मेरी प्रेगनेंसी के दौरान सातवें महीने में फ्लूड लेवल कम होने के कारण डिलीवरी जल्दी और सिजेरियन करने का जो खतरा सामने आया था, वो दवाइयों की मदद से काफी हद तक टल गया। बस अब बच्चे की मूवमेंट का बहुत ध्यान रखना था। घर पर सभी चाहते थे कि डिलीवरी नॉर्मल हो। नॉर्मल डिलीवरी के लिए जो भी नुस्खे अपनाए जा सकते थे, सब बताए जा रहे थे।
सास ने कहा रोजाना पोछा लगाओ घर में। मां ने कहा दूध में घी डालकर पीया करो रोजाना। इन दो सख्त निर्देशों के अलावा सबकी सलाह यही थी कि जितना हो सके, मैं एक्टिव रहूं। घी मैं पी नहीं सकती थी, मुझे पसंद नहीं है। पोछा मैं कभी-कभी लगा लेती थी, लेकिन अक्सर दर्द होने की वजह से ऐसा बहुत ज्यादा नहीं कर पा रही थी। इस बीच मेरी सास मेरे साथ रहने आ चुकी थीं। उन्होंने मेरी डाइट में कुछ बदलाव किए। सर्दियों का समय था, इसलिए कुछ हेल्दी लड्डू बनाकर दिए। वो हर दिन हम सब बस दर्द उठने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन 22 दिसंबर की ड्यू डेट होने के बाद जब 16 दिसंबर तक मुझे नैचुरल पेन नहीं हुए, तब डॉक्टर की तरफ से हमें ड्यू डेट का इंतजार ना करने की सलाह दी गई।
डॉक्टर का कहना था कि पूरी प्रेगनेंसी मेरे साथ समस्या रही है। फ्लूड लेवल भी कम है। हम पूरा समय दे चुके हैं, अगर अब तक दर्द नहीं हुए हैं, तो ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहिए। इस पर ना ही मेरी मां, ना ही सास कोई भी तैयार नहीं था। सब चाहते थे कि दर्द उठने पर ही हॉस्पिटल एडमिट हुआ जाए। मेरे पति और मैं एक अजीब से धर्मसंकट में फंस गए थे। डॉक्टर का कहना था बच्चे की सेहत के लिए डिलीवरी में ज्यादा इंतजार करना ठीक नहीं है। मेरी सास और मां का अनुभव कह रहा था कि सब ठीक है और हमें नैचुरल पेन का इंतजार करना चाहिए।
मगर आखिर में काफी वाद-विवाद के बाद डॉक्टर की सलाह पर ही फैसला लिया गया। इतना जरूर हुआ कि पहले आठ घंटे के लिए मुझे एडमिट करके दर्द उठवाने की कोशिश की गई। आठ घंटे तक कई बार कई डॉक्टर अलग-अलग तरह से चेक करते रहे। ना ही बच्चेदानी का मुंह खुला। ना दर्द उठे। मगर बेबी की हार्टबीट कम होती जरूर नजर आने लगी। ये वो वक्त था, जब सारा ध्यान नॉर्मल और सिजेरियन से हटकर बच्चे को बचाने पर आ गया। डॉक्टर ने एक बार कहा कि अब सिजेरियन करना पड़ेगा और हमें आगे कुछ सोचने की जरूरत नहीं पड़ी। मेरे और मेरे पति दोनों से कागज पर साइन ले लिए गए। मैं ऑपरेशन थियेटर में जाते वक्त किस कदर रो रही थी, ये हॉस्पिटल का पूरा स्टाफ जानता है। बेबी की हार्ट बीट कम होने की बात ने मुझे इतना डरा दिया था कि रोने के अलावा कुछ समझ नहीं आ रहा था।
शायद सिर्फ 30 मिनट का ही वक्त रहा होगा। कमर में इंजेक्शन लगाकर मेरे शरीर के नीचे के हिस्से को सुन्न कर दिया गया। मैं सुन सकती थी, बोल सकती थी, लेकिन मेरे पेट के निचले हिस्से में क्या हो रहा था, देख नहीं सकती थी, महसूस नहीं कर सकती थी। इतना पता था कि बस इस चीर-फाड़ के बाद ही मेरा बच्चा मेरे सामने होगा। कुछ ही देर में बच्चे के रोने की आवाज आई। मैंने पूछा- क्या हुआ है। मुझे बेबी दिखा दीजिए प्लीज। डॉक्टर ने कहा- इंतजार करिए बस कुछ मिनट और। बेबी को साफ करके मुझे दिखाया गया…. और उसकी पहली झलक ने जैसे उस चीर-फाड़ को पूरी तरह मेरे दिमाग से गायब कर दिया। मेरे घर में इस नन्ही परी का किस बेसब्री से इंतजार था, ये मैं अच्छी तरह जानती थी।
बेटी और मैं दोनों स्वस्थ थे, लेकिन परिवार में एक चर्चा आज भी उफान पर होती है- नॉर्मल डिलिवरी हो सकती थी, जल्दबाजी में सिजेरियन की गई। इसका कोई जवाब मेरे पास नहीं होता। डॉक्टर ने जो कहा था, मैं बस वही बात दोहरा पाती हूं। लेकिन परिवार की जितनी भी अनुभवी महिलाएं हैं, वो सिरे से डॉक्टर की बात को नकारती हैं और कहती हैं कि मैं नॉर्मल डिलिवरी से बच्चे को जन्म दे सकती थी।
