी आंखों से फर्श को देखती रहीं।
एक दुखद और भयानक सच
भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में आधी आबादी (महिला मतदाता) को लुभाने के लिए शहर और गांवों में घूमे थे। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए, लेकिन बाल विवाह की बात शायद ही किसी पार्टी के घोषणापत्र में शामिल की गई हो।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता सुचि विश्वास ने उत्तर प्रदेश में बाल विवाह को एक दुखद और भयानक सच्चाई बताते हुए कहा कि राज्य में महिलाएं पहले से ही कुपोषण से पीड़ित हैं। जल्दी शादी और गर्भावस्था ने उनके लिए स्थिति और खराब कर दी है।” विश्वास गांव कनेक्शन से कहती हैं, “शिक्षित होने पर ही वे आर्थिक रूप से स्थिर और आत्म निर्भर (आत्मनिर्भर) हो पाएंगी।”
हाथरस और बुलंदशहर में हुए नृशंस बलात्कारों की घटनाओं को याद करते हुए विश्वास ने कहा कि युवा लड़कियों के माता-पिता स्वाभाविक रूप से अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे परिवारों को अपनी बेटियों की जल्दी शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे अनाचार (गलत काम) को बर्दाश्त करने वाली सरकार का क्या फायदा है।”
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने बताया कि उनकी सरकार महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर कड़ी नजर रखे हुए है। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा कि “हम महिलाओं को अजेय मानते हैं, असहाय नहीं।”
वह कहते हैं, “हम लड़कियों की कानूनन शादी की उम्र को बढ़ाकर पुरुषों के समान करने की दिशा में काम कर रहे हैं। बाल विवाह की बुराइयों को दूर करने के लिए हमारे कई जागरूकता अभियान हैं और हम उत्तर प्रदेश में बाल विवाह को कम करने में सफल रहे हैं।
एनएफएचएस आंकड़ों (2019-21) से यह भी पता चलता है कि देश में पिछले पांच सालों में बाल विवाह में गिरावट आई है। जबकि 2015-16 में 20-24 वर्ष की आयु वर्ग में 31.5 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी। साल 2019-21 में यह प्रतिशत घटकर 27 हो गया था।
इस अवधि के दौरान बाल विवाह के मामले 21.1 प्रतिशत से घटकर 15.8 प्रतिशत हो गए हैं। आंकड़े भले ही उत्तर प्रदेश में बाल विवाह की घटनाओं में कमी की बात कह रहे हों, लेकिन विशेषज्ञ इससे प्रभावित नहीं हैं।
क्या कानूनी तौर पर शादी की उम्र बढ़ाने से मदद मिलेगी?
भारत सरकार का बाल विवाह निषेध अधिनियम 2005 बाल विवाह को प्रतिबंधित करता है। अगर कोई व्यक्ति ऐसा करते हुए पाया जाता है तो उसे कठोर कारावास और भारी जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।
संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार ने महिलाओं के लिए कानूनी शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव रखा था। बाल अधिकार कार्यकर्ता सवाल करते हैं कि क्या जमीनी स्तर पर इसका कोई वास्तविक असर होगा!
बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021, महिलाओं के सशक्तिकरण, लैंगिक समानता, महिला श्रम बल की भागीदारी को बढ़ाने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और स्वयं निर्णय लेने के लिए उन्हें सक्षम बनाने के उपाय के रूप में मुद्दों को समग्र रूप से संबोधित करने का प्रस्ताव करता है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 में संशोधन का प्रस्ताव करने वाला विधेयक पिछले साल 21 दिसंबर को एक संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया था। विधेयक पारित होने के बाद, लड़कियों के लिए कानूनी तौर पर शादी की उम्र 21 साल हो जाएगी।
ऑक्सफैम इंडिया की प्रमुख विशेषज्ञ (जेंडर जस्टिस) अमिता पित्रे ने गांव कनेक्शन में हाल ही में लिखे गए अपने कॉलम में तर्क दिया, “शादी की एक बराबर उम्र का होना समानता नहीं है।” उन्होंने लिखा, “18 साल से अधिक की शादियों को अपराध घोषित करने के बजाय हमें एक ऐसा सक्षम माहौल बनाने की जरूरत है जहां लड़कियां 18 साल तक इंतजार कर सकें और फिर अपनी शादी का फैसला खुद कर सकें।”
सितंबर 2021 में, राजस्थान सरकार ने राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 में संशोधन करते हुए राज्य विधानसभा में एक विधेयक पारित किया था।
नए संशोधन में कहा गया है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के के बीच शादी के मामले में, उनके माता-पिता या अभिभावकों को शादी के 30 दिनों के भीतर प्रशासन को सूचित करना होगा। नया विधेयक सरकार को विवाह पंजीकरण के लिए एक अतिरिक्त जिला विवाह पंजीकरण अधिकारी और एक ब्लॉक विवाह पंजीकरण अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार देता है।
इस विधेयक का काफी विरोध हुआ था। कई कार्यकर्ताओं का मानना था कि बिल बच्चों के शोषण और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों को वैध कर देगा। उसके बाद राज्य ने बिल की फिर से जांच करने का फैसला किया था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे वकील आकाश गुप्ता ने गांव कनेक्शन को बताया, “ग्रामीणों को समझ नहीं आ रहा है कि क्या कानूनी है या क्या गैर-कानूनी। कानूनन शादी की उम्र बढ़ाने से ग्रामीण इलाकों में ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है।”
उन्होंने कहा कि सरकार को बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कानूनी व्यवस्था को आसान और समाज को सशक्त बनाने की जरूरत है। वह कहते हैं, “हमारे पास कानून हैं लेकिन वे काम नहीं कर रहे हैं। समाज को जागरूक बनाने के लिए काम किए जाने की जरूरत है। गुड़िया का मामला ले लीजिए। उसके पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। माता-पिता को बोलने की जरूरत थी। “
महामारी और बाल विवाह में वृद्धि
एनएफएचएस के आंकड़ों (2019-21) के अनुसार, बाल विवाह का शिकार 51.2 फीसदी लड़कियां श्रावस्ती से, 37.5 फीसदी बहराइच से, 35 फीसदी बलरामपुर से, 33.9 फीसदी सिद्धार्थनगर-भारत-नेपाल सीमा से लगे जिलों से हैं। बाल विवाह के मामलों में श्रावस्ती के बाद दूसरा सबसे खराब जिला बुंदेलखंड क्षेत्र का ललितपुर (42.5 फीसदी) है।
नीति आयोग की मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स बेसलाइन नामक रिपोर्ट के अनुसार, श्रावस्ती की लगभग 75 प्रतिशत आबादी काफी गरीब है। इससे पता चलता है कि जिले में घोर गरीबी के कारण बाल विवाह का प्रचलन बढ़ गया है।
पिछले कुछ सालों से बाल विवाह के मामलों में गिरावट दर्ज की जा रही थी। जहां 1970 में बाल विवाह का प्रसार 74 फीसदी था वहीं 2015 में घटकर 27 फीसदी रह गया। लेकिन हाल ही में सेव द चिल्ड्रन -2022 की एक रिपोर्ट में बाल विवाह के मामलों में फिर से तेजी आने की आशंका जताई गई है। रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि कोविड -19 महामारी के चलते ये स्थितियां बदल सकती हैं। वहीं युनिसेफ का अनुमान है कि महामारी की वजह से पूरी दुनिया में 1 करोड़ अतिरिक्त बाल विवाह के मामले आने की संभावना है। यूनिसेफ ने ‘कोविड-19 : ए थ्रेट टु प्रोग्रेस अगेंस्ट चाइल्ड मैरिज’ नामक अध्ययन में इसका खुलासा किया है।
गरीबी, नौकरियों का छूटना, पारिवारिक आय में कमी, शिक्षण संस्थानों का बंद होना-ये कुछ ऐसे कारण हैं जिन्होंने बाल विवाह के मामलों को संभवतः फिर से बढ़ा दिया है।
साल 2020 में गांव कनेक्शन ने पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले से बाल विवाह को लेकर एक ग्राउंड रिपोर्ट की थी। रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि कैसे कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के बावजूद युवा लड़कियों को मजबूरन बाल विवाह के दलदल में धकेला जा रहा है।
गौरतलब है कि भारत में 15 से 19 साल की युवा लड़कियों की शादियों के लगभग 26 प्रतिशत मामले अकेले पश्चिम बंगाल से हैं। कूचबिहार जिले में तो आधे से ज्यादा लोगों के बाल विवाह हुए हैं। 1 मार्च से 15 अगस्त 2020 के बीच कोविड महामारी और लॉकडाउन में कूचबिहार जिले में बाल विवाह के 119 मामले सामने आए थे।
उस समय जिला बाल संरक्षण अधिकारी स्नेहाशीष चौधरी ने गांव कनेक्शन को बताया था, “महामारी ने हमारे काम को और भी मुश्किल कर दिया है। पंचायतों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा था। लेकिन अब ये भी बंद हो गया है। समुदायों को शिक्षित करने या उन तक पहुंच बनाने वाले कई कार्यकर्ता या तो संक्रमित हैं या फिर या क्वारंटाइन। ”
बाल विवाह और सतत विकास लक्ष्य
उत्तर प्रदेश सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग में अधिकारी बीएस निरंजन ने गांव कनेक्शन को बताया कि राज्य सरकार बाल विवाह को लेकर अपनी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ योजना, मिशन शक्ति और चाइल्डलाइन (1098) के जरिए लगातार जागरूकता अभियान चलाती रही है।
उन्होंने कहा, “इसके अलावा, हमारे पास जिला स्तर के अधिकारी हैं जो सूचना मिलने पर इस तरह की शादियों को तुरंत रोक देते हैं। वहीं ग्राम स्तर पर बाल संरक्षण समितियां भी हैं जो हमारे साथ जानकारी साझा करती रहती हैं।”
उत्तर प्रदेश में कुछ समय पहले तक ‘महिला समाख्या’ नाम का एक सरकारी कार्यक्रम चलाया जा रहा था। जिसका उद्देश्य घरेलू हिंसा, बाल विवाह, यौन उत्पीड़न, दहेज जैसे मसलों के प्रति महिलाओं को जागरूक कर उन्हें सुरक्षित करना था। महिला एवं बाल विकास विभाग की यह योजना महिलाओं को सशक्त बना रही थी।
ग्रामीणों के मुताबिक, इलाके में होने वाले बाल विवाहों को रोकने के लिए इस संगठन ने अच्छा काम किया था। लेकिन दुर्भाग्य से, महिला और बाल विकास विभाग की इस योजना को 2020 में बंद कर दिया गया। गांव वालों का दावा है कि ऐसा पैसों की कमी के चलते किया गया।
हालांकि सरकारी अधिकारी कुछ और ही कहते नजर आते हैं। निरंजन के अनुसार ” फंड की कोई कमी नहीं थी। यह विभाग का अपना फैसला था। हम बाल विवाह को रोकने वाली योजनाओं को मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं।”
ग्रामीण चाहते हैं कि ये योजना फिर से शुरू की जाए क्योंकि सरकारी सहायता पाने का यही एकमात्र तरीका था। सोनबरसा गांव की निवासी रूपकली ने गांव कनेक्शन को बताया, “महिला समाख्या टीम ने हमे एक राह दिखाई थी। अगर इस योजना को फिर से शुरू कर दिया गया तो कई और बाल विवाह रुक जाएंगे, ऐसा मुझे यकीन है।”
बाल विवाह वैश्विक विकास के एजेंडे में है। सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) में निर्धारित लक्ष्य के अनुसार 2030 तक बाल विवाह प्रथा को खत्म करने का संकल्प लिया गया है। हालांकि, यूनिसेफ 2022 की रिपोर्ट बताती है कि ये तभी संभव है जब बाल विवाह की वार्षिक दर में 22 फीसदी की कमी आए।
इस सबके बीच बाल विवाह का दंश झेल रही चिमकी और गुड़िया गरीबी में कट रहे अपने मुश्किल और दर्द भरे जीवन से बाहर निकल पाने का सिर्फ सपना ही देख सकती हैं।
नोट: अनुरोध पर लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।