इसी के बाद शुरू होती है, वो रिसर्च जिसका नतीजा मेरे लिए हैरान करने वाला है और आप आगे पढ़ेंगे, तो आपको भी शायद हैरानी हो।
भिवानी में रहने वाली मुकेश देवी पिछले 20 सालों से दाई का काम कर रही हैं। कोरोना काल में मैंने शहरों में भी ऐसे मामले सुने, जब दाई से डिलिवरी घर पर ही करवाई गई, ताकि हॉस्पिटल में जाकर इंफेक्शन का खतरा ना रहे। इसी के चलते मैंने मुकेश देवी से बात करने के बारे में सोचा। मुकेश देवी बताती हैं, “15-20 साल हो गए मुझे जापा करवाते हुए। अब कई सालों से लोग अस्पताल जाने लगे हैं, लेकिन कोरोना आने के बाद फिर घर में डिलिवरी करवाने के लिए बुलाने आने लगे।”
सिजेरियन डिलिवरी के बारे में पूछने पर मुकेश देवी कहती हैं, ‘ये तो आजकल होने लगी है, हमारे जमाने में तो नॉर्मल ही डिलिवरी हुआ करती थी। मैंने खुद कितने ही गंभीर मामलों में नॉर्मल डिलिवरी करवाई है। आजकल डॉक्टर बिना दर्द उठे ही एडमिट कर लेते हैं और ऑपरेशन कर देते हैं। आजकल की लड़कियां भी दर्द नहीं सहना चाहतीं, इसलिए सिजेरियन करवा लेती हैं।’ मुकेश देवी की मानें, तो दर्द उठना बच्चा पैदा करने की एक नैचुरल प्रक्रिया है। वो कहती हैं, ‘जब सही समय होता है, तभी दर्द उठते हैं और लड़कियों के ये दर्द बर्दाश्त करने चाहिए, ताकि नॉर्मल डिलिवरी हो। नॉर्मल डिलिवरी से शरीर स्वस्थ रहता है।’
हालांकि साइंस अब इतना आगे बढ़ चुकी है कि जानकार इस बात से बिलकुल सहमत नजर नहीं आते। डॉक्टर शंपा झा कहती हैं, ‘हम हमेशा नॉर्मल डिलिवरी के ही पक्ष में रहते हैं, लेकिन जब प्रेगनेंसी में कुछ कॉम्पलिकेशंस होते हैं, तब दर्द उठने का इंतजार करना सही नहीं होता। ऐसे मामलों में हमें सिजेरियन डिलिवरी करनी पड़ती है।’
दोनों ही मामलों की तह तक जाने के बाद मुकेश देवी की बात को लेकर कई और सवाल उठते हैं। सवाल ये कि जब हमेशा से बच्चों का जन्म मां के दर्द उठने पर ही होता रहा है, तो आखिर सिजेरियन डिलिवरी की शुरुआत कब हुई होगी? कब पहली बार बच्चे का जन्म वेजिनल डिलिवरी की बजाय मां के पेट को काटकर हुआ होगा?
इस सवाल के जवाब में सामने आते हैं कई दिलचस्प तथ्य। इंटरनेट पर की गई रिसर्च बताती है कि सिजेरियन डिलिवरी का पहला लिखित रिकॉर्ड मिलता है सन् 1500 में। ये सिजेरियन डिलिवरी स्विट्जरलैंड में हुई थी। जैकम न्यूफर नाम के एक आदमी ने अपनी पत्नी की सिजेरियन डिलिवरी करवाई थी। 13 दाइयों की कोशिशों के बाद भी जब उसकी पत्नी बच्चे को जन्म देने में असमर्थ रही, तब उसने लोकल अथॉर्टिज से पत्नी की सिजेरियन डिलिवरी करने की अनमुति ली। बताया जाता है कि जैकम न्यूफर की पत्नी को एक साथ पांच बच्चे हुए थे, इनमें जुड़वां बच्चे भी शामिल हैं। सिजेरियन डिलिवरी से हुए ये बच्चे 77 साल की उम्र तक जिए।
ये तो हुई लिखित रिकॉर्ड की बात। मगर इससे पहले भी सिजेरियन डिलिवरी का एक अलग इतिहास सामने आता है। दरअसल सिजेरियन डिलिवरी का नाम ही रोमन कानून के नाम पर आधारित बताया जाता है। रोमन साम्राज्य में लेक्स सिजेरिया नाम का एक कानून था। इसके अनुसार जब शिशु के जन्म से पहले ही मां की मौत का खतरा हो, सिर्फ उसी स्थिति में बच्चे को मां की कोख चीर कर बाहर लाया जा सकता है। ऐसे में सिजेरियन डिलिवरी का आधार सिर्फ आपात स्थिति बताई जाती है। हालांकि अब ये काफी आम हो चुका है, रिसर्च बताती है कि पहली डिलिवरी के दौरान 18.6 प्रतिशत प्रेगनेंट महिलाएं सिजेरियन डिलिवरी का चुनाव करती हैं। डब्लयूएचओ की इस रिसर्च के अनुसार सिजेरियन डिलिवरी चुनने की वजह है बच्चे के जन्म के दौरान होने वाले दर्द का डर।
लेकिन कहते हैं ना डर के आगे जीत है। अगर कोई कॉम्पिलकेशंस नहीं हैं और आपकी डॉक्टर ने आपसे सिजेरियन डिलिवरी के लिए नहीं कहा है, तो अपने अनुभव के बाद मैं यही सलाह दूंगी कि आप नॉर्मल डिलिवरी के लिए खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें।